ग्लोबल खेल का सफर दूर

पिछले कुछ सालों में कई राज्यों में लोकप्रिय हुआ मलखंभ
बढ़ावा देने के लिए युवा एंव स्पोर्ट्स मंत्रालय की ओर से उठाए गए कदम
नई दिल्ली।
बेशक देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात में युवाओं को व्यायामशाला (फिटनेस सेंटर) में जाने और मलखंभ को ग्लोबल खेल बनाने की बात कही। लेकिन प्रधानमंत्री का मलखंभ को ओलिंपिक में देखने का सपना हकीकत से कोसों दूर है। आजादी से पहले 1936 बर्लिन ओलिंपिक में गुरु हनुमान अखाड़ा अमरावती के सदस्यों ने मलखंभ का डेमो दिया था। लेकिन इतने सालों बाद भी यह खेल भारत के गांवों तक नहीं पहुंच पाया है।

84 साल बीत जाने के बाद भी हम इस खेल के गुरु द्रोण तैयार करने के लिए सिलेबस तक तैयार नहीं कर सके हैं। वहीं अब तक केवल एक वर्ल्ड चैम्पियनशिप ही कराने में सफल हो पाए हैं। हालांकि 1936 के बाद 1982 दिल्ली एशियन गेम्स में भी डेमो दिया गया। वहीं 1984 ओलिंपिक गेम्स लॉस एंजिल्स में मलखंभ को लेकर पेपर प्रस्तुत किए गए। लेकिन सरकारी उपेक्षाओं के कारण 83 साल बाद इस खेल का पहला वर्ल्ड चैम्पियनशिप 2019 में हुआ। हम एशियन चैम्पियनशिप भी नहीं करा पाए हैं।
1982 दिल्ली एशियन गेम्स और 1984 में लॉस एंजिल्स में मलखंभ को लेकर द इंडियन जिम्नास्टिक स्पोर्ट्स पर पेपर प्रस्तुत करने वाले तेलंगाना स्टेट मलखंभ एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राजीव जलानापुरका का कहना है कि सरकारी उपेक्षाओं के कारण ही इस खेल को ग्लोबल बनाने में इतने साल लग गए हैं। अगर पिछले एक साल से जो सुविधाएं और सपोर्ट मिल रहे हैं, अगर वह पहले मिले हो तो मलखंभ पूरे विश्व में लोकप्रिय होता। पिछले एक साल से सरकारी सपोर्ट किया मिल रहा है। उन्होंने फ्रांस, जर्मनी अमेरिका सहित कई देशों में जाकर लोगों को इस खेल के बारे में बताया है। राजीव मलखंभ के नेशनल चैम्पियन रह चुके हैं और उन्हें 1978-79 में महाराष्ट्र सरकार ने छत्रपति शिवाजी अवॉर्ड से सम्मानित कर चुकी है।
राजीव ने बताया कि पिछले एक साल से इस खेल को ग्लोबल बनाने और देश में इसे लोकप्रिय बनाने के लिए युवा एवं स्पोर्ट्स मंत्रालय की ओर से सपोर्ट किया जा रहा है। देश भर में 100 सेंटर खोले गए हैं। यहां पर आधुनिक एक्यूपमेंट उपलब्ध कराए गए हैं। साथ ही 5 कोच नियुक्त किए गए हैं। वहीं इसे खेलो इंडिया गेम्स में शामिल किया गया है। इसके खिलाड़ियों को 10 हजार रुपए स्कॉलरशिप दिया जा रहा है। करीब 80 से 90 खिलाड़ी इसका लाभ उठा रहे हैं। वहीं अन्य खेलों की तरह इस खेल के नेशनल फेडरेशन को नेशनल चैम्पियनशिप के आयोजन के लिए 2016 से बजट दिया जा रहा है। इस खेल के खिलाड़ियों में कंपीटिशन की भावना पैदा करने के लिए एक भारत, श्रेष्ठ भारत के तहत पिछले साल से प्रतियोगिता करवाया जा रहा है। इस खेल के खिलाड़ियों को भी अब सरकारी नौकरी मिल सकेगा। सरकार ने इस खेल को भी 45 खेलों के साथ सरकारी जॉब के लिए आरक्षण देने वाली खेलो की सूची में इस साल शामिल किया है।
अभी इस खेल को वर्ल्ड में पहुंचाने के लिए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स ( एनआईएस पटियाला) में इसके भी कोर्स शुरु करने होंगे, ताकि हम अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोच निकाल सके। वहीं इसके साइंटिफिक स्टडी को बढ़ावा देने की जरूरत है। इस खेल की जानकारी व्यायाम ज्ञान कोश में दी गई है। लेकिन समय के अनुसार इसे खेल में हुए बदलावों को शामिल करने के लिए कमिटी बनाने होंगे। ताकि इस खेल के स्टैंर्ड मापदंड को तैयार किया जा सके। हालांकि नेशनल मलखंभ फेडरेशन की ओर से कोड ऑफ कंडक्ट तैयार किए गए हैं। वहीं इसके जजों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम भी तैयार किया गया है। उनके टेस्ट भी हो रहे हैं। लेकिन इसमें अभी बहुत काम करने की जरूरत है।
पिछले साल मुंबई के शिवाजी पार्क में फर्स्ट मलखंभ वर्ल्ड चैम्पियनशिप का आयोजन हुआ। इसमें भारत सहित 15 देशों के खिलाड़ियों ने भाग लिया। जिनमें स्पेन, जर्मनी, चेक रिपब्लिक, इटली, यूएसए, ईरान, नॉर्वे, इंग्लैंड, फ्रांस, मलेशिया, सिंगापुर, जापान, वियतनाम और बहरीन शामिल है। इंडिया की टीम ओवर ऑल पहले,सिंगापुर की टीम दूसरे और मलेशिया की टीम तीसरे स्थान पर रही।
मलखंभ के पहले द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित योगेश मालवीय ने बताया कि मलखंभ के चार इवेंट होते हैं। पोल मलखंभ, रोप मलखंभ, हैगिंग मलखंभ और पिरामिड शामिल है। प्रत्येक इवेंट में एक देश के 6 खिलाड़ी शामिल होते हैं। जो टीम इवेंट में भाग लेते हैं।
मलखंभ फेडरेशन ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष दिलीप गंवाने ने बताया कि पिछले कुछ सालों तक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के खिलाड़ियों का ही नेशनल चैम्पियनशिप में वर्चस्व रहता था। लेकिन अब कर्नाटक , तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, यूपी, तमिलनाडु आदि राज्यों की टीमें बेहतर कर रही है। पिछले साल अंडर-14 के नेशनल में छत्तीसगढ़ की टीम चैम्पियन बनी थी।
मलखंभ फेडरेशन ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष दिलीप गंवाने ने बताया कि मलखंभ को आकर्षक और सेफ्टी के नजरिये से सुरक्षित बनाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्रयोग के तौर पर तेलंगाना फेडरेशन की ओर से मलखंभ के पुरुष खिलाड़ियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के कॉस्ट्यूम तैयार किया गया है। पहले खिलाड़ी लंगोट पहनकर मलखंभ करते थे। इस वजह से कई युवा इस खेल में रुचि नहीं लेते थे। इसलिए आकर्षक बनाने के लिए प्रयोग किए जा रह हैं। पहले पोल के पास नीचे दरी या स्थानीय स्तर पर बने गद्दे को रखा जाता था। गिरने पर चोट लगने की संभावना बनी रहती थी। लेकिन अब क्रैश मैट का प्रयोग किया जाता है। जिस पर चोट नहीं लगती है।

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