भारतीयों की गाबा में बल्ले से बल्ले-बल्ले

श्रीप्रकाश शुक्ला
क्रिकेट को गाली देने वालों के लिए यह एक सबक है। ऐसे वक्त में जब टीम में रेगुलर कप्तान न हो, आधे खिलाड़ी चोटिल हों, शृंखला के पहले मैच में भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे न्यूनतम स्कोर पर टीम हारी हो, टीम की कोशिश मैच बचाने की हो और टीम परदेश की तूफानी पिचों पर जीत छीन ले तो निस्संदेह यह चमत्कार जैसा ही है। चमत्कार किया ऐसे खिलाड़ियों ने, जिन्हें मुख्य खिलाड़ियों के चोटिल होने के कारण टीम में जगह मिली थी। सही मायनों में यह जीत संयत होकर धैर्य के साथ आस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों की उछाल लेती गेंदों और लगातार गाली-गलौज करते दर्शकों को झेलते हुए हासिल की गई। 
एक हारी हुई बाजी को दूसरा मैच जीत कर बराबर करना, फिर तीसरा मैच ड्रा करके चौथा मैच जीत लेना असम्भव को सम्भव बना लेने जैसा ही था। क्रिकेट को सभ्य लोगों का खेल कहा जाता है, लेकिन सभ्यता न आस्ट्रेलिया के दर्शकों ने दिखायी और न ही खिलाड़ियों ने। खिलाड़ी लगातार नये खिलाड़ियों पर चोट पहुंचाने वाली बाउंसर गेंदें फेंकते रहे। लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने लगातार धैर्य और संयम से भद्रपुरुषों का खेल खेला, एकाग्रता भंग नहीं होने दी और जीत की नई परिभाषा लिख दी। इसका श्रेय वैकल्पिक कप्तान अजिंक्य रहाणे को भी जाता है जिन्होंने अपनी टीम के खिलाड़ियों का बेहतर ढंग से उपयोग किया और उन्हें जरूरत के हिसाब से मैदान सजाने की अनुमति दी। बहरहाल, भारतीय खिलाड़ियों ने बॉल और बल्ले से टीम की बल्ले-बल्ले करा दी। इस शृंखला की बड़ी उपलब्धि ऋषभ पंत के रूप में विकेटकीपर बल्लेबाज की शानदार पारी भी रही, जिसने न केवल महेंद्र सिंह धोनी की कमी को पूरा किया बल्कि मुश्किल वक्त में शानदार पारी खेलकर टीम में जीत की भूख को बरकरार रखा।
निस्संदेह, चौथे टेस्ट में उदीयमान शुभमन गिल की शुभंकर पारी, ऋषभ पंत की तूफानी पारी और चेतेश्वर पुजारा की धैर्य से खेली गई पारी की जीत में निर्णायक भूमिका रही। तभी टीम आस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर बढ़त वाले मैच में हार का स्वाद चखाने में कामयाब हुए। बहरहाल, ब्रिसबेन टैस्ट मैच में जीत के साथ ही भारत ने यह शृंखला 2-1 से जीत ली और बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी आस्ट्रेलिया को लौटाने की नौबत नहीं आयी। इस जीत ने एडिलेड टैस्ट की उस शर्मनाक पराजय का दाग भी धोया है, जिसमें पूरी भारतीय टेस्ट क्रिकेट इतिहास के सबसे न्यूनतम स्कोर 36 पर आउट हो गई थी।
उस बेहद अपमानजनक हार से उबरना, दूसरा मैच विराट कोहली की अनुपस्थिति में जीतना, तीसरा मैच ड्रा करवाना और फिर ब्रिसबेन में आस्ट्रेलिया के पाले में गये मैच को ड्रा कराने रक्षात्मक खेल के बीच आस्ट्रेलिया से जीत छीन लेना एक नई भारतीय क्रिकेट टीम के उदय होने की कहानी है। वह भी विदेश की धरती पर, उस आस्ट्रेलिया में जहां तेज पिचें स्वदेशी खिलाड़ियों की तूफानी गेंदबाजी के अनुरूप बनती हैं। फिर आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी बाउंसरों और शरीर को चोट पहुंचाने वाली तेज गेंदों से मेहमान खिलाड़ियों का मनोबल तोड़ने का भरसक प्रयास करते हैं। दरअसल, आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी पिच के अलावा दिमागी गेम विपक्षी टीम का मनोबल गिराने के लिये लगातार खेलते हैं। इतनी विषम परिस्थितियों में भारतीय टीम का जीतना कई मायनों में उपलब्धियों भरा है। वह भी ऐसे वक्त में, जब पूरा देश कोरोना संकट से जूझ रहा था और टीम आईपीएल की लंबी और थकाऊ शृंखला खेलकर आस्ट्रेलिया पहुंची थी। खिलाड़ियों को न तो अभ्यास के लिये पर्याप्त समय मिल पाया और न ही फिटनेस की तैयारी हो पायी। यही वजह है कि आधी टीम चोटिल हुई। 
बहरहाल, चौथे मैच में हार बचाने की कवायद यदि जीत दिला दे तो टीम के युवा तुर्कों की मुक्तकंठ से प्रशंसा करनी ही चाहिए। इस शृंखला में आम भारतीयों से बेहद कम परिचित और जख्मी खिलाड़ियों की जगह खेलने आये नवोदित खिलाड़ियों मोहम्मद सिराज, शार्दुल ठाकुर, नटराजन और वॉशिंगटन सुंदर जैसे खिलाड़ियों ने संकट को अवसर में बदलकर जीत की इबारत लिखने में बड़ी भूमिका निभायी।

 

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