जापान में ओलम्पिक आयोजन के खिलाफ तेज हुईं आवाजें

फुकुशिमा में आए भूकम्प के बाद उठे सवाल
25 अरब डॉलर से ज्यादा का खर्च आएगा
टोक्यो।
टोक्यो ओलंपिक के बुरे संयोग का दौर खत्म नहीं हो रहा है। कोरोना महामारी के कारण पिछले साल टले इन खेलों पर जापान में महामारी के आए नए दौर का खतरा पहले से मंडरा रहा था। इसी बीच ओलंपिक आयोजन समिति के प्रमुख योशिरो मोरी को लिंगभेदी टिप्पणी करने के कारण इस्तीफा देना पड़ा। अब शनिवार को जापान में आए तगड़े भूकंप ने नई चिंताएं पैदा कर दी हैं। इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल 7.1 थी। इससे फुकुशिमा का इलाका प्रभावित हुआ, जहां दस साल पहले आए 9.0 तीव्रता के भूकंप और सुनामी से परमाणु संयंत्र नष्ट हो गया था। फुकुशिमा हादसे के असर से जापान आज तक नहीं उबर सका है।

जापानी मीडिया में इस तरफ भी ध्यान खींचा गया है, 2020 ओलंपिक खेलों के लिए प्रस्तावित नेशनल स्टेडियम के निर्माण की योजना पहले विवाद के कारण रद्द करनी पड़ी थी। इस निर्माण पर दो अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान था। इसके बाद ओलंपिक लोगो बनाने में नकल करने के आरोप भी लगे थे। पिछले साल खेलों का आयोजन कोरोना महामारी के कारण टालना पड़ा। जानकारों का कहना है कि अब कोरोना महामारी से बचाव के उपायों के साथ इन खेलों का आयोजन होगा, जिस पर 25 अरब डॉलर से ज्यादा का खर्च आएगा। इसे जापानी जनमत का बड़ा हिस्सा पचा नहीं पा रहा है।

जानकारों का कहना है कि ओलंपिक खेलों का आयोजन यात्रा संबंधी प्रतिबंधों के बीच होगा। इसलिए ओलंपिक खेलों के दौरान विदेशी दर्शकों के आने से जो आमदनी होती है, वह सीमित रहेगी। ऐसे में इस आयोजन के बड़े घाटे का सौदा साबित होने का अंदेशा है। टोक्यो स्थित टेंपल यूनिवर्सिटी में एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर जेफ किंग्स्टन ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- यह सचमुच जापान की दुखती रग बन गया है। ओलंपिक आयोजन का असली मकसद ब्रांड जापान को दिखाना था। लेकिन अब बाकी दुनिया उस जापान को देख रही है, जो नहीं चाहता कि दुनिया टोक्यो को देखे।
ओलंपिक के आयोजन का खास विरोध फुकुशिमा इलाके में देखने को मिला है। वहां के आम नागरिकों ने मीडिया से कहा है कि यह समय ओलंपिक खेलों के आयोजन का नहीं है। इससे देश के नागरिकों को कोई लाभ नहीं होगा। जापान के लोगों को इन खेलों से कोई उम्मीद नहीं है।
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिन्जो आबे ने टोक्यो 2020 के आयोजन को दुनिया को यह दिखाने के मौके के रूप में लिया था कि जापान फुकुशिमा भूकंप और सुनामी हादसे और वर्षों की आर्थिक मंदी से उबर चुका है। लेकिन ओलंपिक मशाल जलाए जाने से 39 दिन पहले फुकुशिमा में फिर से भूकंप आ गया। वैसे भी फुकुशिमा के नागरिकों को इस बात की शिकायत थी कि जितनी रकम इन खेलों के आयोजन पर खर्च की जा रही है, उससे उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ है। फुकुशिमा के एसोसिएशन फॉर न्यूक्लीयर एक्सीडेंट विक्टिम्स की कार्यकर्ता माहारू टोउन ने सीएनएन से कहा- ‘आयोजकों की यह कहानी कि फुकुशिमा उस हादसे से उबर गया है, सच नहीं है। आज भी यहां कम से कम 37 हजार लोग अपने घरों से दूर हैं।’
दस साल पहले हुए हादसे के बाद से हजारों लोग अभी भी विस्थापित जीवन जी रहे हैं। परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना के कारण उस इलाके में आज भी विकिरण की मात्रा इतनी ज्यादा है कि उसे रहने के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता। इसलिए फुकुशिमा के बहुत से नागरिकों की शिकायत है कि पीड़ित लोगों की जिंदगी संवारने के बजाय सरकार ने अरबों डॉलर खेलों के आयोजन पर खर्च कर डाले।
इसी कारण जापान में ओलंपिक विरोधी कई संगठन सक्रिय रहे हैं। उनके अलावा कई पर्यावरणवादी समूह भी इन खेलों के विरोधी रहे हैं। हालिया विवादों से इन संगठनों के तर्क को बल मिला है। कोरोना महामारी और ताजा भूकंप ने उन्हें यह कहने का मौका दिया है, सरकार असल समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय खेलों के आयोजन में अपना धन और ऊर्जा बर्बाद कर रही है।

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