12 साल पहले आज ही के दिन देश को मिला था 'गोल्डन ब्वॉय' अभिनव बिन्द्रा

नई दिल्ली। एक खिलाड़ी के रूप में मैंने हमेशा अपना सौ फीसदी दिया। मेरे निशाने पर हमेशा मछली की आंख रही है। खेल के दौरान मैंने हमेशा अपनी प्रगति पर ध्यान केंद्रित किया और शायद ही ट्रेनिंग और टूर्नामेंट के इतर मैंने कुछ और सोचा हो। इसका फल भी मुझे मिला।
यह कहना है देश के एकमात्र व्यक्तिगत ओलंपिक चैंपियन निशानेबाज अभिनव बिंद्रा का। बारह साल पहले आज ही के दिन (11 अगस्त, 2008) बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक में पुरुषों की दस मीटर एयर राइफल स्पर्धा में सोने पर निशाना साध न सिर्फ अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करवाया बल्कि देश का वर्षों का पीले तमगे का सूखा भी खत्म किया। वह किसी भी खेल में व्यक्तिगत स्वर्ण जीतने वाले भारतीय बने थे।
वहीं 1980 मास्को ओलम्पिक खेलों के बाद यह देश का पहला स्वर्ण पदक था। मास्को में हॉकी टीम ने पीला तमगा जीता था। बिंद्रा के अलावा पहलवान सुशील कुमार ने और मुक्केबाज विजेेंद्र सिंह ने कांस्य जीते थे। देश को सौ साल में सिर्फ एक ओलंपिक चैंपियन मिला।  
जल्द मिलेगा दूसरा चैम्पियन
37 वर्षीय इस निशानेबाज ने कहा कि देश को दूसरा ओलंपिक चैंपियन जल्द मिलेगा। युवा खिलाड़ी बहुत अच्छा कर रहे हैं। सिर्फ शूटिंग में ही नहीं अन्य खेलों में भी। मुझे नहीं लगता कि हम एक और स्वर्ण पदक से बहुत दूर हैं।
2028 में शीर्ष दस में आना संभव
बिंद्रा को भी उम्मीद है कि भारत 2028 ओलंपिक में शीर्ष दस में शामिल हो सकता है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि यह संभव है। लेकिन ऐसा करने के लिए अभी से काम शुरू हो जाना चाहिए।
एथलीटों को सर्वोत्तम सुविधाओं के साथ ही विशेषज्ञ कोचों का मार्गदर्शन मिलना शुरू हो गया है। अपनी फाउंडेशन के माध्यम से मैंने भी यह प्रक्रिया शुरू की है। जहां विभिन्न खेलों के 50 से अधिक एथलीटों को स्टीम छात्रवृत्ति के तहत देश में ही बेहतर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
पास पहुंच चूक गए विजय और सिंधु
बिंद्रा के चार साल बाद शूटर विजय कुमार लंदन ओलंपिक (2012) में शटलर पीवी सिंधु रियो ओलंपिक (2016) में चैंपियन बनने के करीब पहुंचे थे, लेकिन चूक गए। इन दोनों को रजत मिला।
1900 में पिचार्ड ने जीता था पहला पदक
हालांकि 1900 के पेरिस ओलंपिक में ब्रिटिश शासन वाले भारत की ओर से पहली बार नार्मन पिचार्ड गेम्स में शामिल हुए थे। उन्होंने 200 मीटर दौड़ और 200 मी. बाधा दौड़ में दो रजत पदक जीते थे। कई इतिहासकार इस पदक को भारत के खाते में नहीं गिनते, क्योंकि पिचार्ड ब्रिटिश मूल के थे। जबकि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) इसे भारत के खाते में गिनती है।
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