सफलता को संयोग नहीं चाहिए साहस

श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर। जिन्दगी में संयोग जैसी कोई चीज होती ही नहीं है। अगर कुछ होता है तो वह है साहस। दुनिया के वह सभी नाम जिनके साथ महानता, नवीनता और कुछ नया करने जैसे काम जुड़े हैं, उनके साथ सबसे बड़ा शब्द साहस ही रहा है। पहली नजर में हम अक्सर इसे ठीक से पहचान नहीं पाते।
हम प्रतिभाशाली, परिश्रमी और कथित तेज दिमाग जैसी चीजों से कहीं अधिक प्रभावित होते हैं जबकि हमें जो हासिल करना है, जो हम हासिल कर पाते हैं उसमें सबसे बड़ा तत्व साहस ही होता है। जिसमें साहस नहीं, अगर वह सही रास्ते पर निकला भी तो कोई गारंटी नहीं कि सफर पर रहे ही, मंजिल तक पहुंचे ही। जिसे अपने सपनों पर भरोसा नहीं होता, उसके सपनों पर दुनिया कैसे भरोसा करेगी।
पी.टी. ऊषा, सानिया मिर्जा, मैरीकाम, साइना नेहवाल, पी.वी. सिन्धु, अंजलि भागवत, मिताली राज, झूलन गोस्वामी, पूनम चोपड़ा आदि ने जो कुछ हासिल किया है, उसमें उनके गुणों और पराक्रम से अधिक योगदान उस साहस का है, जो उन्होंने खेल के रास्ते को चुनते हुए, उस पर टिके रहकर दिखाया, जिस पर जाने के पक्ष में उनके साथ आरम्भ में कोई नहीं था, यहां तक कि माता-पिता भी नहीं।
आत्मा और एकांत में लिए गए निर्णय मनुष्य के उस राह पर आगे बढ़ने के प्रस्थान बिंदु हैं, जहां वह जाना चाहता है। भारतीय सफल बेटियों के प्रारम्भिक क्षणों पर मंथन करें तो उन्होंने अपने निर्णय खुद लिए, भले ही उन्हें इसके लिए विरोध का सामना करना पड़ा हो। जिसने भी अपने मिजाज पर भरोसा रख सपने देखे उनकी राह कितनी भी पथरीली-कंटीली क्यों न रही हो, देर-सबेर उन्हें मंजिल जरूर मिली है।
यह सच है आसानी से हासिल मंजिल की कीमत कम होती है। बिना पर्वतों पर गए, दुर्गम जंगलों से गुजरे कोई भी पर्वतारोही नहीं बन सकता, इसलिए जीवन में खतरों के प्रति हमेशा समर्पित रहें, उनके लिए खुद को तैयार रखें। किनारों पर बैठकर केवल नाव गिनी जा सकती हैं लेकिन समंदर पार नहीं किया जा सकता।
सफलता वही हासिल कर सकता है जिसमें स्वयं निर्णय लेने की क्षमता हो। स्वयं निर्णय लेने में हो सकता है कि कुछ गलत हो या सारे के सारे गलत हों लेकिन इससे जो हासिल होगा वह कुछ निर्णय न कर पाने से तो बेहतर ही होगा। इससे जिंदगी में आप कम से कम खुद से कभी नाराज नहीं रहेंगे, जिन्दगी में हमेशा इस संतोष के साथ जिएंगे, जो चाहा वह किया, जैसा चाहा वैसा जिया।
यह जीवन में हासिल होने वाले सबसे बड़े सुखों में से एक होगा। कोशिश में जो कशिश और संतोष है, उसके लिए पूरी जिन्दगी दांव पर लगाई जा सकती है। यकीन रखें, यह दांव कभी खाली नहीं जाता। हम एक होकर भी दो हैं, दो होकर भी एक हैं। एक वह हैं जो सबको दिखते हैं। दूसरे वह हैं जो मन की गुफा में खुद को समेटे रहते हैं। हमारा निर्माण करने वाला हमारा एकांत है। एकांत में जिस तरह हम स्वयं से संवाद करते हैं, उससे ही हमारा सृजन होता है। मन की फैक्ट्री में ही मनुष्यता का असल निर्माण होता है।
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