क्या विवाद की असली वजह बदले हुए कुश्ती नियम हैं

क्या सच में इससे खत्म हो जाएगा हरियाणा का दबदबा?
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे पहलवानों और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है। एक तरफ जहां पहलवान बृजभूषण को जेल भेजने और उनसे इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, वहीं बृजभूषण ने भी पहलवानों पर कई आरोप लगाए हैं। साथ ही उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से मना कर दिया है। पहलवानों ने बृजभूषण पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं। उनके खिलाफ एक नाबालिग समेत सात पहलवानों ने शिकायत की है। शुक्रवार को बृजभूषण के खिलाफ दिल्ली के कनॉट प्लेस थाने में दो एफआईआर दर्ज की हैं। इनमें से एक नाबालिग के आरोप के तहत पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया, जबकि दूसरा मामला बाकी पहलवानों के आरोपों पर दर्ज किया गया।
यह पूरा मामला जनवरी में शुरू हुआ था जब पहलवानों ने पहली बार बृजभूषण के खिलाफ धरना किया था। तब पहलवानों को खेल मंत्रालय ने बृजभूषण के खिलाफ जांच की बात कही थी और पहलवानों ने धरना खत्म कर दिया था। अब फिर से यह मामला सामने आया है। हालांकि, बृजभूषण की ओर से एक बयान सामने आया था, जिसमें उन्होंने नियमों में बदलाव का हवाला दिया था और कहा था कुश्ती में नियमों के बदलाव की वजह से ही पहलवान नाराज हैं और धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।
बृजभूषण खारिज कर चुके अपने ऊपर लगे आरोप
यौन शोषण के आरोपों को बृजभूषण कई बार खारिज कर चुके हैं। उनका कहना है- यौन उत्पीड़न की कोई घटना नहीं हुई है। अगर आरोप सच निकले तो मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं। मैं किसी भी प्रकार की जांच के लिए तैयार हूं। बृजभूषण ने दावा किया था कि सारे आरोप प्लानिंग के तहत लगाए गए हैं। उन्होंने कहा था कि किसी भी खिलाड़ी ने ओलंपिक के बाद कोई नेशनल लेवल का मैच नहीं खेला। ट्रायल को लेकर भी फेवर चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें ट्रायल न देना पड़े और किसी विशेष के लिए कोई नियम न बने।
बृजभूषण का दावा है कि सारी समस्या यहीं से शुरू हुई। उन्होंने कहा- जब हम कुछ नियम बनाते हैं और नीति में बदलाव करते हैं तो इसके बाद कुछ खिलाड़ी नेशनल गेम्स नहीं खेलना चाहते, ट्रायल में हिस्सा नहीं लेना चाहते। हम चाहते हैं कि सभी खिलाड़ी ट्रालय दें और नेशनल गेम्स में हिस्सा लें। हालांकि, बृजभूषण के इन आरोपों को पहलवानों ने सिरे से खारिज कर दिया था। पहलवानों ने जवाब देते हुए कहा था कि अगर उन्हें ट्रायल से दिक्कत होती तो ओलंपिक या किसी स्पर्धा में खेलकर वह पदक कैसे जीत पाते। एक पहलवान को कुश्ती करने से क्या समस्या हो सकती है।
बृजभूषण ने ओलंपिक ट्रायल को लेकर भी विस्तार से बताया, ''संघ ने दुनिया के कई देशों के नियमों का अध्ययन करने के बाद एक नियम बनाया। हमने ओलंपिक के बाद ट्रायल का नियम बनाया। किसी को ओलंपिक या ऐसी बड़ी प्रतियोगिता में जाना है तो उसे देश के अन्य खिलाड़ियों के साथ ट्रायल देना होगा। जो खिलाड़ी ओलंपिक का कोटा हासिल कर चुका है, उसका मुकाबला देश में ट्रायल जीतने वाले के साथ होगा। फिर वहां से ओलंपिक के लिए पहलवान का चयन होगा। अगर ओलंपिक कोटा हासिल करने वाला हार जाता है तो उसे फिर एक मौका दिया जाएगा। हम नियम के अनुसार काम कर रहे हैं। तानाशाही की कोई बात ही नहीं। यह मेरा फैसला नहीं, बल्कि अच्छे कोचों और इन खिलाड़ियों से राय लेने के बाद लिया गया है।"
