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साहित्य का आधार जीवन है। इसी आधार की नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारियां, मीनार और गुम्बद बनते हैं लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दबी होती है जिसे देखने को भी जी नहीं चाहता। जीवन परमात्मा की सृष्टि है, इसीलिए अनन्त है, अबोध है, अगम्य है। साहित्य मनुष्य की सृष्टि है, इसीलिए सुबोध है, सुगम है और मर्यादाओं से परिमित है। मनुष्य जीवनपर्यंत आनंद की खोज में पड़ा रहता है। किसी को वह रत्न, द्रव्य में मिलता है, किसी को भरे-पूरे परिवार में, किसी को लम्बे-चौड़े भवन में, किसी को ऐश्वर्य में लेकिन साहित्य का आनंद, हर आनंद से ऊंचा है, सबसे पवित्र है क्योंकि उसका आधार सुन्दर और सत्य है।
कवि और साहित्यकार श्रवण कुमार बाजपेयी का जीवन व्यक्तिगत अस्तित्व नहीं बल्कि समाज और समय से जुड़ा ऐसा फलसफा है, जिसमें आनंद के साथ समाज की पीड़ा का भान होता है। एक साहित्यकार अपनी लेखनी से यथार्थ का सृजन करता है, समाज को जागरूक करता है और उसे प्रबुद्ध बनाने का काम करता है। यही कुछ कर रहे हैं कानपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्रवण कुमार बाजपेयी। श्री बाजपेयी का बचपन से अब तक का सफर मायावी दुनिया से इतर किसी न किसी रूप में साहित्य से जुड़ा रहा है। सामाजिक यथार्थ को इन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों में जगह देकर साहित्य को गहराई प्रदान की है।
किसी भी साहित्यकार के जीवन का विश्लेषण उसके साहित्य के मूल्यांकन से करना कठिन है। अच्छा साहित्य वही है जोकि सरल हो तथा जिसमें समाज को जगाने की क्षमता हो। श्रवण कुमार बाजपेयी अपनी लेखनी के माध्यम से यह काम लगभग पांच दशक से निर्बाध रूप से कर रहे हैं। इनके जीवन में लाख चुनौतियां आई हों, इनका साहित्य अनुराग हमेशा जिन्दा रहा है। श्री बाजपेयी सामाजिक और पारिवारिक चुनौतियों से सामंजस्य बिठाते हुए दिन-रात लेखन में जुटे रहते हैं। एक साल पहले श्री बाजपेयी का काव्य-संग्रह लबों को कब तलक खामोश रखूं प्रकाशित हुआ तो अब "लब मुस्करा उठे" काव्य संग्रह सुधि पाठकों के बीच शीघ्र आ रहा है।
"लब मुस्करा उठे" काव्य संग्रह की रचनाएं न केवल गुदगुदाती हैं बल्कि समाज को गहरा संदेश भी देती हैं। श्री बाजपेयी की कविताओं में समय और समाज की कुरीतियों से लड़ने का जज्बा तो दो लाइनों की शायरी जीवन के सही अर्थों में अपनी जैसी कहानी लगती है। इनकी रचनाओं में पद, प्रतिष्ठा और समय पर अभिमान न करने की सीख मिलती है। श्री बाजपेयी के दूसरे काव्य संग्रह "लब मुस्करा उठे" में अपने-परायों के व्यवहार, रीति-रिवाजों का विरोध तथा जिन्दगी की वास्तविकता को बड़ी सरलता और बेबाकी से शब्दाकार दिया गया है। श्री बाजपेयी की कृतियां जहां सामाजिक विद्रूपताओं पर कड़ा प्रहार करती हैं वहीं सोते समाज को भी जगाती हैं। विश्वास है "लब मुस्करा उठे" काव्य संग्रह प्रबुद्ध पाठकों को जरूर पसंद आएगा तथा यह कृति समाज जागरण में अपनी महती भूमिका निभाएगी।
-श्रीप्रकाश शुक्ला
सम्पादक राष्ट्रीय खेलपथ