खेलों में सौम्या की सौम्यता और योग्यता का जवाब नहीं

हर पल खेलों के उत्थान पर ही देती हैं ध्यान

नूतन शुक्ला

कानपुर। स्कूल-कालेज सिर्फ ज्ञान का मंदिर ही नहीं होते, यहां शिक्षा के साथ छात्र-छात्राओं के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास की तरफ भी ध्यान देने की जरूरत होती है। यह काम वही कर सकता है जिसका खेलों से न केवल वास्ता हो बल्कि कुछ कर गुजरने का जुनून भी हो। कानपुर के लिए खुशी की बात है कि यहां कई स्कूल-कालेज ऐसे हैं जहां छात्र-छात्राओं को शिक्षा के साथ खेलों में भी पारंगत किया जाता है। ऐसे शिक्षण संस्थानों में हम डा. वीरेन्द्र स्वरूप एज्यूकेशन सेण्टर का नाम भी प्रमुखता से ले सकते हैं। यह शिक्षण संस्थान खिलाड़ी से खेल शिक्षक, खेल प्रमोटर और इंटरनेशनल निर्णायक बनीं सौम्या अवस्थी की कड़ी मेहनत और लगन के चलते कानपुर में विशिष्ट स्थान रखता है।

देखा जाए तो अनुशासन और चरित्र निर्माण में खेलों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। खेल ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे जीवन में श्रेष्ठता हासिल की जा सकती है। शिक्षा का महत्व तो सभी जानते हैं लेकिन जब तक छात्र-छात्राएं स्वस्थ और निरोगी नहीं होंगे तब तक शिक्षा के कोई मायने नहीं। स्वस्थ रहने के लिए अनुशासन के साथ व्यायाम व खेलकूद भी आवश्यक हैं। इससे मनुष्य के शरीर में स्वस्थ दिमाग रहता है और व्यक्ति जीवन की दौड़ में कभी पीछे नहीं रहता। खेलों के महत्व को सौम्या अवस्थी न केवल समझती हैं बल्कि उसे वह डा. वीरेन्द्र स्वरूप एज्यूकेशन सेण्टर में लागू करने का भरसक प्रयास भी करती हैं।

बेटियों के लिए खेलों का रास्ता कभी आसान नहीं रहा है, यह बात वही बेटियां समझ सकती हैं जिन्होंने खेलों को अपना करियर बनाने का सपना देखा हो। सौम्या का अपने स्कूली जीवन से ही खेलों से बेहद लगाव रहा है। वह स्कूली समय से ही एथलेटिक्स में न केवल रुचि रखती थीं बल्कि प्रतियोगिताओं में पूरी तैयारी के साथ उतरती भी थीं। राज्य, इंटर-यूनिवर्सिटी, इंटर जोन तथा आल इंडिया यूनिवर्सिटी स्तर तक सौम्या ने खो-खो, कबड्डी, वालीबाल तथा बास्केटबाल में खूब हाथ आजमाए और अनगिनत सफलताएं भी हासिल कीं। सौम्या ने खेलों में अपने देश का नाम रोशन करने का सपना भी देखा लेकिन पारिवारिक और सामाजिक प्रोत्साहन के अभाव में वह अपने सपने को साकार नहीं कर पाईं, इस बात का उन्हें बेहद मलाल है। आखिरकार सौम्या ने खेल शिक्षा के क्षेत्र में नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करने का दृढ़-संकल्प लिया और जबलपुर से बी.पी.एड. तथा एम.पी.एड. की शिक्षा पूरी करने के बाद खिलाड़ियों का कौशल निखारने में प्राणपण से जुट गईं।

डा. वीरेन्द्र स्वरूप एज्यूकेशन सेण्टर में रहते हुए सौम्या अवस्थी ने सैकड़ों प्रतिभाओं के खेल को नया आयाम दिया। यहां के छात्र-छात्राएं लगातार अच्छा कर रहे हैं। खिलाड़ियों की प्रतिभा निखारने के साथ ही सौम्या इंटरनेशनल एथलेटिक्स मीट में टेक्निकल जज की भूमिका का निर्वहन भी कर चुकी हैं। इतना ही नहीं हरफनमौला सौम्या अवस्थी की योग्यता को देखते हुए इन्हें दक्षिण एशियाई खेलों, एशियन खेलों सहित राष्ट्रमंडल खेलों में बतौर निर्णायक काम करने का मौका भी मिला चुका है। सौम्या को खेलों के क्षेत्र में जो भी, जैसे भी अवसर मिले इन्होंने उन्हें जाया न करते हुए कानपुर का नाम रोशन करने में कोई कोताही नहीं बरती। सौम्या कहती हैं कि उन्हें खेलों के क्षेत्र में जिन-जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ा, वह चाहती हैं कि ऐसी दिक्कतें आने वाली पीढ़ी को न देखनी पड़ें। बकौल सौम्या खेल विधा मैदानों तक ही सीमित नहीं है, इस क्षेत्र में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। मैं चाहती हूं कि डा. वीरेन्द्र स्वरूप एज्यूकेशन सेण्टर से ऐसे खिलाड़ी निकलें जिनका नाम समूचा देश गर्व और गौरव से ले। उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है, यहां प्रतिभाओं की भी कमी नहीं है। जरूरत है खेलों की तरफ जमीनी स्तर पर ध्यान देने की।

      

      

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