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जम्मू कश्मीर का एकमात्र एशियन गेम्स मेडलिस्ट खेलपथ प्रतिनिधि जम्मू। जम्मू कश्मीर के युवाओं को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए खेलों पर करोड़ों रुपया जरूर लगाया जा रहा है लेकिन हकीकत यह है कि इस केंद्र शासित प्रदेश के एकमात्र एशियाई खेलों के पदक विजेता को डीएसपी बनाने की घोषणा कर दी गई, लेकिन वह दिहाड़ी पर काम करने को मजबूर है। सूर्य भानु प्रताप सिंह ने जकार्ता एशियाई खेलों में वुशू में कांस्य पदक जीत जम्मू कश्मीर का नाम रोशन किया तो उन्हें और उनके कोच कुलदीप हांडू को सिर आंखों पर बिठा लिया गया। भानु को डीएसपी और कुलदीप को प्रोन्नति देने की घोषणा कर दी गई, लेकिन आज तक सरकार की ओर से निकाले गए आदेश का पालन नहीं हो सका है। जम्मू के सूर्य भानु छह से सात हजार रुपये प्रतिमाह के वेतन के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस में ही दिहाड़ी पर एसपीओ का काम कर रहे हैं। उन्हें जब राज्य सरकार ने डीएसपी बनाने का आदेश निकाला था तो पंजाब पुलिस और सेना से भी नौकरी के बुलावे आए थे, लेकिन उन्होंने राज्य में मिलने वाली नौकरी को तरजीह दी और उन बुलावों को ठुकरा दिया। जिसका नतीजा उन्हें आज भुगतना पड़ रहा है। दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाले भानु खुलासा करते हैं कि लगता है नौकरी के लिए उन्हें अब अगले एशियाई खेलों में पदक लाने का इंतजार करना होगा। वह यहां के प्रशासन को कई बार अपनी घोषणा पूरा करने को कह चुके हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। एक बार इंस्पेक्टर बनाने को कहा गया। उसे भी पूरा नहीं किया गया। विश्व चैंपियनशिप में दो बार पदक जीतने वाले सूर्य भानु प्रताप ने जकार्ता में जब कांस्य जीता था तो कई तरह की गंभीर चोटों का सामना करना पड़ा था। वह एक साल तक वुशू से दूर हो गए थे। हालांकि राज्य सरकार ने उन्हें पदक के बदले कैश अवार्ड तो दिया, लेकिन नौकरी का वादा भूल गई। वहीं राज्य के एकमात्र द्रोणाचार्य अवार्डी भानु के कोच कुलदीप सिंह को इंस्पेक्टर से डीएसपी बनाने का आदेश निकाला गया था, लेकिन इसे भी आज तक पूरा नहीं किया जा सका है। भानु खुलासा करते हैं कि उनके पिता कांस्टेबल हैं और उनकी ट्रेनिंग का खर्च नहीं उठा सकते हैं। यही कारण है कि वह दिहाड़ी पर एसपीओ का काम करने को मजबूर हैं। अंत में वह यही कहते हैं कि इससे अच्छा यही होता कि वह पंजाब पुलिस चले गए होते तो ऐसे दिन नहीं देखने पड़ रह होते।