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आर्थिक सम्प्रभुता के लिए स्वदेशी का लें संकल्प
खेलपथ संदेश
ग्वालियर। इस समय देश अमेरिकी दादागिरी से तंग है। वह आंखें दिखा रहा है। क्यों, इसकी तह में हमारी अमेरिका से जुड़ी आवश्यकताएं हैं। हम स्वदेशी को अपनाकर अमेरिका की तुनकमिजाजी का माकूल जवाब दे सकते हैं। ऐसा हम सब के कठोर संकल्प के बिना सम्भव नहीं होगा। राष्ट्रहित में हम अपनी आवश्यकताओं में कमी लाकर देश को आर्थिक समृद्ध कर सकते हैं।
इस समय ट्रंप की टैरिफ दादागीरी चल रही है। तमाम देशों का आर्थिक संरक्षणवाद उसे निरंकुश बना रहा है। भारत भी आसन्न संकट का सामना कर रहा है। ऐसे नाजुक समय में हम स्वदेशी अपनाने का संकल्प लेकर भारत की आर्थिक चुनौतियों को सम्बल दे सकते हैं। वाराणसी में अपने लोकसभा क्षेत्र से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों का आह्वान किया है कि संकल्प लें कि हम अपने घर स्वदेशी सामान ही लाएंगे। उल्लेखनीय है कि कोरोना संकट के दौरान जब वैश्विक आपूर्ति शृंखला डगमगाई थी, तब भी प्रधानमंत्री ने देश में स्वदेशी आंदोलन का आह्वान किया था।
निस्संदेह, इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन हकीकत है कि अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हुए। आज के ऐसे दौर में जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं घोर संरक्षणवाद का सहारा ले रही हैं, भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को स्वदेशी के संकल्प से ही संरक्षण देना होगा। ये कदम मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में अपरिहार्य हैं क्योंकि दुनिया के तमाम देश अपने-अपने आर्थिक हितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर अन्यायपूर्ण ढंग से लगाया गया 25 फीसदी का टैरिफ इस कड़ी का ही विस्तार है।
ऐसे वक्त में जब भारत दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है तो हमें घरेलू अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य सुधारने को अपनी प्राथमिकता बनाना ही होगा। यदि हमारी अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर होगी तो फिर कोई वैश्विक नेता दबाव बनाकर हमारी विदेश व आर्थिक नीतियों को प्रभावित न कर सकेगा। विडम्बना यह है कि चीन के लगातार शत्रुतापूर्ण व्यवहार व सीमा पर तनाव के बावजूद चीनी उत्पादों का आयात बढ़ता ही जा रहा है। यहां तक कि हमारे त्योहारों का सामान भी चीन से बनकर आ रहा है।
इसमें दो राय नहीं कि स्वदेशी का संकल्प देश की वर्तमान जरूरत है, लेकिन देश के उद्यमियों को भी सुनिश्चित करना होगा कि स्वदेशी वस्तुओं का विकल्प गुणवत्तापूर्ण हो। आज के उपभोक्तावादी युग में लोग गुणवत्ता से समझौता करने को तैयार नहीं होते। उद्यमियों को सोचना होगा कि कैसे चीन के उद्यमी कम लागत में गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध करा रहे हैं। सरकार को भी उद्योग व व्यापार जगत पर नौकरशाही के शिकंजे को कम करना होगा।
उत्पादन क्षेत्र को हमें उस स्तर तक ले जाने के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करना होगा, जहां गुणवत्तापूर्ण सस्ते उत्पाद तैयार किए जा सकें। जरूरत इस बात की भी है कि हम अपने विशाल असंगठित क्षेत्र को संगठित क्षेत्र में शामिल करने के लिये प्रयास करें। हम याद रखें कि चीन ने अपने देश में लघु उद्योगों को संगठित करके ही दुनिया में उत्पादन के क्षेत्र में बादशाहत हासिल की है। विश्व में सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत को अपनी युवा आबादी की क्षमता का उपयोग करने के लिये इस दिशा में बड़ी पहल करनी होगी।
हमारा शिक्षा का ढांचा इस तरह तैयार हो कि हम कौशल विकास को अपनी प्राथमिकता बनाएं। जिससे हम कालांतर कृत्रिम बुद्धिमत्ता और आधुनिक तकनीक का उपयोग उत्पादन बढ़ाने के लिये कर सकें। तब स्वदेशी के संकल्प से भारत न केवल आत्मनिर्भर होगा बल्कि हम गुणवत्तापूर्ण निर्यात के जरिये अपने दुर्लभ विदेशी मुद्रा भंडार को भी समृद्ध कर सकेंगे। हम अपनों को पहचानें और राष्ट्र की तरक्की में चार चांद लगाएं।