उड़नपरी पीटी ऊषा प्रतिभाओं को सिखा रहीं जीत के गुर

आयोजनों में बढ़ती तड़क-भड़क और खेलों में मूलभावना गायब होने से दुखी

खेलपथ प्रतिनिधि

नई दिल्ली। उड़नपरी के नाम से विख्यात पीटी ऊषा बच्चों को जीत के गुर सिखा रही हैं। ऊषा एथलीटों और धावकों को अपनी एकेडमी में सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ उनमें जीत का जज्बा पैदा करती हैं। पीटी ऊषा का मानना है कि खेलों के लिये सुविधाओं की जरूरत तो होती ही है, लेकिन बच्चों को मोटिवेट करने की बहुत जरूरत होती है।

ऊषा का मानना है कि सुविधाविहीन लोगों में भी प्रतिभाएं छिपी होती हैं, इसलिये इन्हें बाहर निकालने की जरूरत है। ऊषा खेलों के आयोजन में बढ़ती तड़क-भड़क और खेलों की मूलभावना गायब होने से दुखी हैं। ऊषा का कहना है कि आजकल के आयोजनों में खिलाड़ियों को कम कलाकारों को ज्यादा फायदा होता है। ऊषा कहती हैं कि देश में खेलों का जमीनी स्तर पर बुनियादी ढांचा बेहतर हुआ है लेकिन इससे ओलम्पिक की तैयारी कर रहे खिलाड़ियों को ज्यादा फायदा नहीं होगा।

खेल आयोजनों में क्या खामियां रहती हैं जैसे सवाल ऊषा कहती हैं, आजकल आयोजक खेलों और खिलाड़ियों की बजाय उद्घाटन और समापन समारोह को लेकर अधिक चिंतित रहते हैं। ऊषा ने कहा कि  अच्छे स्टेडियम, ट्रैक और अन्य बुनियादी ढांचे से खिलाड़ियों को मदद मिलेगी। यह छोटी बात नहीं है बल्कि खेलों के आयोजन का यही एक फायदा है। पीटी ऊषा का कहना है कि टोक्यो ओलम्पिक के लिये खिलाड़ियों को जी-तोड़ मेहनत करनी होगी।

पीटी ऊषा का सफरनामा

पीटी ऊषा का जन्म 27 जून, 1964 को केरल के कोझीकोड जिले के पय्योली ग्राम में हुआ था। वह केरल राज्य की खिलाड़ी रही हैं। ”भारतीय ट्रैक एण्ड फील्ड की रानी” माने जानी वाली पीटी ऊषा भारतीय खेलों किसी न किसी रूप में 1979 से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं। 1976 में केरल राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए एक खेल विद्यालय खोला और ऊषा को अपने जिले का प्रतिनिधि चुना गया। 1979 में उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खेलों में भाग लिया था। यहां ओएम नाम्बियार का ध्यान उन पर गया। यही अंत तक उनके प्रशिक्षक रहे। 1980 के मास्को ओलम्पिक में उनकी शुरुआत कुछ खास नहीं रही। 1982 के नयी दिल्ली एशियाड में उन्हें 100 मीटर व 200 मीटर दौड़ में रजत पदक मिले, लेकिन एक वर्ष बाद कुवैत में एशियाई ट्रैक और फ़ील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई कीर्तिमान के साथ उन्होंने 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता।

1984 के लॉस एंजिल्स ओलम्पिक की 400 मीटर बाधा दौड़ के सेमीफ़ाइनल में वे प्रथम थीं, पर फ़ाइनल में पीछे रह गईं। 400 मीटर बाधा दौड़ का सेमीफ़ाइनल जीत कर वह किसी भी ओलम्पिक प्रतियोगिता के फ़ाइनल में पहुँचने वाली पहली महिला और पांचवीं भारतीय बनीं। 1986 में सियोल में हुए दसवें एशियाई खेलों में पीटी ऊषा ने चार स्वर्ण व एक रजत पदक जीते थे। उन्होंने जितनी भी दौड़ों में भाग लिया, सभी में नए एशियाई खेल कीर्तिमान स्थापित किए।

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