बिना प्रशिक्षक किसान की बेटी ने किया कमाल

मिट्टी के डेले फेंकते फेंकते बन गई एथलीट

खेलपथ प्रतिनिधि

पोरबंदर। गुजरात में पोरबंदर से लगभग 35 किलोमीटर दूर परवाड़ा गाँव की रहने वाली 21 साल की रम्भी सीदा के जोश और जुनून से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। रंभी सीदा ने बिना किसी प्रशिक्षक की मदद के अपनी मेहनत के बल पर शॉटपुट के खेल में न केवल महारत हासिल की  बल्कि सरकार के राज्य स्तरीय खेल आयोजन में पहला पुरस्कार भी जीता। रम्भी को गोलाफेंक प्रतियोगिता में स्वर्णिम सफलता मिली। इसे शासकीय स्तर पर 21,500 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया।

रम्भी सीदा का परिवार, पिछड़े इलाके से ताल्लुक रखता है और आर्थिक रूप से उतना सुदृढ़ नहीं है। फिर भी रम्भी के सपनों ने उड़ान भरी। अपनी मन की करते हुए, उसने गांव का नाम रोशन कर दिया। रम्भी कहती है कि मैं खेतों में ही मिट्टी के डेले फेंका करती थी। अपने सेलफोन पर यूट्यूब से वीडियो देखा करती थी, उसी के सहारे 'शॉटपुट' खेल सीखा। शॉटपुट के अलावा डिस्कस थ्रोइंग भी सीखी।

रम्भी  बताती है कि मैंने वीडियोज में विभिन्न मूव और तकनीकें देखीं। मैंने उनमें ध्यान लगाते हुए मेहनत की। सुबह और शाम को अपने खेत में महीनों तक लगातार अभ्यास किया। फिर, सरकार के राज्य स्तरीय खेल आयोजन में हिस्सा लिया और स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया।

रम्भी बताती हैं कि, वर्ष 2017 में खेल महाकुंभ में डिस्कस थ्रो में उन्होंने दूसरा पुरस्कार जीता था, वर्ष 2018 में वह इन खेलों में तीसरे स्थान पर रही थीं और उन्हीं खेलों में विश्वविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं में पहला और दूसरा पुरस्कार भी हासिल किया।

रम्भी के पिता देवसी सीदा कहते हैं, "मुझे अपनी बेटी पर गर्व है। वह बचपन से ही खेल में रुचि रखती है, विशेष रूप से  डिस्कस थ्रो और शॉटपुट में। मैंने बचपन से उसे प्रोत्साहित किया है। मुझे खुशी है कि खेल महाकुंभ जैसे इवेंट ने उसकी उपलब्धियों को पहचान लिया है। गांव वाले भी उसकी मेहनत को एकलव्य सा संघर्ष बताते हैं, जो बिना गुरु ही धनुर्विद्या में अर्जुन से ज्यादा निपुण हो गए थे। रम्भी में प्रतिभा के साथ जुनून भी है ऐसे में गुजरात की यह बेटी एथलेटिक्स में देश का प्रतिनिधित्व कर सकती है।

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