दुनिया के नम्बर एक खेल फुटबॉल में कुछ ऐसी रही भारत की स्थिति

1992 से फीफा रैंकिंग में भारत के प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
फुटबॉल की दुनिया में रैंकिंग बहुत महत्व रखती है। हालांकि आधिकारिक फीफा रैंकिंग किसी भी राष्ट्रीय टीम की ताकत को आंकने का सटीक तरीका नहीं हो सकती, लेकिन इससे यह ज़रूर पता चलता है कि कोई देश अपने अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम और टूर्नामेंट में कैसा प्रदर्शन कर रहा है। परिणामों से ही टीमों की रैंकिंग निर्धारित होती है। 
भारत वर्तमान में फीफा रैंकिंग में 99वें स्थान पर है। भारतीय पुरुष फुटबॉल टीम की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग 94 रही है, जो फरवरी 1996 में हासिल की गई थी। दुनिया के नम्बर एक खेल में भारत का कैसा उतार-चढ़ाव रहा, इस आलेख में हमने यही बताने का प्रयास किया है। यहां यह ध्यान रखने वाली बात है कि रैंकिंग बड़े टूर्नामेंट के लिए ड्रॉ और सीडिंग में एक बड़ी भूमिका निभाती है। 1992 में फीफा रैंकिंग की स्थापना के बाद से भारतीय फुटबॉल टीम की यात्रा काफी उतार-चढ़ाव भरी रही है।
जब पहली आधिकारिक फीफा रैंकिंग दिसम्बर 1992 में निकाली गई थी, तब भारत दुनिया में 143वें स्थान पर था। हालांकि इसके आगे बहुत कुछ होना बाक़ी था। आईएम विजयन, जो पॉल आंचेरी और ब्रूनो कॉटिन्हो अपने शानदार फॉर्म में थे और उस समय भारत एक बहुत ही आक्रामक टीम थी। वीपी सथ्यान एक शांत नेतृत्व वाले दिग्गज खिलाड़ी थे, जो डिफेंस को संभालने का काम करते थे, उन्होंने भारत के युवा खिलाड़ियों को संवारने का काम किया।
भारत ने साल 1993 में बेहतरीन खेला दिखाया और लीडरबोर्ड में खुद को तेजी से ऊपर उठाया और दक्षिण एशियाई खेलों में एक रजत पदक जीतकर वर्ष के अंत तक शीर्ष 100 में प्रवेश किया। उस साल भारत ने लेबनान के खिलाफ ड्रॉ कर अच्छा प्रदर्शन किया और 1994 फीफा विश्व कप क्वालीफ़ायर्स में हांगकांग के खिलाफ जीत हासिल की। उसके बाद दो अंतरराष्ट्रीय मैच ड्रॉ खेले, जहां कैमरून और फ़िनलैंड को बराबरी पर रोका, जिससे उन्हें तेज़ी से शीर्ष 100 में प्रवेश करने में मदद मिली। हालांकि, अगले कुछ वर्षों में काफी कम अंतरराष्ट्रीय मैचों के साथ, भारतीय टीम को अपनी रैंकिंग सुधारने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं मिले और टीम 1995 में 21 स्थान खिसक कर 121वें स्थान पर पहुंच गई। अगर इन सालों में तुलना की जाए तो भारत ने 1994 और 1995 में कुल 12 मैच खेले, जबकि 1993 में कुल 18 फीफा-स्वीकृत मैच ही खेलने को मिले।
साल 1995 की शुरूआत में भारत के अंतरराष्ट्रीय मैचों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी और विश्व रैंकिंग में भी भारत को आगे बढ़ते हुए देखा गया। कहा जा सकता है कि 1990 के दशक में टीम में सुधार की प्रक्रिया जारी रही। इस सब में एक खिलाड़ी ऐसा था, जिसकी भूमिका महत्वपूर्ण थी और वो थे भाईचुंग भूटिया। मार्च 1995 में युवा खिलाड़ी ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की और विजयन के साथ मिलकर ऐसी फॉरवर्ड लाइन बनाई, जो 1950 और 1960 के दशक में थी।
भूटिया और विजयन ने भारतीय टीम को संभालने के साथ, फरवरी 1996 में रैंकिंग में टीम को 94वें स्थान पर पहुंचाया, जो अब तक फीफा लीडरबोर्ड पर सर्वश्रेष्ठ भारतीय फुटबॉल टीम रैंकिंग बनी हुई है। भारत ने इस दौरान सैफ चैम्पियनशिप (1997 और 1999) का खिताब अपने नाम किया। साल 1999, विशेष रूप से विजयन और भूटिया के लिए बहुत ही शानदार था। उस साल अपने 12 फीफा-स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय मैचों में विजयन ने सात गोल किए, जबकि भूटिया ने भारत के चार मैचों में चार गोल किए और फुटबॉल के स्टार खिलाड़ी बन गए।
