उत्तर प्रदेश में खेल कलेण्डर ही नहीं तैयार, कैसे खेलें खिलाड़ी

खेल संगठन पदाधिकारी शासकीय निर्देशों का दे रहे हवाला

खेलपथ प्रतिनिधि

लखनऊ। जो मैदान इन दिनों खिलाड़ियों से आबाद रहते थे वे कोरोना संक्रमण और खेल पदाधिकारियों की लेतलाली के चलते वीरान हैं। खेल संगठन पदाधिकारी भी शासकीय निर्देशों का हवाला देते हुए किसी भी तरह की प्रतियोगिता कराने में असमर्थता व्यक्त कर रहे हैं। खेल हों भी तो कैसे अभी तक उत्तर प्रदेश में खेल कलेण्डर ही तैयार नहीं हुआ है। खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों के अभाव में जैसे-तैसे खिलाड़ी खुद की फिटनेस बरकरार रखने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए प्रतिभाशाली खिलाड़ी अपने घरों की छतों या इधर-उधर व्यायाम कर रहे हैं जोकि नाकाफी है।

उत्तर प्रदेश में खेल और खिलाड़ियों के भविष्य पर कोई खेल अधिकारी या खेल संगठन पदाधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं है। एक खेल संगठन पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि संचालनालय खेल ही नहीं चाहता कि प्रदेश के खेल मैदान खिलाड़ियों से आबाद हों। इस पदाधिकारी ने कहा कि हम तो शासकीय निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। शासन का निर्देश मिलने के बाद वह खेल कलेण्डर तैयार करेंगे। साढ़े चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों को निकाले जाने पर इनका कहना है कि बिना प्रशिक्षकों के खेलों के कोई मायने नहीं। संचालक खेल आर.पी. सिंह द्वारा अंशकालिक प्रशिक्षकों को बाहर निकाले जाने के सवाल पर यह संगठन पदाधिकारी चुप्पी साध लेता है।  

महारानी अहिल्याबाई होल्कर स्पोर्ट्स स्टेडियम अलीगढ़ में पिछले साल नौ खेलों के कैंप लगे थे। एक अप्रैल से नया सत्र शुरू होना था, लेकिन कोरोना ने खिलाड़ियों व अंशकालिक प्रशिक्षकों की तैयारियों पर पानी फेर दिया। स्टेडियम में भारोत्तोलन, हॉकी, क्रिकेट, कुश्ती, शूटिंग, बॉक्सिंग, एथलेटिक्स के कैंप थे। स्टेडियम में भारोत्तोलन की अंशकालिक प्रशिक्षक मीनाक्षी गौड़ ने कहा कि जब से कोरोना संकट पैदा हुआ है, तब से आमदनी का जरिया बंद हो गया। इधर-उधर से मांगकर गुजर-बसर चल रहा है।

भारोत्तोलक मीनाक्षी बताती हैं कि उनके पति का निधन वर्ष 2011 में हो गया था। दो बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उन पर ही आ गई थी। वर्ष 2015 में वह स्टेडियम में अंशकालिक प्रशिक्षक बन गईं। स्टेडियम से मिलने वाली धनराशि से परिवार का गुजर-बसर अच्छी तरह से हो रहा था, लेकिन 25 मार्च के बाद उनकी जिंदगी नरक बन गई है पैसे के अभाव में मकान का किराया व बिजली का बिल तक नहीं दे पाई हूं। स्कूल से बच्चों की फीस जमा करने के बराबर मोबाइल पर संदेश आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सगे-संबंधियों से पैसे मांगकर बच्चों व खुद का पेट पाल रही हूं। थक हारकर उन्होंने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, खेल मंत्री को पत्र भेजकर आर्थिक मदद की गुहार लगाई है। कमोवेश यही स्थिति उत्तर प्रदेश के बाकी अंशकालिक प्रशिक्षकों की भी है।

अपने जमाने में चर्चित खिलाड़ियों में शुमार राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शैदा व राष्ट्रीय धावक हीरा सिंह को आज की युवा पीढ़ी बेशक नहीं जानती, लेकिन उन्होंने अपने खेल से अलीगढ़ का नाम रोशन किया है। 1970 के दशक में अलीगढ़ में मोहम्मद शैदा एक शानदार हॉकी खिलाड़ी बनकर उभरे थे। मेहनत व चपलता से विपक्षी टीम की रक्षापंक्ति को छिन्न-भिन्न करने वाले सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी मोहम्मद शैदा को आज के युवा खिलाड़ी जानते-पहचानते नहीं हैं। एक वक्त वो था, जब शैदा गेंद लेकर आगे बढ़ते थे तब मैदान पर शैदा-शैदा का शोर मचने लगता था। वर्ष 1975 में शैदा ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की हॉकी टीम की कप्तानी की। वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश हॉकी टीम के कप्तान बने। छह बार उन्होंने राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व किया। 1976 व 1977 में भारतीय हॉकी टीम में शामिल होने के लिए कैंप भी किया। मगर टीम में चुने जाने से पहले उनके दाहिने पैर में फैक्चर हो गया, जिससे वह टीम में न चुने जा सके। शैदा का नीली जर्सी पहनने का ख्वाब अधूरा रह गया। शैदा ने वर्ष 1974 में सीनियर नेहरू एकादश से स्पेन के खिलाफ मैच खेला था। साल 1972 से 1978 तक हॉकी में शैदा का प्रदर्शन चरम पर था। खेल कोटे से शैदा की विद्युत विभाग उत्तर प्रदेश में नौकरी लग गई, जो लखनऊ से अधिशाषी अभियंता के पद से वर्ष 2010 में सेवानिवृत्त हुए। सागर काम्प्लेक्स अनूपशहर रोड निवासी मोहम्मद शैदा ने कहा कि हॉकी ने उन्हें बहुत कुछ दिया है। बेटे का हॉकी में रुझान नहीं था, इसलिए उसने हॉकी स्टिक नहीं पकड़ी।

देवी नगला क्वार्सी निवासी हीरा सिंह ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तरफ से खेलते हुए वर्ष 1994 में ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी की पांच किलोमीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद उनकी खेल कोटे से सीमा सुरक्षा बल में नौकरी लग गई। हीरा ने इंडिया पुलिस खेलकूद प्रतियोगिता में बीएसएफ के लिए हाफ मैराथन में कांस्य पदक जीता। कई बार राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी शामिल हुए। यह बात अलग है कि उन्हें मेडल नहीं मिला। यूनाइटेड नेशन की तरफ से उन्होंने हैती में सेवाएं दीं। वह वर्ष 1998 में सेवानिवृत्त हो गए। हीरा ने बताया कि सेवानिवृत्त होने के बाद स्टेडियम में अंशकालिक कोच हो गए। इस समय वह वेटरंस इंडिया स्पोर्ट्स विंग के संयुक्त सचिव व स्पोर्ट्स इंचार्ज उत्तर प्रदेश हैं। उन्होंने कहा कि भारत की तरफ से खेलने का उनका सपना अधूरा रह गया, लेकिन अब वह खिलाड़ियों को तैयार कर अपने अधूरे सपने को पूरा करना चाहते हैं।

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