प्रशिक्षकों बिना यूपी में एक जिला, एक खेल योजना फेल

केन्द्रीय खेल मंत्रालय की योजनाओं पर खेल निदेशालय जता रहा अपना हक

अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की सेवाएं आवासीय खेल छात्रावासों और स्पोर्ट्स कॉलेजों के लिए नहीं

श्रीप्रकाश शुक्ला

लखनऊ। एक जिला, एक उत्पाद योजना की सफलता से उत्साहित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले दो साल से प्रदेश में एक जिला, एक खेल योजना को जमीनी आधार देने की कोशिश में लगे हैं लेकिन प्रशिक्षकों के अभाव में खेल निदेशालय उनकी मंशा को अमलीजामा पहनाने में अभी तक असफल ही साबित हुआ है। यद्यपि प्रदेश के हर जिले के प्रमुख खेल की पहचान तो कर ली गई है लेकिन योजना फाइलों से आगे नहीं बढ़ पाई है।

दरअसल, भारतीय खेल प्राधिकरण और भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा हर जिले में ओलम्पिक पहचान वाले एक खेल सेंटर को विकसित किए जाने के प्रस्ताव राज्य सरकारों से मंगाए गए थे। इनमें 14 खेलों तीरंदाजी, साइकिलिंग, तलवारबाजी, हॉकी, एथलेटिक्स, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, जूडो, रोइंग, शूटिंग, तैराकी, टेबल टेनिस, भारोत्तोलन, कुश्ती में से किसी एक का चयन हर जिले में किया जाना था, यह काम तो खेल निदेशालय लखनऊ नवम्बर 2020 में ही कर चुका है लेकिन प्रदेश में निर्धारित साढ़े चार सौ प्रशिक्षकों की नियुक्ति खेल निदेशक राम प्रकाश सिंह के गले की फांस बन चुकी है। वे दो-दो आउटसोर्सिंग कम्पनियों की सेवाएं लेने के बाद भी इस मामले में अभी तक असफल साबित हुए हैं।

उत्तर प्रदेश में नई सरकार गठन के बाद जौनपुर सदर विधायक गिरीश चंद्र यादव को प्रदेश का खेल एवं युवा कल्याण मंत्री बनाया गया है। खेल मंत्री यादव मंगलवार 12 अप्रैल को प्रमुख सचिव खेल कल्पना अवस्थी और निदेशक खेल राम प्रकाश सिंह से प्रदेश में खेलों के लिए 100 दिनों, छह माह और एक साल की कार्ययोजना पर चर्चा कर चुके हैं। अफसोस यह दोनों ही अधिकारी खेल मंत्री को प्रदेश में प्रशिक्षकों की बेहद कमी होने की सच्चाई से रूबरू कराने की हिम्मत नहीं जुटा सके। सूत्र बताते हैं कि इस बैठक में खेल मंत्री को एक जिला, एक खेल योजना की टोटा रटंत कहानी भी सुनाई गई।

खेल मंत्री श्री यादव 31 मार्च को अपने गृह जनपद जौनपुर में यह स्वीकार कर चुके हैं कि जिले में प्रशिक्षकों और संसाधनों की कमी है बावजूद इसके खेल निदेशक और प्रमुख सचिव खेल यह सच नहीं स्वीकार रहे। खेलों से जुड़े समूचे प्रदेश के लोगों को खेल निदेशक की कारगुजारियां पता हैं लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधने का जोखिम कोई भी लेने को तैयार नहीं है।

खेल निदेशक राम प्रकाश सिंह इस समय खबरनवीसों को प्रदेश के आवासीय खेल छात्रावासों और स्पोर्ट्स कॉलेजों के प्रशिक्षु खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों से प्रशिक्षण दिलाने की बातें कर सच्चाई का रुख दूसरी तरफ मोड़ना चाहते हैं। सच यह है कि मार्च 2020 में प्रदेश के सैकड़ों प्रशिक्षकों के पेट में लात मारने के गुनहगार खेल निदेशक एक बार फिर से झूठ का सहारा ले रहे हैं। वह केन्द्रीय खेल मंत्रालय की योजनाओं को भी खेल निदेशालय की ही कृपा निरूपित करने की कोशिश कर रहे हैं। खैर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और खेल मंत्री गिरीश चंद्र यादव को इस बात का भान होना चाहिए कि खेल निदेशक राम प्रकाश सिंह अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की नियुक्ति में अपनों को उपकृत करने की भरसक कोशिश करेंगे। खेलप्रेमियों को बता दें कि अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की नियुक्ति एक जिला, एक खेल योजना के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण व भारतीय खेल मंत्रालय के सहयोग से किया जा रहा है, इसमें राज्य सरकार सिर्फ सहायक की भूमिका में होगा।

रही एक जिला, एक खेल योजना की बात तो प्रदेश के प्रत्येक जिले के खेलों को चिह्नित करने का काम दो साल पहले ही हो चुका है लेकिन खिलाड़ियों को सुविधाएं और प्रशिक्षक आज भी नसीब नहीं हुए हैं। दो साल पहले खेल निदेशालय की तरफ से कहा गया था कि एक जिला-एक खेल में चयन के बाद एथलेटिक्स को संसाधनों की कमी नहीं होगी। खिलाड़ियों को अच्छे कोच, अच्छी किट तथा सुविधाओं से लैश मैदान मिलेंगे। अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुरूप मैदान होंगे। सबसे खास बात यह कि जिन छोटी-छोटी जरूरतों के लिए खिलाड़ियों को हर वर्ष बजट का इंतजार करना पड़ता था, उसके लिए बजट की कमी नहीं होगी।

अब खेल निदेशालय ही बता सकता है कि खिलाड़ियों को कितनी सुविधाएं, संसाधन और योग्य प्रशिक्षक मिल रहे हैं। स्याह सच यह है कि प्रशिक्षकों के अभाव में प्रदेश की अधिकांश जिमों में ताले लटके हैं। मैदानों में निजी एकेडमियां संचालित हो रही हैं। खेलों में बेहतर करने की बजाय खेल निदेशालय स्पोर्ट्स कॉलेजों में अपनी हुकूमत और अपने आदमी बैठाने के जरूर प्रयास कर रहा है।

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