अनिल खन्ना ने बत्रा के दावे को बताया अदालत की अवमानना

दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बत्रा का आईओए से कोई वास्ता नहीं 
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारतीय ओलम्पिक संघ में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। नरिंदर बत्रा जहां अध्यक्षी नहीं छोड़ने की रट लगा रहे हैं वहीं सीनियर उपाध्यक्ष अनिल खन्ना का कहना है कि 25 मई को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बत्रा का भारतीय ओलम्पिक संघ से कोई वास्ता नहीं रहा। यदि अब भी बत्रा जिद करते हैं तो यह एक तरह से अदालत की अवमानना है।
गौरतलब है कि सीनियर उपाध्यक्ष अनिल खन्ना ने बृहस्पतिवार को नरिंदर बत्रा के इस दावे को साफ तौर पर खारिज किया कि वह अभी भी आईओए के अध्यक्ष हैं। खन्ना ने कहा कि पद पर उनका बने रहना अदालत की अवमानना होगा। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा हॉकी इंडिया में ‘आजीवन सदस्य’ का पद खत्म किये जाने के बाद वरिष्ठ खेल प्रशासक बत्रा को आईओए अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। बत्रा ने हॉकी इंडिया के आजीवन सदस्य के रूप में ही 2017 में आईओए अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीता था। खन्ना अब अदालत के फैसले के बाद कार्यवाहक अध्यक्ष हैं।
बत्रा ने कहा ,‘‘ मैंने एफआईएच या आईओए अध्यक्ष पद का चुनाव ऐसे किसी पद पर रहने के कारण नहीं जीता जो माननीय उच्च न्यायालय ने खत्म कर दिया है। मैं अभी भी आईओए का अध्यक्ष हूं और ताजा चुनाव होने तक रहूंगा।’’ खन्ना ने हालांकि इस दावे को खारिज करते हुए कहा,‘‘ दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशानुसार आईओए अध्यक्ष के रूप में बत्रा का कार्यकाल 25 मई, 2022 को तुरंत प्रभाव से खत्म हो गया है।’’ उन्होंने सदस्यों को लिखे ईमेल में कहा, ‘‘ सदस्यों को बत्रा के वाट्सएप संदेश में किया गया यह दावा भी गलत है कि वह हॉकी इंडिया के आजीवन सदस्य होने के नाते आईओए अध्यक्ष पद पर काबिज नहीं हुए थे।’’
उन्होंने कहा,‘‘ आईओए संविधान और चुनाव के नियमों के अनुसार मतदान करने वाली हर इकाई द्वारा नामित प्रतिनिधि का नाम ऐसी इकाइयों के कार्यकारी निकाय के सदस्य के रूप में मतदाता सूची में होना चाहिये। बत्रा का नाम 2017 की सूची में सीरियल नम्बर 43 पर है।’’ खन्ना ने कहा कि बत्रा हॉकी इंडिया के आजीवन सदस्य के रूप में इस सूची में शामिल हुए और अब अदालत के आदेश के बाद वह आईओए अध्यक्ष नहीं हैं। उन्होंने कहा,‘‘ 2017 में बत्रा हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नहीं थे और उसकी कार्यकारी समिति के सदस्य भी नहीं थे। वह हॉकी इंडिया के संविधान के पैरा 2.1.1.3 के तहत हॉकी इंडिया के आजीवन सदस्य थे और उसी के आधार पर भारतीय ओलम्पिक संघ की मतदाता सूची में उनका नाम दर्ज हुआ।’’
उन्होंने कहा कि अदालत के आदेश में साफ है कि आजीवन सदस्य के अवैध पद के जरिये कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय संस्था में पद नहीं ले सकता। उन्होंने कहा,‘‘यह निर्णायक समय है कि आईओए माननीय उच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप, देश के कानून और राष्ट्रीय खेल कोड के अनुसार काम करना शुरू करे। अदालत के फैसले और आईओए के संविधान को चुनौती देता बत्रा का दावा अदालत की अवमानना है।’’ आईओए के एक सूत्र ने बताया कि अगर बत्रा इस बात को स्वीकार नहीं कर लेते कि वह अब आईओए अध्यक्ष नहीं हैं तो आईओए में से किसी को अदालत की शरण लेकर इस फैसले पर अमल कराना होगा।

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