पढ़ें स्पिनर कुमार कार्तिकेय सिंह की संघर्षगाथा
घर छोड़ा, मजदूरी की, साल भर नहीं मिला दोपहर का खाना
खेलपथ संवाद
मुम्बई। संघर्ष ही सफलता की राह तय करने में मददगार होती है। स्पिनर कुमार कार्तिकेय सिंह की संघर्षगाथा उन लोगों के लिए नसीहत है जो जरा सी परेशानी आने पर अपने इरादे बदल देते हैं। बाएं हाथ के स्पिनर कुमार कार्तिकेय सिंह को सफलता यूं ही नहीं मिली। आईपीएल तक पहुंचने के लिए उन्होंने मजदूरी की, भूखे पेट सोए और एक साल तक लंच भी नहीं किया। इस मेहनत का नतीजा भी उन्हें मिला और आईपीएल की सबसे सफल टीम की ओर से खेलने का उन्हें मौका मिला।
नौ साल पहले 15 वर्षीय कार्तिकेय कानपुर छोड़कर दिल्ली पहुंच गए थे। उन्होंने घर वालों से वादा किया था कि अपने क्रिकेट के कारण कभी भी परिवार पर आर्थिक बोझ नहीं डालेंगे। कार्तिकेय को दिल्ली में उनके दोस्त राधेश्याम के अलावा कोई नहीं जानता था। राधेश्याम लीग क्रिकेट में खेलते थे। उन्होंने कार्तिकेय की मदद की। दोनों कई क्रिकेट एकेडमी में गए, लेकिन सभी ज्यादा पैसे मांग रहे थे।
तब दोनों क्रिकेट कोच संजय भारद्वाज के पास गए। वहां राधेश्याम ने कहा कि कार्तिकेय के पास उन्हें देने के लिए पैसे नहीं हैं। इसके बावजूद भारद्वाज ने दोनों की मदद की। उन्होंने कार्तिकेय को ट्रायल देने के लिए कहा। नेट पर एक गेंद देखने के बाद भारद्वाज ने उनका चयन कर लिया। इस बारे में उन्होंने खुद ईएसपीएन क्रिकइंफो को बताया। उन्होंने कहा, ''कार्तिकेय का एक्शन सही था। वह अपनी उंगलियों का सही से इस्तेमाल करता था।''
अब कोचिंग तो कार्तिकेय को मिल गई थी, लेकिन उसे रहने और खाने का प्रबंध करना था। इसके लिए वह गाजियाबाद के पास मसूरी गांव में मजदूरी करने लगे। गांव उनकी एकेडमी से 80 किलोमीटर दूर था। फैक्ट्री के नजदीक रहने के लिए उन्हें जगह मिल गई थी। वह रात में फैक्ट्री में काम करते थे और दिन में एकेडमी जाते थे। कई किलोमीटर पैदल चलते थे ताकि बिस्किट के लिए 10 रूपये बच सकें।
जब कोच भारद्वाज को यह पता चला कि कार्तिकेय कई किलोमीटर पैदल चलते हैं तो उन्होंने पूछा- वह कहीं और क्यों नहीं रहते। उसी समय कार्तिकेय ने उन्हें कारखाने में अपनी नौकरी, नाइट शिफ्ट और कठिन यात्रा के बारे में बताया। भारद्वाज ने उन्हें एकेडमी के रसोइया के साथ रहने के लिए कहा। कार्तिकेय ने उनकी बात मान ली। भारद्वाज ने एकेडमी में कार्तिकेय के रहने के पहले दिन को याद किया। उन्होंने कहा, "जब रसोइया ने उसे दोपहर का भोजन दिया तो कार्तिकेय रोने लगा। उसने एक साल से दोपहर का भोजन नहीं किया था।"
इसके बाद भारद्वाज ने कार्तिकेय का एक स्कूल में दाखिला करा दिया। कार्तिकेय स्कूल की ओर से खेलने लगे और डीडीसीए लीग में 45 विकेट लिए। वह दिल्ली में प्रतिष्ठित ओमनाथ सूद टूर्नामेंट सहित तीन टूर्नामेंटों में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट थे। इतने बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद कार्तिकेय का सिलेक्शन डीडीसीए ने टॉप-200 में नहीं किया था।
भारद्वाज ने पहले भी इन मुद्दों को निपटाया था। गौतम गंभीर के बचपन के कोच के रूप में प्रसिद्ध भारद्वाज ने अमित मिश्रा के साथ ऐसा ही देखा था। तब उन्होंने मिश्रा को हरियाणा जाने के लिए कहा था। अब कार्तिकेय को उन्होंने मध्य प्रदेश भेज दिया। भारद्वाज ने कहा, "उसकी काबिलियत और लगन को देखते हुए मैंने उसे अपने दोस्त और शहडोल क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव अजय द्विवेदी के पास भेजा। कार्तिकेय ने वहां डिवीजन क्रिकेट के पहले दो वर्षों में 50 से अधिक विकेट लिए।"
राज्य के ट्रायल मैचों में कार्तिकेय ने हर मुकाबले में पांच-पांच विकेट लिए। जल्द ही उन्होंने रणजी ट्रॉफी क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया। उन्हें मध्य प्रदेश अंडर-23 में भी खेलने का मौका मिला। जब कार्तिकेय ने 2018 में डेब्यू किया तो उन्होंने भारद्वाज को अपने पिता से बात करवाई। उसी समय से कार्तिकेय का भोपाल में नया घर भारद्वाज का नई क्रिकेट एकेडमी बन गई। भारद्वाज ने कहा, 'जब भी वह फ्री होता है तो नेट्स में गेंदबाजी करना शुरू कर देता है। कई बार वह देर रात इंदौर में मैच खेलने के बाद वापस आता है और लाइट जलाकर प्रैक्टिस करने लगता है।''
किस्मत ने दिया साथ तो आईपीएल में मिला मौका
मुंबई इंडियंस ने कार्तिकेय को मोहम्मद अरशद खान के चोटिल होने के बाद टीम में शामिल किया। उन्होंने नौ प्रथम श्रेणी, 19 लिस्ट ए और आठ टी20 मैच खेले हैं। इस दौरान क्रमश: 35, 18 और नौ विकेट लिए हैं। उन्हें मुंबई ने 20 लाख रुपये में टीम के साथ जोड़ा। आईपीएल में अपने पहले ओवर में कार्तिकेय ने संजू सैमसन का विकेट लिया। भले ही उन्होंने तुरंत सफलता हासिल न की हो, लेकिन कार्तिकेय परेशान नहीं होंगे। इतनी दूर आने में उन्होंने बहुत बड़ी बाधाओं को पार कर लिया है।