शारीरिक शिक्षा, खेल एवं योग के आनंददायक अधिगम में नेता-नौकरशाह रुकावट

नई शिक्षा नीति का मखौल उड़ा रहे अज्ञानी
श्रीप्रकाश शुक्ला
किसी भी राष्ट्र के चहुंमुखी विकास एवं समृद्धि में उसके स्वस्थ नागरिकों की अहम भूमिका होती है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क विकास करता है। इस दृष्टि से विद्यार्थियों के शारीरिक स्वास्थ्य का उतना ही महत्व है जितना कि उनके मानसिक स्वास्थ्य का परन्तु बहुत ही खेद का विषय है कि हमारे देश में शारीरिक शिक्षा पर बहुत ही कम ध्यान दिया जा रहा है। अज्ञानी नेता और नौकरशाह न केवल नई शिक्षा नीति का मखौल उड़ा रहे हैं बल्कि सम्मानित शारीरिक शिक्षकों तथा योग प्रशिक्षकों का शोषण भी कर रहे हैं।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में यह आवश्यक है कि हम सभी इस तथ्य को समझें और विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए। मानव एक मनो-शारीरिक प्राणी है। मनुष्य का व्यवहार शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही प्रकार के कारकों पर निर्भर करता है। मनुष्य के स्वास्थ्य में शारीरिक शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिसके द्वारा किसी भी राष्ट्र में कार्यशील मानव संसाधन बढ़ता है तथा राष्ट्र आर्थिक विकास के लक्ष्यों को निश्चित समय सीमा में प्राप्त करने में सक्षम होता है। स्वास्थ्य शिक्षा और शारीरिक शिक्षा एक-दूसरे के पूरक हैं। बिना स्वास्थ्य के शरीर नहीं रह सकता और बिना शरीर के स्वास्थ्य का प्रश्न ही नहीं उठता। अतः स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
प्राचीनकाल से ही शारीरिक शिक्षा पर व्यक्तिगत एवं सामुदायिक रूप से ध्यान देने के अनेकों उदाहरण मिलते हैं। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि ‘‘शिक्षा व्यक्ति में निहित पूर्णता का प्रकटीकरण है।’’ शिक्षा का मुख्य लक्ष्य व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। इसी लक्ष्य की प्राप्ति के दृष्टिगत नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शारीरिक शिक्षा, खेल एवं योग शिक्षा को परस्पर एकीकृत कर दिया गया है जिससे हम नवीन पीढ़ी को औपचारिक शिक्षा के माध्यम से शारीरिक शिक्षा एवं फिटनेस के प्रति जागरूक कर सकें। शारीरिक शिक्षा, खेल एवं योग प्रशिक्षण किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं कल्याण सम्बन्धी पक्षों के विकास में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान कर सकते हैं।
शारीरिक शिक्षा में जहां पेशीय क्रियाओं तथा उनके माध्यम से शरीर का समन्वित विकास आता है, वहीं स्वास्थ्य शिक्षा में वह समस्त ज्ञान सम्मिलित होता है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य ज्ञान, स्वास्थ्य रक्षा, स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों एवं स्वास्थ्य रक्षा संबंधी उचित अभिवृत्तियों के निर्माण से सम्बन्धित है। शारीरिक शिक्षा पर शिक्षा आयोग (1964-66) का सुझाव है कि इस शिक्षा में विकासात्मक व्यायाम, लयपूर्ण कार्यकलाप, खेलकूद, भ्रमण और सामूहिक क्रिया कलाप सम्मिलित होने चाहिए। हमारे देश में आज भी शारीरिक शिक्षा के व्यापक अर्थ को ठीक प्रकार से नहीं समझा गया है। आज भी इसे शारीरिक प्रशिक्षण, शारीरिक संस्कृति, जिम्नास्टिक्स, स्पोर्ट्स, ड्रिल आदि समझा जाता है, जोकि सही नहीं है।