आइए अब उन नियमों के बारे में जानते हैं-
दरअसल, नवंबर 2021 में भारतीय कुश्ती महासंघ ने कई नियमों में बदलाव किए थे। इसमें तय हुआ था कि ओलंपिक के लिए कुश्ती इवेंट में खिलाड़ियों को चुनने से पहले ओलंपिक कोटा हासिल करने वाले खिलाड़ियों को भी ट्रायल्स में भाग लेने के लिए कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ओलंपिक से पहले कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स होते हैं।
इसमें जीतने वाले खिलाड़ी को ओलंपिक का कोटा मिल जाता है। जो देश जितने टूर्नामेंट्स जीतता है, उसके उतने ज्यादा खिलाड़ी ओलंपिक में जा सकते हैं। हालांकि, ये प्रतियोगिताएं ओलंपिक से काफी पहले होतीं हैं, इसलिए भारतीय कुश्ती महासंघ का कहना था कि ओलंपिक के लिए फाइनल नाम तय करने से पहले सभी खिलाड़ियों को ट्रायल से गुजरना पड़ेगा ताकि पहलवानों की तैयारियों का पता लगाया जा सके। फिट और पूरी तैयारी कर चुका पहलवान ही टीम में चुना जा सके और खेलने जाए।
फिर चाहे किसी दिग्गज ने खुद ओलंपिक कोटा क्यों न हासिल किया हो। शूटिंग हो या आर्चरी, इन खेलों में यही नियम है कि कोटा कोई भी खिलाड़ी हासिल करे, लेकिन शूटिंग फेडरेशन अपने हिसाब से खिलाड़ियों को भेजता है। कुश्ती में पहले ये होता था कि जो खिलाड़ी ओलंपिक कोटा हासिल कर लेता था, उसे ही टीम में जगह मिल जाती थी, लेकिन 2021 में नियमों को बदला गया। भारतीय कुश्ती संघ ने इन नियमों में बदलाव को लेकर वजह बताई थी कि ओलंपिक कोटा हासिल करने के बाद कुछ खिलाड़ी चोटिल हो जाते हैं या आउट ऑफ फॉर्म होते हैं। हालांकि, वह इन बातों का छिपाते हैं और ओलंपिक खेलने चले जाते हैं। इससे हमारे मेडल की संख्या में कमी आती है। 

हरियाणा का कहां से आया नाम?
इसके साथ ही राज्यों की टीमों को लेकर भी नियमों में बदलाव किए गए। कुश्ती संघ ने कहा कि कोई भी राज्य नेशनल में एक से ज्यादा टीम नहीं भेज सकता। ओलंपिक में भी सबसे ज्यादा टीमें हरियाणा, रेलवे और सेना की ही जाती हैं। इन नियमों में बदलाव को भी हरियाणा के लिए सबसे बड़ा खतरा माना गया था। पहलवानी में ज्यादातर खिलाड़ी हरियाणा के हैं और वो ओलंपिक कोटा हासिल कर लेते हैं। कुश्ती संघ का कहना था कि ट्रायल्स के जरिये पहलवानी में कमजोर राज्यों को भी मौका मिलना चाहिए।
दरअसल, हरियाणा की टीम हर वर्ग में छह पहलवानों को उतारती है जो दूसरे राज्यों के लिए नाइंसाफी है। हरियाणा की टीम के अलावा रेलवे और सेना की टीमों में भी ज्यादातर पहलवान हरियाणा से ही होते हैं। कुश्ती संघ के ही अधिकारी ने कुछ समय पहले कहा था कि हम इसे ठीक करना चाहते हैं ताकि केरल, तमिलनाडु, ओडिशा और बाकी राज्यों के खिलाड़ी भी नेशनल्स में मेडल जीतें। इससे दूसरे राज्यों में भी कुश्ती चर्चाओं में आ पाएगी।
हालांकि, तब हरियाणा कुश्ती संघ के महासचिव ने इन नियमों का विरोध किया था और कहा था कि ये हरियाणा के साथ नाइंसाफी है। इससे न सिर्फ हरियाणा, बल्कि देश की कुश्ती को भी नुकसान होगा। सभी सात ओलंपियन हरियाणा से आए थे और उसके बावजूद हमें निशाना बनाया जा रहा है। वहीं, हरियाणा के पहलवानों का कहना था कि हर राज्य की अपनी एक खास पहचान होती है। हरियाणा कुश्ती में अच्छा है तो बाकी राज्य दूसरे खेलों में अच्छे हैं।
एक बात यह भी है पहलवानों ने टोक्यो में 2021 में हुए ओलंपिक के दौरान अधिकारियों के वहां जाने का विरोध किया था। दरअसल, टीम के साथ भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण और सचिव भी गए थे, जबकि वहां खिलाड़ियों और स्टाफ के पहुंचने की संख्या सिमित थी। इससे कई अहम पहलवानों को कोच के बिना ही जाना पड़ा था। पहलवानों ने अधिकारियों के वहां जाने पर नाराजगी भी जताई थी। पहलवानों ने कहा था कि अगर अधिकारी अपनी जगह छोड़े तो उनकी जगह कोच या फिजियो जा सकते हैं, जो पदक जीतने में उनकी मदद करेंगे। 
