सुमित की मां ने कहा- भगवान ऐसा बेटा सबको दे

लोगों की अपेक्षाओं को देखकर नर्वस था सुमित 
खेलपथ संवाद
सोनीपत।
टोक्यो पैरालम्पिक में सफलता के झंडे गाड़ने के बाद पेरिस पैरालम्पिक खेलों में सोनीपत के जेवलिन थ्रोअर सुमित अंतिल ने लगातार दूसरी बार गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इतना ही नहीं, उन्होंने अपना पिछला पैरालम्पिक रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। सुमित की स्वर्णिम सफलता से उनके परिवार व गांव में खुशी का माहौल है। उनकी मां व परिवार वाले कहते नहीं थकते कि भगवान ऐसा कामयाब बेटा सबको दे।
पेरिस पैरालम्पिक में भारतीय दल के ध्वजवाहक व विश्व रिकॉर्ड होल्डर सुमित अंतिल पर सबकी निगाहें टिकी थीं। सोमवार देर रात सुमित ने एफ 64 श्रेणी में अपने पहले ही थ्रो में पिछला पैरालम्पिक रिकॉर्ड तोड़ दिया। दूसरे थ्रो में एक बार फिर पैरालम्पिक रिकॉर्ड को ध्वस्त कर धाक जमा दी। टोक्यो पैरालम्पिक खेलों में 68.55 मीटर जेवलिन थ्रो कर सुमित ने गोल्ड मेडल जीता था। इस बार उसमें सुधार करते हुए 70.59 मीटर थ्रो के साथ लगातार दूसरी बार पैरालम्पिक खेलों का गोल्ड देश की झोली में डाल दिया। हालांकि, वह हांगझोऊ एशियाई खेलों में 73.29 मीटर जेवलिन थ्रो कर बनाए अपने विश्व रिकॉर्ड के पास नहीं पहुंच पाए।
सुमित के गोल्ड मेडल जीतते ही गांव खेवड़ा में उनके घर पर काफी संख्या में मुकाबला देख रहे परिजन और ग्रामीण खुशी से उछल पड़े। सुमित की मां निर्मला देवी को उनकी मौसी सरोज ने मिठाई खिलाकर मुंह मीठा कराया। मां निर्मला देवी ने बताया कि हादसे के बाद उनका परिवार लगभग टूट गया था, लेकिन सुमित कभी निराश नहीं हुआ। साथियों से प्रेरणा पाकर एक बार फिर खेल के मैदान में पहुंचा और कोच विरेंद्र धनखड़ के मार्गदर्शन में आगे बढ़ा। उसके बाद दिल्ली में द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच नवल सिंह से जेवलिन की गुर सीखे। आज उनकी मेहनत का परिणाम सबके सामने है।
सड़क हादसे में पैर खोया, जज्बा नहीं
सुमित स्कूल में पढ़ाई के दौरान भारतीय खेल प्राधिकरण बहालगढ़, सोनीपत में कुश्ती सीखते थे। 2015 में अभ्यास के दौरान घर लौटते समय ट्रैक्टर की चपेट में आकर एक पैर गंवा बैठे। करीब दो साल तक मैदान से दूर रहे। ठीक होने के बाद दोबारा मैदान में उतरे, मगर इस बार कुश्ती के बजाय उन्होंने पैरा श्रेणी में जेवलिन थ्रो को चुना।
मीठे से की तौबा, दो महीने में 12 किलो वजन कम किया
पीठ की चोट से जूझ रहे सुमित अंतिल के पेरिस पैरालम्पिक स्वर्ण के पीछे बलिदानों की लंबी दास्तां है। पैरालंपिक से पहले तेजी से वजन बढ़ने के जोखिम के कारण सुमित को अपनी पसंदीदा मिठाइयों से परहेज करना पड़ा। पिछले साल हांगझोऊ पैरा एशियाई खेलों में कमर में लगी चोट उन्हें परेशान कर रही थी। फिजियो की सलाह पर सुमित ने मिठाई खाना छोड़ दिया और कड़ी डाइटिंग पर थे। उन्होंने दो महीने में 12 किलो वजन कम किया। सुमित ने कहा, ‘मैंने सही खुराक लेने पर फोकस रखा।’ सुमित ने कहा, मैं पूरी तरह से फिट नहीं था। मुझे अपने थ्रो से पहले पेनकिलर लेनी पड़ी। सबसे पहले मुझे कमर का इलाज कराना है। मैं सही तरह से आराम भी नहीं कर सका हूं। मैंने बहुत संभलकर खेला ताकि चोट बड़ी न हो जाये। सुमित ने कहा कि लोगों की अपेक्षाओं से उनकी रातों की नींद उड़ गई थी, ‘पिछली तीन रातों से मैं सोया नहीं हूं। लोगों की अपेक्षाओं को देखकर मैं नर्वस था।

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