भारत में योग को प्राचीन शास्त्र एवं दर्शन माना जाता है। योग भारतीय तत्वज्ञान तथा संस्कृति का मुख्य आधार है। ‘यजु‘ धातु से योग शब्द बनता है। योग का अर्थ है- जुड़ना। वस्तुतः योगासन शारीरिक व्यायाम ही नहीं वरन् यह मानसिक अभ्यास भी है। इसका प्रभाव मन पर भी पड़ता है, इसीलिए योगासन को मनो-शारीरिक प्रक्रिया के नाम से सम्बोधित किया जाता है। योग मनुष्य को आध्यात्मिक मानव भी बनाता है। इस दृष्टिकोण से योग का उद्देश्य मनुष्य के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक तीनों पक्षों के समन्वित विकास पर ध्यान केन्द्रित करना है। 2500 वर्ष पुराने योगशास्त्र में हठ योग, आष्टांग योग, मंत्र योग, भक्तियोग, ज्ञान योग, कर्मयोग एवं राजयोग जैसे अनेक प्रकार मिलते हैं। इन सभी का उद्देश्य एक ही है - मानवीय जीवन का परमोत्कर्ष अर्थात मोक्ष प्राप्ति, कैवल्य प्राप्ति, ईश्वरीय शाक्ति का साक्षात्कार, आत्मा व परमात्मा का मिलाप।
जब बच्चे को खेल-खेल में शिक्षा प्रदान की जाती है तो उसे ‘खेल शिक्षण विधि’ कहा जाता है। दूसरे शब्दों में एक अध्यापक के द्वारा छात्रों को खेल के माध्यम से सिखाने की विधि को खेल शिक्षण विधि कहते हैं। जब बालक किसी भी कार्य को स्वतः अभिप्रेरित होकर स्वाभाविक वातावरण में बिना किसी तनाव के सम्पूर्ण करता है तो उसे खेल विधि द्वारा सीखना कहते हैं। खेल विधि का मुख्य लक्ष्य आनंददायक अधिगम है। जिस प्रकार मछली का संबंध जल के साथ है, ठीक उसी प्रकार खेल का संबंध बच्चे से होता है। खेल किसी बच्चे-बच्ची के लिए एक अनिवार्य क्रिया होती है।
भारत एक तेजी से उभरती हुई वैश्विक महाशक्ति है। राष्ट्र निर्माण एवं विकास में स्वस्थ समाज एवं नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। समकालीन परिदृश्य में किसी भी देश के समक्ष अपने नागरिकों को स्वस्थ बनाये रखना एक प्रमुख चुनौती है। समाज को स्वस्थ बनाये रखने में शारीरिक शिक्षा, योग एवं खेलों का महत्वपूर्ण योगदान है। भारत सरकार ने देश के प्रत्येक नागरिक की शारीरिक फिटनेस, मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केन्द्रित किया है। इस लक्ष्य को दृष्टिगत सरकार ने कई अभिनव प्रयास किए हैं जिसमें फिट इंडिया मूवमेंट, खेलो इंडिया, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस एवं राष्ट्रीय खेल दिवस आदि का आयोजन प्रमुख है। वर्तमान समय में शारीरिक शिक्षा, खेल एवं योग शिक्षा को नवीन शिक्षा नीति, 2020 में प्रमुख स्थान देते हुए शिक्षा की नवीनतम संकल्पना प्रस्तुत की गयी है जिसके कारण भविष्य में भारत की शिक्षा प्रणाली में बहुआयामी बदलाव परिलक्षित होंगे।
नई शिक्षा नीति 2020 में शारीरिक शिक्षा को अंग्रेज़ी या विज्ञान जैसे ही अहम माना गया है। इस नीति के तहत, शारीरिक शिक्षा और खेल को पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है। नई शिक्षा नीति में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर से ही शारीरिक शिक्षा को अनिवार्य माना गया है। इसमें स्कूलों और कॉलेजों में शारीरिक शिक्षा के लिए संसाधनों की व्यवस्था करने, स्कूलों में योग्य और कुशल शारीरिक शिक्षक नियुक्त करने, विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट जैसी गतिविधियां कराने का स्पष्ट उल्लेख है।
नई शिक्षा नीति में बच्चों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान दिया गया है। इसमें बच्चों को फ़िट रखना, खेलों की अहमियत बताना, लड़कियों को भी आगे बढ़ाना, सभी बच्चों की स्कूल उपस्थिति बढ़ाना, विषयों को बाहरी दुनिया से जोड़कर पेश करना, विषयों को अच्छी तरह से समझने में मदद देना, जीवन में विषयों का इस्तेमाल करना सिखाना, शारीरिक गतिविधियों और व्यायाम के ज़रिए शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना शामिल है। जब नई शिक्षा नीति बनी है तो उस पर अमल होना जरूरी है। हम शारीरिक शिक्षकों तथा योग प्रशिक्षकों को सम्मानजनक जीवन जीने का हक देकर स्वस्थ समाज और राष्ट्र का कल्याण कर सकते हैं।