कीमिया अलीजादेह अब रिफ्यूजी टीम में

ईरान की पहली ओलम्पिक पदक विजेता हैं
आईओसी ने 29 सदस्यीय रिफ्यूजी टीम का किया है चयन
नई दिल्ली।
ईरान के कारज शहर के दस्तकार की बिटिया कीमिया अलीजादेह बचपन से अन्य लड़कियों से हटकर कुछ अलग करना चाहती थीं। तमाम बंदिशों के बावजूद उसने खेल को अपना कर ऐसा किया भी और अपनी अलग पहचान बनाई। रियो ओलम्पिक 2016 में अलीजादेह ने वो कर दिखाया जो अभी तक किसी ईरानी महिला ने नहीं किया था। तब 18 वर्षीय अलीजादेह ने ताइक्वांडो के 57 किलोग्राम भार वर्ग में कांस्य जीतकर इतिहास रच दिया था।
वह ओलम्पिक में पदक जीतने वाली अपने देश की पहली महिला बनीं। घर वापसी पर नायिका के रूप में सम्मानित किया गया तो सुनामी का उपनाम दिया गया। वह देश की महिलाओं के लिए नई उम्मीद बन गईं।
अलीजादेह की उम्मीदों को भी नए पंख लग गए और वह चार साल बाद टोक्यो में होने वाले ओलम्पिक में अपने कांसे को सोने में बदलने के सपने देखने लगीं, लेकिन देश के लिए स्वर्ण जीतने का उनका सपना अधूरा ही रह गया। ओलम्पिक से सात माह पहले जनवरी 2020 में अचानक अलीजादेह खुद को ईरान की लाखों उत्पीड़ित महिलाओं में से एक बताते हुए देश छोड़कर भाग गई। अलीजादेह ने हिम्मत नहीं हारी और टोक्यो में खेलने के सपने को हकीकत में बदल दिया। वह ईरान के झंडे तले नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति आईओसी के झंडे तले खेलकर पीला तमगा जीतने की कोशिश करेंगी। आईओसी ने रिफ्यूजियों की जो टीम घोषित की है उसमें अलीजादेह भी हैं।
रहूंगी ईरान की बिटिया ही
मैं ओलम्पिक या विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतने की उम्मीद करती हूं मेरी इच्छा नहीं बदलती है लेकिन लक्ष्य हासिल करने के तरीके मैं जरूर बदलाव आया है। मैं किसी भी झंडे के नीचे खेली इससे कोई फर्क नहीं पड़ता मैं जहां भी रहूं ईरान की बिटिया ही रहूंगी। समानता के लिए लड़ना जारी रखूंगी ताकि सभी महिला खिलाड़ी अपने सपने को पूरा करने का जज्बा दिखा पाएं। 
अलीजादेह 2014 यूथ ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतकर सुर्खियों में आई थीं। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद 2015 में सीनियर विश्व चैम्पियनशिप में कांसा और 2017 में रजत पदक जीता वहीं 2018 में एशियन चैम्पियनशिप में भी कांसा जीता।

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