डेढ़ दशक तक टीम की निरंतरता में कमी दिखी
साल 1999 में फीफा रैंकिंग के लिए नए फार्मूले बनाए गए, जो विरोधियों के स्तर और स्कोर लाइनों पर आधारित था, भारतीय फुटबॉल टीम ने पिछले कुछ वर्षों में जो गति बनाई थी वो खो दी। पिछले 15 सालों में भारतीय टीम के कुछ अच्छे प्रदर्शनों पर नज़र डालें तो, टीम ने वियतनाम में 2002 एलजी कप जीता, 2011 एएफसी एशियाई कप के लिए क्वालिफिकेशन हासिल की और 2001 में एशियाई दिग्गज यूएई के खिलाफ फीफा विश्व कप क्वालिफ़ायर्स में जीत हासिल करने के अलावा कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की।
निरंतरता की कमी के साथ, भारत की रैंकिंग में पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरावट देखी गई। कभी-कभार टीम आगे बढ़ती थी, लेकिन वो इतना भी उल्लेखनीय नहीं होता था। इसके अलावा टीम के कोर में लगातार बदलाव से चीजें और मुश्किल हो गईं। 2003 में विजयन और आंचेरी के संन्यास के बाद भूटिया ने युवा सुनील छेत्री को टीम की स्कोरिंग जिम्मेदारियों को दिया। विजयन ने बाद में अपने फैसले पर अफसोस जताया था। उन्होंने बाद में सुनील छेत्री को बताया कि "अगर मैंने संन्यास लेने में कम से कम एक या दो साल की देरी की होती, तो शायद मैं आपके साथ खेल रहा होता था। मैं बदकिस्मत था।"
इसी तरह, जब छेत्री ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक परिपक्व खिलाड़ी होने का लक्षण दिखाने लगे थे, तभी भूटिया ने एएफसी एशियन एशियन 2004 में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद संन्यास ले लिया। ऐसी कई परेशानियों की बदौलत 2014 के करीब आते ही भारत की रैंक 171 हो गई। रैंकिंग 173 तक गिरने के बावजूद– जो भारतीय फुटबॉल टीम रैंकिंग इतिहास की सबसे न्यूनतम रैंकिंग थी- अप्रैल 2015 में टीम के अंदर पहले से ही कुछ बड़े बदलाव किए जा रहे थे, जो टीम के लिए लाभदायक साबित होते।
जनवरी 2015 में स्टीफन कांस्टेनटाइन को भारतीय फुटबॉल टीम के मुख्य कोच के रूप में बुलाया गया और ज्यादा देर नहीं हुआ जब उनकी व्यावहारिक शैली ने परिणाम देने शुरू किए। 2014 में इंडियन सुपर लीग के आगमन से कॉन्स्टेंटाइन को अधिक प्रतिभा की खोज करने में मदद मिली। तब तक भारतीय फुटबॉल टीम राष्ट्रीय टीम के लिए प्रतिभाओं को निखारने के लिए केवल आई लीग के क्लबों पर निर्भर थी। आठ फ्रेंचाइजी समर्थित टीमों के साथ भारतीय खिलाड़ी उत्तम दर्जे के विदेशी खिलाड़ियों के साथे खेलने लगे। उनके लिए सीखने का मौका था और लुइस गार्सिया, रोबी कीन, एलेसेंड्रो डेल पिएरो, एलेसेंड्रो नेस्टा, एलानो ब्लूमर, टिम काहिल, दिमितार बर्बकोव और फ्लोरेंट मालौदा जैसे विश्व सितारों के साथ ड्रेसिंग रूम साझा करना किसी सपने से कम नहीं था।
भारतीय फुटबॉल सिर्फ आईएसएल तक ही सीमित नहीं थी। बेंगलुरु एफसी की टीम एक बेहतरीन उदाहरण थी, जिसे पूरा कॉर्पोरेट समर्थन मिला और उन शर्तों को पूरा किया, जो उन्हें एक पूर्ण पेशेवर टीम बनाती थीं। इसका असर भी देखने को मिला, बेंगलुरु ने पारम्परिक आई-लीग जीतने के लिए भारत की हेरिटेज टीमों को लगातार हराया और 2017-18 सीज़न से आईएसएल में शामिल हो गई। आईएसएल में बेंगलुरु के आने से टीम के फैन फॉलोइंग में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली, जिस तरह मोहन बागान और ईस्ट बंगाल की टीमों के फैंस हैं।
