खिलाड़ी के जीवन में प्रशिक्षक सर्वोपरि

खेलपथ प्रतिनिधि
ग्वालियर। खेल के मैदान पर कोच शिक्षक होता है। कोच का ईमानदार प्रयास और खिलाड़ी की मेहनत से ही कामयाबी की कहानी लिखी जाती है। एक अकेले शख्स पुलेला गोपीचंद की प्रतिबद्धता ने भारतीय बैडमिंटन को बदल दिया और भारतीय बैडमिंटन में सुनहरे युग की शुरुआत हो गई। वर्ल्ड और ओलम्पिक सिल्वर मेडलिस्ट पीवी सिंधु और ओलम्पिक कांस्य पदक विजेता साइना नेहवाल इन्हीं गोपीचंद की शागिर्द हैं। पी. कश्यप, ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज़ विजेता किदांबी श्रीकांत और सिंगापुर ओपन चैंपियन साई प्रणीत भी गोपीचंद एकेडमी से निकले हैं। गोपीचंद खुद एक खिलाड़ी रहे हैं। 2001 में वे ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी बने थे, उनसे पहले प्रकाश पादुकोण ने ये ख़िताब जीता था।
एक खिलाड़ी ने क्रिकेट को हमेशा के लिए बदल दिया. सचिन तेंदुलकर के कारण एक पूरी पीढ़ी ने क्रिकेट खेलना शुरू किया। किशोर महेंद्र सिंह धोनी बल्ले पर MRF लिखकर खेले तो युवराज सिंह ने सचिन का नंबर GOD के नाम से SAVE कर रखा है और कप्तान विराट कोहली सचिन के कितने बड़े फ़ैन रहे हैं ये बताने की जरूरत नहीं है। मगर सचिन को सचिन बनाया रमाकांत आचरेकर ने। आचरेकर का भारतीय क्रिकेट में किसी से कम योगदान नहीं है। सचिन तेंदुलकर के अलावा विनोद कांबली, प्रवीण आमरे जैसे क्रिकेट प्रतिभाओं को सींचने और संवारने का काम रमाकांत आचरेकर ने ही किया था।
दिल्ली के पश्चिम विहार के लड़के से भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनने की विराट कोहली की कहानी वेस्ट डेल्ही क्रिकेट एकेडमी में लिखी गई। 1998 में इसे राजकुमार शर्मा ने प्रारंभ किया था। कोहली 1998 से ही राजकुमार शर्मा के पास आते थे। कुछ समय पहले जब कोहली को कुछ परेशानी हो रही थी तब उन्होंने राजकुमार शर्मा से ही सलाह ली थी। बीजिंग ओलम्पिक में कांस्य और लंदन में रजत पदक जीतने वाले पहलवान सुशील कुमार की कहानी बेहद दिलचस्प है। 1982 के दिल्ली एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले गुरु सतपाल उनके कोच रहे हैं। बाद में सुशील की शादी सतपाल की बेटी से हुई लिहाजा सतपाल उनके कोच भी हैं और ससुर भी।
रिलेटेड पोस्ट्स