खेलों में उत्तर प्रदेश को नहीं मिल रहा संचालक डॉ. आर.पी. सिंह का लाभ

भारतीय ओलम्पिक संघ के कोषाध्यक्ष आनंदेश्वर पांडेय असहाय

खेलपथ प्रतिनिधि

लखनऊ। खेलों से जुड़े लोग प्रायः खेल मंत्री, संचालक खेल तथा विभिन्न संगठनों में खिलाड़ियों को पदाधिकारी के रूप में देखने की मंशा पालते हैं लेकिन जनसंख्या की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश पर नजर डालें तो खेल मंत्री उपेन्द्र तिवारी, संचालक खेल डॉ. आर.पी. सिंह तथा भारतीय ओलम्पिक संघ के कोषाध्यक्ष आनंदेश्वर पांडेय के होते हुए भी प्रदेश के खिलाड़ियों, खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों के चेहरे मायूस हैं। संचालक खेल डॉ. आर.पी. सिंह उत्तर प्रदेश में खेलों की अलख जगाने की बजाय स्वयं के सम्मान के लिए बड़े स्तर पर गोटियां बिछाते देखे जा सकते हैं। खेल हल्के में इस बात की चर्चा है कि भ्रष्टाचार की दलदल में संलिप्त रहने वाला शख्स उत्तर प्रदेश का संचालक खेल किसकी शह पर बना।

संचालक खेल डॉ.  आर.पी. सिंह को पुश्तैनी खेल हाकी का बड़ा पुरोधा माना जाता है। इस बार हाकी इंडिया ने डॉ. आर.पी. सिंह का नाम मेजर ध्यानचंद लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड के लिए अनुशंसित किया था। वर्तमान में यूपी सरकार के खेल निदेशक डॉ. आर.पी. सिंह भारतीय हाकी टीम के कप्तान भी रहे हैं। डॉ. आरपी सिंह दो एशियन गेम्स (सियोल एशियन गेम्स 1986,  बीजिंग एशियन गेम्स-1990,) एशिया कप-1989)   की पदक विजेता टीम के सदस्य रहे। हाकी के जानकारों की मानें तो डॉ. आर.पी. सिंह औसत दर्जे के खिलाड़ी रहे, हां तिकड़मबाजी में इनका कोई तोड़ नहीं था। यह दो बार विश्व कप (1986 लन्दन, 1990 लाहौर) हाकी प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले चुके हैं। डॉ. आरपी सिंह सुल्तान अजलान शाह हाकी टूर्नामेंट की गोल्ड मेडलिस्ट टीम के सदस्य भी रहे।

एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी से उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का संचालक खेल बनने के बाद उम्मीद थी कि डॉ. आर.पी. सिंह का लाभ खिलाड़ियों, खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों को मिलेगा लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया। 25 मार्च, 2020 से संविदा खेल प्रशिक्षक घर बैठे हैं और उनकी सेवा-बहाली अभी तक नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश में उप-निदेशक खेल, जिला खेल अधिकारी और शासकीय शारीरिक शिक्षक बेशक रजाई के भीतर घी पी रहे हों, संविदा खेल प्रशिक्षक और निजी संस्थानों के शारीरिक शिक्षक दो वक्त की रोटी को मोहताज हैं। संचालक खेल डॉ. आर.पी. सिंह खिलाड़ियों और खेल प्रशिक्षकों की भलाई की बजाय खेल आयोजनों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं, इस दिलचस्पी की मुख्य वजह पैसा और शोहरत है। डा. आरपी सिंह की देख-रेख में 2016  में लखनऊ में जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप हुआ था जिसमें भारत चैम्पियन बना था। इसके बाद 2019 में हुई इंडो-फ्रांस महिला हॉकी टेस्ट सीरीज के साथ ही कई नेशनल चैम्पियनशिप का सफल आयोजन भी उनकी देख-रेख में हो चुका है। आर.पी. सिंह उत्तर प्रदेश हॉकी संघ के सचिव भी हैं।

धांधलेबाजी के फेर में सितम्बर, 2013 में डॉ. आरपी सिंह को राज्य सरकार द्वारा उप निदेशक खेल के पद से निलम्बित कर दिया गया था, तब उन पर लखनऊ के गोमती नगर स्टेडियम टूटने के बाद वहां से निकले लाखों रुपये के स्क्रैप अवैध तरीके से बेचने, स्वीमिंग पूल में फिल्ट्रेशन प्लांट को उतारने के लिए शासन से मिले रुपये गायब करने समेत कई गंभीर आरोप लगे थे। तब तत्कालीन खेल एवं युवा कल्याण मंत्री नारद राय ने मीडिया को बताया था कि लखनऊ में तैनाती के दौरान डॉ. आर.पी. सिंह द्वारा सरकारी सम्पत्ति का दुरुपयोग करने के साथ ही  खेल छात्रावासों के खिलाड़ियों को अपनी मनमर्जी के हिसाब से खेलने को मजबूर किया जाता था।

इसके अलावा लखनऊ के क्षेत्रीय क्रीड़ाधिकारी पद पर रहने के दौरान छात्रावास के खिलाड़ियों के खाने में अनियमितता बरतने व घटिया सामग्री का प्रयोग कराने के भी उन पर आरोप लगे थे। केडी सिंह बाबू स्टेडियम में क्षेत्रीय क्रीड़ाधिकारी की तैनाती के दौरान मानक के अनुसार पर्यवेक्षण कार्य न करने व शासकीय कार्यों में लापरवाही बरतने के भी उन पर गंभीर आरोप लगे। डॉ. आर.पी. सिंह का विवादों से गहरा नाता रहा है। अफसोस की बात तो यह है कि योगी राज में उन्हें उनकी काबिलियत नहीं बल्कि ठाकुर होने का लाभ मिला है। डॉ. आर.पी. सिंह की ही तरह भारतीय ओलम्पिक संघ के कोषाध्यक्ष डॉ.  आनंदेश्वर पांडेय की पहुंच का लाभ भी उत्तर प्रदेश के खिलाड़ियों या खेल से जुड़े लोगों को मयस्सर नहीं हुआ है। आनंदेश्वर पांडेय की सबसे बड़ी खूबी इनकी कार्यक्षमता नहीं बल्कि अधिकारियों की मर्जी का ख्याल रखा जाना है।  

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