आईएसएल के भारत की प्रमुख लीग बनने के बाद भारत की सबसे अच्छी प्रतिभाओं जैसे उदांता सिंह, अनिरुद्ध थापा, संदेश झिंगन के पास अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच था। इसने नियमित रूप से उन्हें बेहतरीन मुक़ाबले के लिए प्रेरित किया। एक मजबूत युवा खिलाड़ियों की फौज ने बेंगलुरू के सुनील छेत्री की भी उनके खेल में मदद की और युवा भारतीय टीम के लिए एक वरदान साबित हुआ। भारतीय टीम ने 2015 और 2016 में अच्छा खेल दिखाया, 2018 फीफा विश्व कप क्वालिफ़ायर्स के दूसरे दौर में पहुंचे और 2015 सैफ चैम्पियनशिप जीत लिया, फलस्वरूप फीफा रैंकिंग में 135 पर आ गई।
साल 2017 के वो शानदार पल
हालांकि टीम का बेहतरीन प्रदर्शन साल 2017 में दिखा, जब भारत पूरे कैलेंडर वर्ष में अजेय रहा, दो में ड्रॉ खेला और नौ में से सात मैचों में जीत हासिल की। इस प्रदर्शन के बल पर 2019 एएफसी एशियाई कप के लिए भी क्वालिफिकेशन हासिल की। भारत ने 2017 के मई में 21 वर्षों में पहली बार फीफा रैंकिंग के शीर्ष 100 में प्रवेश किया और जुलाई में 96वें स्थान पर पहुंच गए। उन्होंने अंततः वर्ष को 105वें स्थान पर रहकर समाप्त किया।
2019 में एएफसी एशियाई कप की तैयारियों को देखते हुए भारत को 2018 में कुछ मुश्किल टीमों का सामना करना पड़ा। हालांकि उनका रिकॉर्ड 2017 की तरह नहीं रहा, भारत ने ओमान और चीन के खिलाफ क्रमशः दो गोलरहित ड्रॉ सहित कुछ यादगार परिणाम निकाले। ब्लू टाइगर्स ने उस साल के पहले इंटरकांटिनेंटल कप को भी अपने नाम किया, जिसकी वजह से वो 2019 में दुनिया की 97वीं रैंकिंग वाली टीम के बनकर गए।
भारतीय फुटबॉल टीम ने एएफसी एशियन कप के साथ 2019 सीज़न की शुरुआत की और 1964 से एशियाई फ़ुटबॉल की प्रमुख प्रतियोगिता में अपनी पहली जीत दर्ज करने के लिए पहले ग्रुप चरण के मुक़ाबलों में उच्च रैंक वाली थाईलैंड को 4-1 से हराया। भारत दूसरे मैच में यूएई से 2-0 से हार गया, जिसके बाद उन्हें आगे बढ़ने के लिए अंतिम ग्रुप चरण मैच में बहरीन के खिलाफ ड्रॉ की आवश्यकता थी। भारतीय टीम ने अंतिम मिनटों तक अपने विरोधियों को 0-0 के स्कोर पर रोक कर रखा, लेकिन अंतिम समय में एक गोल ने टीम की उम्मीदों को तोड़ दिया। टूर्नामेंट से बाहर होने के तुरंत बाद कॉन्स्टेंटाइन ने अपने मुख्य कोच के पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने क्रोएशियाई वर्ल्ड क्यूपर इगोर स्टमक को कॉन्स्टेंटाइन की जगह नियुक्त किया, इसने भारतीय फुटबॉल के लिए एक नए युग की शुरुआत को प्रदर्शित किया। नए मुख्य कोच की अगुआई में भारत अभी भी अपनी स्थिति तलाश रहा है और परिणाम अब तक उनके मुताबिक नहीं आए हैं। लेकिन सितंबर 2019 में भारतीय फुटबॉल टीम ने एशियाई चैम्पियन कतर को 0-0 से ड्रा पर रोका, जो भारतीय फुटबॉल इतिहास में सबसे यादगार परिणामों में से एक है। कोरोना वायरस महामारी के कारण अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल को रोके जाने से पहले 2019 में भारत 108वें स्थान पर था। भारतीय फुटबॉल एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है और फैंस को उम्मीद होगी कि अगले दो वर्षों के भीतर, स्टैमैक क्रोएशिया और पायलट टीम को फिर से दुनिया के शीर्ष 100 में स्थान दिलाएंगे।

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