हरियाणा बनाम बाकी राज्यों का विवाद कुछ नया नहीं
पहलवानी में हरियाणा और बाकी राज्यों का विवाद कोई नया नहीं है। 2016 रियो ओलंपिक से पहले सुशील कुमार बनाम नरसिंह यादव मामला तो आपको याद ही होगा। सुशील हरियाणा से हैं, जबकि नरसिंह मूल तौर पर वाराणसी के रहने वाले हैं। 2016 रियो ओलिंपिक के लिए 74 किलो वेट में नरसिंह यादव और दो बार के ओलिंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमार दावेदार थे। सुशील ओलिंपिक क्वालिफायर्स के ट्रायल में हिस्सा नहीं ले पाए। इसके बाद नरसिंह को ओलिंपिक क्वालिफायर्स इवेंट के लिए भेजा गया। नरसिंह ने अपनी प्रतिभा से कोटा हासिल भी कर लिया।
नेशनल रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के पहले के नियमों के मुताबिक जो खिलाड़ी जिस वेट में कैटेगरी में कोटा हासिल करता है, वही ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करता है। सुशील चाहते थे कि वे दो बार के ओलिंपिक मेडलिस्ट हैं, इसलिए उन्हें जाने का मौका दिया जाना चाहिए। वे फिर से ट्रायल कराने को लेकर कोर्ट भी गए, जहां उनकी याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद नरसिंह ने सोनीपत में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में ट्रेनिंग शुरू कर दी। ओलिंपिक से 10 दिन पहले नरसिंह की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) की ओर से डोपिंग के लिए भेजा गया सैंपल पॉजिटिव आया। हालांकि, नाडा ने उन्हें क्लीन चिट दे दी, लेकिन वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (WADA ) ने न सिर्फ ओलिंपिक में उन्हें भाग लेने से रोक दिया, बल्कि चार साल के लिए बैन भी कर दिया।
इस मामले में नरसिंह भी खुलकर सामने आए और उन्होंने सुशील पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि सुशील के इशारे पर उन्हें डोपिंग में फंसाया गया। उनका आरोप था कि सोनीपत में ट्रेनिंग के दौरान सुशील के इशारे पर ही उनके खाने में कुछ मिलाया गया। इस मामले में प्रधानमंत्री की पहल पर मामले के लिए जांच कमेटी भी गठित की गई थी। वहीं, नरसिंह को डोप में फंसाने के बाद भी सुशील ओलिंपिक में नहीं जा सके थे। इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन ने नरसिंह की जगह किसी अन्य खिलाड़ी को कोटा देने से इनकार कर दिया था।
विनेश का भी मामला सामने आया था
नए नियम के मुताबिक, जो नेशनल नहीं खेलेगा, वह भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा। राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जीतने के बाद ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिलेगा। खिलाड़ी इसका विरोध कर रहे हैं। सुशील बनाम नरसिंह मामले में भी यही देखने को मिला था। कुछ चुनिंदा पहलवानों का कहना है कि हम जीतकर आए हैं, इसलिए हमें मौका दिया जाए। विनेश फोगाट ने भी टोक्यो ओलंपिक के दौरान निर्धारित ड्रेस कोड की बजाय स्पॉन्सर की ड्रेस पहनी थी, जिस पर यूनाइटेड रेसलिंग फेडरेशन ने भी आपत्ति जताई थी और कहा था कि उन्हें सस्पेंड क्यों न किया जाए। इस पर बृजभूषण ने भी हमला किया था और कहा था- उन्होंने देश का अपमान किया था। मैं विनेश फोगाट से पूछना चाहता हूं कि उन्होंने ओलंपिक में कंपनी के लोगो वाली पोशाक क्यों पहनी थी?
