कोरोना ने छीनी शारीरिक शिक्षक-प्रशिक्षकों की रोजी-रोटी

सरकार ध्यान दे वरना व्यक्तित्व विकास को लग जाएगा ग्रहण

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। कोरोना संक्रमण ने वैसे तो हर क्षेत्र को प्रभावित किया है लेकिन इसकी सबसे घातक मार शारीरिक शिक्षक, प्रशिक्षक और सांस्कृतिक शिक्षकों पर पड़ी है। देश का कोई भी ऐसा शहर और कस्बा नहीं है जहां छात्र-छात्राओं का व्यक्तित्व विकास प्रभावित न हुआ हो। केन्द्र, राज्य सरकारों तथा शैक्षिक संस्थानों के मालिकों ने इस दिशा पर तत्काल ध्यान नहीं दिया तो सच मानिए देश अपनी ऐसी ऊर्जा से हाथ धो बैठेगा, जिसकी आज दुनिया भर में मांग है।     

किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए इंसान के व्यक्तित्व की निर्णायक भूमिका होती है। बच्चे के बाल्यकाल से लेकर उसकी युवा अवस्था तक व्यक्तित्व विकास की महती जवाबदेही शारीरिक शिक्षक, प्रशिक्षक और सांस्कृतिक शिक्षक पर ही होती है। देखा जाए तो कोरोना संक्रमण काल के पिछले छह माह सम्पूर्ण जनमानस के लिए परेशानी भरे बीते हैं लेकिन इसका सबसे घातक असर निजी शैक्षिक संस्थानों में कार्यरत शारीरिक शिक्षकों, प्रशिक्षकों और सांस्कृतिक शिक्षकों पर हुआ है। निजी शैक्षिक संस्थानों के मालिकों ने बच्चों के व्यक्तित्व विकास को ठेंगा दिखाते हुए ऐसी स्थिति निर्मित कर दी है, जिस पर शीघ्र ही ध्यान नहीं दिया गया तो सब दूर वीरानी छा जाएगी और भारत बीमार राष्ट्र की श्रेणी में आ जाएगा।

हमारी सरकारें स्वस्थ भारत का सपना देखती हैं लेकिन स्वस्थ भारत के मार्गदर्शकों के अरमानों पर तुषारापात करने में जरा भी देर नहीं लगातीं। कोरोना संक्रमण के इस दौर में खेलपथ से जुड़े सैकड़ों खबरनवीशों ने हर शहर और कस्बों में निजी शैक्षिक संस्थानों में कार्यरत हजारों शारीरिक शिक्षक, प्रशिक्षक और सांस्कृतिक शिक्षकों से बात की है। बातचीत का नतीजा यह है कि छात्र-छात्राओं के अनंत संघर्ष में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले शारीरिक शिक्षक, प्रशिक्षक और सांस्कृतिक शिक्षकों की नौकरी चली जाने से वे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। इनकी हालत इतनी चिन्ताजनक है कि इन्हें अपने घर-परिवार का भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो रहा है।

देखा जाए तो हम व्यक्तित्व विकास के माध्यम से ही खुशहाल भारत का निर्माण कर सकते हैं। हम छात्र-छात्राओं को कितनी ही बेहतरीन शिक्षा क्यों न दे दें यदि उनका व्यक्तित्व विकास नहीं हुआ तो सच मानिए उनके जीवन का कोई मूल्य नहीं है। जब यह बात इंसान के शरीर से जुड़ी हो तब तो इस दिशा पर ध्यान दिया जाना और भी आवश्यक हो जाता है। शारीरिक शिक्षा हमें मानसिक तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने में मदद करती है। शारीरिक शिक्षा में छात्र-छात्राओं को कई तरह के खेलों के बारे में बताया जाता है जिससे उनके शरीर को ऊर्जा मिलती है तथा उनका रक्त संचार भी बेहतर रहता है।

खेल एवं शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ रही सम्भावनाओं को देखते हुए हम शारीरिक शिक्षकों और प्रशिक्षकों के महत्व को कतई नजरअंदाज नहीं कर सकते। छात्र-छात्राओं के करियर को पंख लगाने वाले आर्थिक रूप से तंगहाल शारीरिक शिक्षक-प्रशिक्षकों की तरफ न केवल सरकारों को बल्कि शैक्षिक संस्थानों के मालिकों को भी तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। कोरोना संक्रमण के फेर में शारीरिक शिक्षक-प्रशिक्षकों की उपेक्षा देश के लिए घातक साबित हो सकती है। देशवासियों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने का कार्य सिर्फ और सिर्फ एक कुशल शारीरिक शिक्षक और प्रशिक्षक ही कर सकता है।

आजकल स्वास्थ्य के प्रति हमारे अंदर आई जागरूकता के कारण हम जिम, योग आदि के प्रति सजग हो रहे हैं और इनको अपना रहे हैं। शारीरिक शिक्षा प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के समय में पढ़ाया जाने वाला एक ऐसा पाठ्यक्रम है जिसकी इंसान को जीवन भर जरूरत पड़ती है। शारीरिक शिक्षा छात्र-छात्राओं के शारीरिक विकास तथा कार्यों के समुचित संपादन में भी बहुत ही सहायक होती है। देखा जाए तो आज संसार के सभी देशों में शारीरिक शिक्षा को महत्व दिया जा रहा है, जबकि हमारे देश में शारीरिक शिक्षकों के महत्व की अनदेखी की जा रही है। सच्चाई यह है कि बच्चों की अभिरुचि, प्रवृत्ति तथा क्षमता में वृद्धि बिना शारीरिक शिक्षक के नहीं हो सकती लिहाजा शैक्षिक संस्थानों के मालिकों को इनकी फिक्र करते हुए इन्हें तत्काल सेवा में लेकर इन्हें आर्थिक मदद करनी चाहिए।

 

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