गैर परम्परागत खेलों को भी मिले महत्व

नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की दरकार

मनीषा शुक्ला

कानपुर। खेल कोई भी हो उसे महत्व सभी खेलों के बराबर मिलना चाहिए। पिछले एशियाई खेलों में जब भारत ने रिकार्डतोड़ प्रदर्शन किया था तब गैर परम्परागत खेलों में उसके खिलाड़ियों ने 18 पदक जीते थे। तब हमारे हमारे खिलाड़ियों ने ब्रिज जैसे खेल में स्वर्ण पदक हासिल किया था, जिनके बारे में बहुत ज्यादा लोग नहीं जानते थे। महत्वपूर्ण यह है भी कि हमने एथलेटिक्स में सुनहरी कामयाबी हासिल की, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये भारतीय मनोदैहिक संरचना के अनुरूप नहीं है।

जकार्ता में हुए 18वें एशियाई खेलों में कोई खिलाड़ी तपते बुखार तो कोई दांत दर्द में भी स्वर्ण पदक लाया तो कोई छह उंगलियों वाले पैर के लिये जूते न मिलने के बावजूद हेप्टाथलॉन में पहली बार स्वर्ण पदक जीता था। देखा जाए तो पिछले एशियाई खेल भारतीय युवा खिलाड़ियों के नाम रहे। हाल ही राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों में पहली बार युवा खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार से नवाजे जाने को लेकर कुछ नामचीन खिलाड़ियों ने इसे पुरस्कारों की गरिमा कम होने का हवाला दिया, जोकि तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता। हमें उभरते खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने की दरकार है।

पिछले एशियाई खेलों में मेरठ के पंद्रह वर्षीय शार्दुल विहान ने डबल ट्रैप स्पर्धा में रजत तो सोलह वर्षीय सौरभ चौधरी ने दस मीटर एयर पिस्टल में सोने का तमगा जीता था। अतीत में युवा पीढ़ी के दमदार प्रदर्शन से यह निष्कर्ष साफ है कि नई पीढ़ी के खिलाड़ी गैर परम्परागत खेलों में कामयाबी के बारे में गम्भीरता से सोचने लगे हैं। वे जैसे-तैसे संसाधन जुटाते हैं और कामयाबी की नई इबारत लिख देते हैं। जकार्ता एशियाई खेलों ने उम्मीद बंधाई थी कि हमारे खिलाड़ी टोक्यो ओलम्पिक में अच्छा करेंगे। हमें यह स्वीकारना होगा कि देश में क्रिकेट मोह से इतर नई खेल संस्कृति विकसित हो रही है  जिसे सरकार, खेल संगठनों व कॉरपोरेट घरानों द्वारा पर्याप्त प्रोत्साहन दिया जाना जरूरी है।

गुमनाम खेलों से चमकी थी भारत की किस्मत

भारत के पिछले एशियाई खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में कई ऐसे गुमनाम खेलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही जिनके बारे में अब से पहले चंद ही लोग जानते थे। इंडोनेशिया के जकार्ता और पालेमबांग में हुए 18वें एशियाई खेलों में भारत ने 15 स्वर्ण, 24 रजत और 30 कांस्य सहित कुल 69 पदक जीतकर पिछले 67 वर्षों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में कुछ ऐसे खेलों की अहम भूमिका रही जिनके बारे में सामान्य ज्ञान की किताबों में भी जानकारी नहीं मिलती।

इन खेलों से यदि किसी कुराश या सेपकटकरा के बारे में पूछा जाए तो संभवत: हम सब बगलें झांकते नजर आएंगे। लेकिन इंडोनेशिया में हुये एशियाई खेलों ने ऐसे अनजान खेलों से हर भारतीय को अवगत करा दिया था। कुछ ऐसे खेल थे जिनके नाम तो सुने थे लेकिन उनके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं थी। एशियाड के प्रदर्शन से अब ऐसे खेलों के बारे में भी जानकारी सामने आ गयी है। भारत ने उज्बेकिस्तान के परम्परागत खेल कुराश में एक रजत और एक कांस्य सहित दो पदक हासिल किये जबकि वुशू में भारत को चार कांस्य पदक मिले। पैरों की मदद से गेंद के साथ खेले जाने वाले खेल सेपकटकरा में भारत ने ऐतिहासिक कांस्य हासिल किया। सेलिंग और रोइंग तो खैर जाने-माने नाम हैं लेकिन इनकी याद हमेशा चार साल बाद एशियाई खेलों के समय ही आती है। भारत ने रोइंग में एक स्वर्ण और दो कांस्य सहित तीन पदक और सेलिंग में एक रजत और दो कांस्य सहित तीन पदक हासिल किए थे।

घुड़सवारी जाना-पहचाना नाम है लेकिन इसके लिये भारतीय टीम को आखिरी क्षणों में केंद्रीय खेल मंत्रालय की ओर से मंजूरी मिली थी। घुड़सवारी महासंघ ने पहले टीम घोषित की लेकिन फिर अपने चयन को ही अवैध करार दिया और भारतीय ओलम्पिक संघ ने इस टीम की एशियाड दल से छुट्टी कर दी। मंत्रालय ने इस टीम को मंजूरी दिलाई और घुड़सवारों ने 1982 के नयी दिल्ली एशियाई खेलों के बाद पहली बार घुड़सवारी में दो रजत जीते।

ब्रिज, जो ताश का खेल है और जिसे बतौर खेल कम मान्यता है, उसमें भारत ने एक स्वर्ण और दो कांस्य सहित तीन पदक जीत लिये। ब्रिज में दो बुजुर्ग खिलाड़ियों 60 साल के प्रणब बर्धन और 56 साल के शिबनाथ सरकार ने स्वर्ण दिलाया। इस स्वर्ण से देश में ब्रिज को एक खेल के रूप में आधिकारिक मान्यता पाने में जरूर मदद मिलेगी। भारत ने इन अनजान खेलों में कुल 69 पदकों में से 18 पदक हासिल किये और इन पदकों का ही नतीजा है कि भारत ने एशियाई खेलों के 67 वर्षों के इतिहास में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर डाला।

देखा जाए एशियाई खेलों के शुभारम्भ का श्रेय भारत को ही जाता है। साल 1951 में हुए एशियाई खेलों को पहले एशियाई खेल कहा जाता है। इनका आयोजन दिल्ली में चार से 11 मार्च के बीच हुआ था। तब आयोजन समिति ने एशिया के लगभग सभी देशों को न्योता भेजा था मगर चीन की तरफ से कोई जवाब नहीं आया था जबकि कश्मीर विवाद के कारण पाकिस्तान ने हिस्सा लेने से इंकार कर दिया था। उन खेलों में भारत समेत 11 देशों के 189 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। मेडल टैली में जापान पहले और भारत दूसरे नम्बर पर था। जापान को 24 गोल्ड, 21 सिल्वर और 15 कांस्य पदकों के साथ कुल 60 पदक मिले थे वहीं भारत को 15 स्वर्ण, 16 रजत और 20 कांस्य पदकों के साथ 41 पदक मिले थे।

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