राष्ट्रमंडल खेलों के बाद विनेश ने कुश्ती संघ के अधिकारियों पर बड़ा आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि फेडरेशन के जो बड़े अधिकारी ने उन्हें धमकी दी थी और कहा था कि उनको बैन कर दिया जाएगा। कुछ अधिकारियों का कहना है कि यह मामला तभी से शुरू हुआ था और अब जाकर तूल पकड़ा है। इतना ही नहीं हरियाणा की महिला पहलवानों ने यह भी आरोप लगाया था कि पुरुषों का कैंप सोनीपत में लगता है, जबकि महिलाओं का कैंप लखनऊ में लगाया जाता है। टीम में शामिल 90 प्रतिशत महिला खिलाड़ी हरियाणा से हैं। ऐसे में महिलाओं का कैंप भी सोनीपत में लगना चाहिए। उनका कहना था कि जब उनके घर के पास ही इतना अच्छा SAI सेंटर है, तो उनका कैंप लखनऊ में क्यों लगाया जाता है?
ओलंपिक में हरियाणा के एथलीट की हिस्सेदारी
रियो ओलिंपिक (2016) में देश से 117 खिलाड़ियों ने शिरकत की थी। वहीं, टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले भारत के 122 खिलाड़ियों में से 30 हरियाणा से थे, यानी कुल हिस्सेदारी का 24 प्रतिशत। हरियाणा की आबादी 2.54 करोड़ (2011 की जनगणना के मुताबिक) है। यानी देश की आबादी में महज 1.87 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले राज्य की भारतीय दल में करीब एक चौथाई उपस्थिति थी। हरियाणा का दबदबा कुश्ती और बॉक्सिंग जैसे कॉम्बैट स्पोर्ट्स में रहा। कुश्ती में सभी सात खिलाड़ी (चार महिला, तीन पुरुष) हरियाणा से थे।
बॉक्सिंग में नौ में से चार मुक्केबाज हरियाणा से थे। शूटिंग में 15 में से पांच शूटर्स हरियाणा से थे। इनके अलावा हरियाणा से एथलेटिक्स में चार (26 में से), हॉकी में 10 (पुरुष-महिला मिलाकर 34 खिलाड़ियों में से) खिलाड़ी इस राज्य से थे। भारत के सात राज्य ऐसे थे जहां से एक भी खिलाड़ी भारतीय ओलिंपिक दल का हिस्सा नहीं बना था। 10 करोड़ की आबादी वाला बिहार इसमें सबसे बड़ा राज्य था। बिहार के अलावा छत्तीसगढ़, गोवा, मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा से भी कोई खिलाड़ी ओलिंपिक में हिस्सा नहीं ले पाया था।
भारत का अगला लक्ष्य एशियन गेम्स है, जो कि इसी साल सितंबर-अक्तूबर में चीन के ह्वांगझू में होना है। हालांकि, इस टूर्नामेंट से पहले विवादों ने भारतीय स्पोर्ट्स को एक बार फिर कटघरे में ला खड़ा किया है। पिछले साल हुए बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों के बाद से कोई भी स्टार पहलवान किसी भी तरह की राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाया है। अब इससे एशियन गेम्स में भारत के पदकों पर कितना प्रभाव पड़ेगा यह तो देखने वाली बात होगी।

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