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कर्मयोगी संत जयकृष्ण दास महाराज ने लिया संकल्प
श्रीप्रकाश शुक्ला
मथुरा। ब्रज अपनी पहचान और विरासत खो रहा है। भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय गाय अपनी ही पावन धरती पर निरीह हैं। यह देख लीलाधर का हृदय निश्चित रूप से द्रवित हो रहा होगा, क्योंकि उन्हें न भर पेट चारा मिल रहा है, न ही चारण के लिए उपर्युक्त स्थान। सच कहूं तो ब्रज में गाय और वृद्धजन सबसे उपेक्षित हैं। यह सब अब मुझसे देखा नहीं जाता। पावन ब्रज की यह वेदना सुनाते-सुनाते यमुना रक्षक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्मयोगी संत जयकृष्ण दास महाराज मायूस हो जाते हैं।
गौ माताओं और वृद्धजनों की उपेक्षा से आहत उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके संत जयकृष्ण दास महाराज कहते हैं, मुश्किल कुछ भी नहीं है, मैं तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक कि ब्रज के हर घर में गाय और वृद्धजन सुरक्षित नहीं हो जाता। हम ब्रज को प्लास्टिक मुक्त करने, हर घर में गोपालक बनाने तथा हर गांव से कृष्ण और बलराम निकालने के लिए अभियान चलाएंगे। यह अभियान पांच साल तक ब्रज के हर गांव में चलेगा तथा इसकी शुरुआत चौमुंहा गांव से होगी।
महाराज कहते हैं कि कवि रसखान ने अपने "जो पशु हों तो कहा बस मेरो, चरौ नित नंद की धेनु मझारन॥ पद में ब्रज की महिमा के साथ-साथ गायों की महत्ता बखूबी समझाई है। लेकिन इसे ब्रज का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन नंद बाबा के यहां एक लाख गाय हुआ करती थीं, उससे कुछ अधिक ही आज पूरे ब्रज में हैं। गोपाल श्रीकृष्ण के ब्रज में आज जो गाय हैं, वे कुछ हद तक गौशालाओं में ही सुरक्षित हैं।
ब्रज, गाय और गोपाल का अटूट नाता था। लेकिन आज ब्रज में गायों के प्रति बेरुखी बहुत बढ़ गई है, जबकि गायों की महिमा का वर्णन वेद-पुराणों तक में वर्णित है। ब्रज में गायों की स्थिति काफी चिन्ताजनक है। यहां गायों की संख्या में कमी आई है। जो हैं उनमें अधिकतर आवारा हो गई हैं। गायों को अत्यधिक दूध देने के लिए हार्मोन के इंजेक्शन दिए जाते हैं और जब उनका दूध सूख जाता है, तो उन्हें सड़कों पर छोड़ दिया जाता है, जिससे वे बीमार और असुरक्षित हो जाती हैं। महाराज ने कहा कि ब्रज में यदि गाय ही सुरक्षित नहीं होगी तो भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की कृपा कैसे बरसेगी। संत श्री ने कहा कि जो लोग अपने घर में गाय नहीं पाल सकते वे गौशाला में पालें, यह भी नहीं हो सकता तो 20 परिवार मिलकर एक गाय गौशाला में जरूर पालें।
संत श्री जयकृष्ण दास महाराज कहते हैं कि ब्रज बदल रहा है। वनों के कटने से भौगोलिक बदलाव हुआ है तो सांस्कृतिक बदलाव आधुनिकता और शहरीकरण के कारण आया है। पहले ब्रज जहां यह एक घना, रमणीय और उपजाऊ प्रदेश था वहीं अब यहां जलवायु और भू-संरचना में परिवर्तन आए हैं। सांस्कृतिक रूप से भजन और त्योहारों का महत्व तो है, लेकिन आधुनिक जीवन शैली और पाश्चात्य संस्कृति ने भी इसमें अपनी गहरी पैठ बना ली है। आज भी ब्रजभाषा बोली जाती है, लेकिन अन्य भाषाओं और शहरीकरण का प्रभाव तेजी से बढ़ा है।
संत श्री जयकृष्ण दास महाराज प्लास्टिक के अंधाधुंध चलन से बहुत दुखी हैं। वह कहते हैं कि प्रत्येक ब्रजवासी को प्लास्टिक के दुष्परिणामों से अवगत कराया जाना बहुत जरूरी है। प्लास्टिक मुक्त ब्रज से ही गोवंश को असमय मौत से बचाया जा सकता है। प्लास्टिक स्वस्थ पर्यावरण के लिए भी खतरा है लिहाजा हम सबको प्लास्टिक मुक्त ब्रज का संकल्प लेते हुए इसका परित्याग करना चाहिए। शादी-समारोहों में प्लास्टिक की जगह पत्तल-दोनों को बढ़ावा देकर जल और जीवन को बचाया जा सकता है।
ब्रज की पावन धरा बहुत पवित्र है। पवित्र इसलिए क्योंकि यहां संतों का वास है। जयकृष्ण दास महाराज ब्रज में यमुना शुद्धि और गौसेवा के अनोखे कर्मयोद्धा हैं। इनके कदम लड़खड़ाते नहीं बल्कि समाज को नई दिशा दिखाते हैं। यह समूचे ब्रज के लिए गौरव की बात है कि पूज्य जयकृष्ण दास महाराज की कार्यशैली से कुछ नया करने की प्रेरणा और ऊर्जा मिलती है। जीवन के सात दशक पूरे कर चुके कर्मयोगी के इरादे अटल हैं। यमुना शुद्धि और गौसेवा के प्रति महाराज का जोश और जुनून हर किसी के लिए नजीर एवं मूलमंत्र होना चाहिए।
देखा जाए तो हर समय काल में संत समाज ने राष्ट्र, मानव और जीव कल्याण के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए हैं। राष्ट्र और जीव कल्याण की जो बातें पुस्तकें नहीं समझा सकतीं, हमारा पूज्य संत समाज अपनी कार्यशैली से सहजता से समझा देता है। यह सत्य है कि हर इंसान महत्वाकांक्षी होता है, संत समाज भी इससे विरक्त नहीं है। महत्वाकांक्षी होना बुरी बात भी नहीं क्योंकि कोई भी लक्ष्य महत्वाकांक्षा के बिना हासिल ही नहीं किया जा सकता। जयकृष्ण दास महाराज गोपाष्टमी पर गौपूजन कार्यक्रम में ब्रज और ब्रजवासियों की खुशहाली का संकल्प दिलाएंगे तथा जनजागरूकता अभियान का श्रीगणेश भी करेंगे।