नाम ही नहीं मुल्क का मान हैं पूनम

जरूरी नहीं रोशनी चिरागों से ही हो,
बेटियां भी घर में उजाला करती हैंः
श्रीप्रकाश शुक्ला

आज दिल ने किया कि कुछ ऐसा लिखा जाए जो विशेष हो। पूनम शब्द से मुझे बेहद लगाव है। इसकी वजह इस नाम की बेटियों की हर क्षेत्र में कामयाब दस्तक कह सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर भारत की स्थिति बेशक जय-जयकार करने वाली न हो लेकिन दोस्तों आपको जानकर ताज्जुब होगा कि पूनम नाम की आधा दर्जन से अधिक बेटियां आज भारत का मान और अभिमान हैं।
खेल पर आधारित फिल्मों में बेटियों को दांव लगाते और गोल करते देख हमारा सीना गर्व से फूल जाता है और तालियां-सीटियां भी बजने लगती हैं लेकिन असल जिन्दगी में जब देश की बेटियां मेडल लेकर आती हैं तो अपने साथ कुछ सपने भी लाती हैं, सोचती हैं कि इस मेडल के साथ उसके और उसके परिवार का भी जीवन कुछ बदलेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। राज्य और देश को गौरवान्वित करने वाली अधिकांश बेटियों को मदद की कौन कहे उन्हें परिवार का गुजारा करने लायक तनख्वाह वाली एक नौकरी तक नहीं मिलती।
हम आज उन पूनम बेटियों से रूबरू कराते हैं जिनके खेल कौशल से सारा मुल्क गौरवान्वित है। पूनम नाम की ये बेटियां उन घरों से निकली हैं, जिनका बचपन अभावों में बीता है। इन बेटियों के सपनों को पर लगाने के लिए इनके माता-पिता ने हर वह जख्म सहा है, जिसे जानकर रुह कांप जाती है। किसी भी मां-बाप के लिए बेटी को खिलाड़ी बनाना कभी आसान नहीं रहा। कई मां-बाप तो सामाजिक ताने सुनने के बाद ही हौसला हार जाते हैं। जो अभिभावक अपने हौसले से समाज को पराजित करते हैं, उन्हीं की बेटियां मुल्क का नाम रोशन करती हैं।
आज खेल के क्षेत्र में जिस नाम का सबसे अधिक बोलबाला है उनमें पूनम नाम की बेटियां सिरमौर हैं। बात हाकी खिलाड़ी पूनम मलिक की हो, क्रिकेटर पूनम राउत या फिर पूनम यादव की इनके खेल का आज हर कोई मुरीद है। भारतीय खेलप्रेमी वाराणसी की बेटी पूनम यादव को गोल्ड कोस्ट में स्वर्णिम भार उठाते देख चुके हैं तो पर्वतारोही पूनम राणा ने एवरेस्ट फतह कर सबको हैरत में डाला है। उत्तरकाशी के नाल्ड गांव की पूनम राणा तीन सदस्यीय दल में सबसे छोटी थी लेकिन उसकी जिन्दगी में आई मुसीबतों को देखते हुए यह कामयाबी सबसे बड़ी साबित हुई। पूनम राणा ने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था, जबकि उसके दो भाइयों की कुछ साल पहले ही अचानक मौत हो गई। दुनिया की पहली महिला एवरेस्टर बछेंद्री पाल ने इस बेटी को सहारा देकर पर्वतारोहण में निपुण बनाया।
42 साल की हरदोई निवासी पूनम तिवारी ने वेटलिफ्टिंग और पावर लिफ्टिंग में न केवल मुल्क का नाम रोशन किया बल्कि अपने परिवार का भरण-पोषण कर एक नई मिसाल कायम की। आज वह नई तरुणाई को वेटलिफ्टिंग और पावर लिफ्टिंग में फौलादी बना रही हैं। इंटरनेशन फुटबाल खिलाड़ी पूनम चौहान का असमय काल के गाल में समा जाना आज भी मन को व्यथित कर देता है। पूनम नाम की इन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के अलावा देश में दर्जनों और भी पूनम बेटियां हैं जो देर-सबेर मुल्क को अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर गौरवान्वित करेंगी।

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