क्रिकेट,
चेतन चौहान ने बचाई थी नवजोत सिद्धू की जान
नोएडा। चेतन चौहान बेशक हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका करिश्माई व्यक्तित्व हमेशा जिन्दा रहेगा। चाहे टूटे हुए जबड़े के साथ रणजी ट्राफी में लगातार दो शतक लगाने की बात हो या फिर ऑस्ट्रेलिया में टूटे हुए अंगूठे के साथ तेज रफ्तार डेनिस लिली और जैफ थॉमसन का सामना करना हो, चेतन चौहान ने दिखाया था कि वह दिलेर क्रिकेटर हैं। रविवार 16 अगस्त को कोविड-19 के चलते हुई परेशानियों से अपनी जान गंवाने वाल चेतन चौहान सिर्फ मैदान ही नहीं बल्कि बाहर भी सही मायनों में लड़ाके थे।
उत्तर क्षेत्र के पूर्व क्रिकेटरों ने याद किया कि कैसे 31 अक्टूबर, 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में हुए सिख विरोधी दंगों में चौहान ने नवजोत सिंह सिद्धू और राजिंदर घई को बचाया था। यह घटना झेलम एक्सप्रेस में हुई थी जब खिलाड़ी उत्तर क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र के बीच हुए दिलीप ट्राफी के सेमीफाइनल के बाद पुणे से लौट रहे थे।
इस घटना को याद करते हुए हरियाणा के पूर्व ऑफ-स्पिनर सरकार तलवार ने बताया, 'मैच 30 अक्टूबर को समाप्त हुआ। अगली सुबह जब हम एयरपोर्ट के लिए तैयार हो रहे थे तब हमें खबर मिली कि प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई है। तो हमारे टीम मैनेजर प्रेम भाटिया ने हमें झेलम एक्सप्रेस के फर्स्ट क्लास के टिकट लाकर दिए। यह एक बहुत बुरा सफर था। हमें दिल्ली पहुंचने में चार दिन का वक्त लगा।'
तलवार ने आगे बताया, 'एक स्टेशन पर करीब 40-50 लोग हमारे डिब्बे में चढ़े। वे सिख समुदाय के लोगों को ढूंढ़ रहे थे। हमारी टीम में तीन सिख खिलाड़ी- नवजोत सिंह सिद्धू, राजिंदर घई और योगराज सिंह थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि चेतन चौहान और यशपाल शर्मा ने भीड़ से काफी बहस की। यह बहस बहुत गरम हो गई थी। जब भीड़ को पता चला कि वे भारतीय क्रिकेटर हैं तो वे डिब्बे से उतर गए।'
खिलाड़ी इतना डर गए थे कि उन्होंने सिद्धू और घई को लोअर बर्थ के नीचे, किट बैग के पीछे छुपा दिया था। पूर्व क्रिकेटर योगराज सिंह ने तो सिद्धू को अपने केश काटने तक को कहा था। पूर्व ऑलराउंडर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह याद करते हैं, 'यह बहुत डरावना था। वे ट्रेनें जला रहे थे और चेतन चौहान और यशपाल शर्मा से उनकी बहस के बाद मैंने सिद्धू से कहा था कि वह केश काट ले। उसने मना कर दिया और कहा, 'पाजी मैं सरदार पैदा हुआ हूं और सरदार ही मरूंगा।''
उन्होंने आगे कहा, 'मुझे याद है कि भीड़ ने चेतन चौहान से चिल्लाते हुए कहा, 'हम यहां सरदारों को मारने आए हैं, तुम्हें कुछ नहीं होगा।' चेतन ने जवाब दिया, 'वे मेरे भाई हैं और तुम उन्हें छू भी नही सकते।' जिस तरह चेतन ने मामले को संभाला वह वाकई काबिलेतारीफ था।'
गुरशरण सिंह उस समय दूसरे डिब्बे में थे। उन्होंने कहा, 'अगर चेतन चौहान नहीं होते तो मुझे नही लगता कि हममें से कोई जिंदा होता। मैं और राजिंदर हंस (उत्तर प्रदेश के पूर्व बाएं हाथ के स्पिनर) दूसरे डिब्बे में थे और जब हमें घटना के बारे में पता चला हम काफी डर गए। लेकिन चेतन चौहान हमारे पास आए और हमें आश्वासन दिया कि हम सुरक्षित हैं और भीड़ हमें कुछ नहीं कहेगी।'