बिना प्रशिक्षक कैसे होंगे यूपी के खेल मैदान गुलजार?

संचालक खेल आर.पी. सिंह की हठधर्मिता ने उजाड़े प्रशिक्षकों के परिवार

खेलपथ प्रतिनिधि

लखनऊ। खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश ने खेल प्रतिभाओं को संवारने का जिम्मा बेशक निजी कम्पनियों को सौंप दिया हो लेकिन इन कम्पनियों के सामने प्रशिक्षकों की नियुक्ति टेढ़ी खीर साबित हो रही है। हाल ही प्रशिक्षकों के चयन को लेकर आहूत ट्रायल में जो हंगामा हुआ उससे उत्तर प्रदेश में खेलों के भविष्य पर सवालिया निशान लग रहे हैं। खेलों से जुड़े लोगों का कहना है कि संचालक खेल आर.पी. सिंह की हठधर्मिता से उत्तर प्रदेश में खेलों का सत्यानाश हो रहा है।

गौरतलब है कि खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश ने पिछले साल मार्च महीने में ही कोरोना संक्रमण की आड़ में प्रदेश के लगभग साढ़े चार सौ प्रशिक्षकों को सेवा से पृथक करने का गुनाह कर उनके परिवारों को आर्थिक संकट में डाल दिया था। प्रशिक्षकों ने सेवा में लेने की जब गुहार लगाई तो खेल निदेशालय ने मुंबई की कम्पनी टी एण्ड एम सर्विस कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड एवं यूपी की मेसर्स अवनि परिधि एनर्जी एण्ड कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड को प्रशिक्षकों की नियुक्ति की जिम्मेदारी सौंप दी।

बेहतर होता निकाले गए प्रशिक्षकों की सेवा बहाली की जाती लेकिन खेल विभाग ने ठेकेदारी से काम चलाने का मन बनाकर साढ़े चार सौ खेल प्रशिक्षकों के परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा कर दिया। यह निजी कम्पनियां प्रशिक्षकों की नियुक्ति एवं सैलरी का निर्धारण अंकों के आधार पर करेंगी। सूत्रों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों और एनआईएस प्रशिक्षकों की नियुक्ति के लिए अलग-अलग अंक निर्धारित किए गए हैं। ठेके पर रखे जाने वाले प्रशिक्षकों का वेतन अधिकतम 30 एवं न्यूनतम 20 हजार रुपये निर्धारित किया गया है।

संचालक खेल आर.पी. सिंह के लाख प्रयासों के बाद भी अभी तक प्रशिक्षकों की समस्या का समाधान नहीं किया जा सका है। प्रशिक्षक न होने से प्रदेश के अधिकांश क्रीड़ांगन सन्नाटे में डूबे हैं। ठेकाप्रथा को लेकर प्रशिक्षक भी यह तय नहीं कर पा रहे कि उन्हें खेल विभाग से जुड़ना चाहिए या नहीं। असमंजस की स्थिति में मैदानों में फिर से हलचल उठने की सम्भावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। प्रशिक्षकों के ट्रायल की औपचारिकता पूरी करने में ही विभाग को पसीना आ रहा है।

सूत्रों का कहना है कि निदेशालय खेल चालू साल में 341 प्रशिक्षकों की नियुक्ति करेगा। एक समय था जब प्रशिक्षकों की ट्रायल में हजार से अधिक खेल द्रोणाचार्य अपनी काबिलियत दिखाने आते थे। गत दिवस लखनऊ में हुई प्रशिक्षकों की ट्रायल में बमुश्किल 70-75 प्रशिक्षक ही आए। स्पोर्ट्स स्टेडियम में अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों का ट्रायल लेने वाली आउटसोर्सिंग एजेंसी भी सकते में हैं। कोरोना संक्रमण के फैलाव के बीच उत्तर प्रदेश के स्पोर्ट्स स्टेडियमों में खेल गतिविधियां मार्च-2020 से बंद हैं। नवम्बर में स्टेडियम केवल खिलाड़ियों के लिए खोला गया, ताकि वे फिजिकल ट्रेनिंग कर सकें। अब अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों की भी स्टेडियम में तैनाती होनी है लेकिन निदेशालय खेल को प्रशिक्षक ही नहीं मिल रहे। इच्छुक खेल प्रशिक्षकों से सेवायोजना पोर्टल व गवर्नमेंट ई-कॉमर्स (जेम) पोर्टल पर आवेदन मांगे गए थे लेकिन प्रशिक्षक ठेके की शर्त पर सेवाएं देने को कतई तैयार नहीं हैं। इस संबंध में क्रीड़ाधिकारियों से बात करने पर नाम न छापने की शर्त पर इनका कहना है कि पहले की व्यवस्था में जब कोई खोट नहीं थी ऐसे में एजेंसियों का पचड़ा पैदा करना खेल प्रशिक्षकों और खिलाड़ियों के साथ सरासर नाइंसाफी है। खेल निदेशालय के एक जवाबदेह अधिकारी का कहना है कि समय के साथ स्थितियां सुधर जाएंगी और उत्तर प्रदेश के खेल मैदान पुनः गुलजार होंगे।  

 

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