पूनम तिवारी ने लिखी संघर्ष की पटकथा

अब हरदोई की प्रतिभाओं में भर रहीं जीत का जज्बा
पावरलिफ्टिंग में फहराया तिरंगा
श्रीप्रकाश शुक्ला

कहते हैं कि यदि इंसान में कुछ हासिल करने का जोश और जुनून सवार हो तो लाख बाधाएं आ जाएं वह अपनी मंजिलें हासिल कर ही लेता है। 40 बसंत पार कर चुकी हरदोई की जांबाज बेटी पूनम तिवारी ने भी जीवन में आई हर मुफलिसी का न केवल डटकर सामना किया बल्कि अपना लक्ष्य हासिल करके ही दम लिया। बचपन से ही खेलों को समर्पित इस जांबाज वेटलिफ्टर और पावरलिफ्टर ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर पदकों के ढेर लगाए बल्कि 2002 में दक्षिण कोरिया में हुई एशियन पावर लिफ्टिंग चैम्पियनशिप में चांदी का पदक जीतकर देश और उत्तर प्रदेश के सामने भारतीय मातृशक्ति का नायाब उदाहरण पेश किया।

पूनम को दक्षिण कोरिया जाने से पहले सामाजिक शब्दबाणों का भी सामना करना पड़ा लेकिन उसने हर किन्तु-परन्तु को नकारते हुए अपने बीमार पिता के सपने को साकार करना ही उचित समझा। आर्थिक तंगहाली के चलते बेशक जांबाज पूनम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी ताकत का जलवा दिखाने के पर्याप्त अवसर न मिले हों लेकिन इस खिलाड़ी बेटी की खेल इच्छाशक्ति में लेशमात्र भी बदलाव नहीं आया। पूनम तिवारी ने खेल के क्षेत्र में न केवल संघर्ष की नई पटकथा लिखी बल्कि आज वह हरदोई की प्रतिभाओं में जीत का जज्बा जगा रही हैं। पूनम शुक्रगुजार हैं राज्य सरकार के खेल महकमे का जिसने उन्हें संविदा प्रशिक्षक बतौर हरदोई के स्टेडियम में प्रतिभाओं का कौशल निखारने की जवाबदेही दे रखी है।
समाज बदल रहा है। सामाजिक परम्पराएं बदल रही हैं। बेटियों को भी बेटों की तरह खुले आसमान में स्वच्छंद उड़ान भरने के अवसर मिल रहे हैं बावजूद इसके हमारे देश की अधिकांश महिला खिलाड़ी आज भी हालात और मजबूरियों के चलते अपने सपने साकार नहीं कर पा रही हैं। पूनम के जीवन में भी तरह-तरह की मुसीबतें आईं लेकिन उन्होंने मुसीबतों से हार मानने की बजाय उनका डटकर सामना किया। हरदोई की इस नारी शक्ति ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पचासों पदक जीतने के साथ ही खेल प्रतिभाओं को कुछ देने की गरज से ही प्रशिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज एन.आई.एस. डिप्लोमा भी हासिल किया। पूनम चाहती हैं कि अब हरदोई के बेटे-बेटियां प्रदेश और देश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन करें।
उत्तर प्रदेश में वेटलिफ्टिंग की पहली एन.आई.एस. पूनम तिवारी का जन्म सात अगस्त, 1976 को गोलोकवासी सुरेन्द्र कुमार-अन्नपूर्णा तिवारी के घर हुआ। छह भाई-बहनों में सबसे बड़ी पूनम तिवारी को बचपन से ही खेलों में विशेष रुचि रही है। हरदोई में वेटलिफ्टिंग और पावलिफ्टिंग की पहचान बन चुकी पूनम तिवारी की खेलों में अभिरुचि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह स्कूली दिनों में ही हाकी, कबड्डी, खो-खो, बास्केटबाल, वालीबाल तथा एथलेटिक्स के क्षेत्र में धूम मचाते हुए मोतियों की जगह पदकों की माला पहनने लगी थीं। 1999 में वह मण्डलस्तरीय हाकी प्रतियोगिता में अपनी टीम की कप्तान भी रहीं। पूनम ने खेलों के साथ ही सांस्कृतिक आयोजनों में भी खूब नाम कमाया और दर्जनों पदक जीते। खेलप्रेमियों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि पूनम के सभी भाई-बहन किसी न किसी खेल के राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। पूनम के जीवन-साथी राजधर मिश्र भी अंतरराष्ट्रीय पावरलिफ्टर हैं। श्री मिश्र ने पावर लिफ्टिंग में देश के लिए कई मैडल जीते हैं। समाज शास्त्र विषय से परास्नातक पूनम तिवारी ने 1998 में इलाहाबाद से डिप्लोमा इन फिजिकल एजूकेशन (डीपीएड), 2001 में पटियाला से वेटलिफ्टिंग से एन.आई.एस. तथा 2008 में मिर्जापुर से बी.टी.सी. करने के साथ 2010 में नई दिल्ली से रेफरीशिप का डिप्लोमा हासिल किया। जांबाज पूनम ने वेटलिफ्टिंग और पावर लिफ्टिंग में राष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों पदक जीते तो 2002 में दक्षिण कोरिया में हुई एशियन पावर लिफ्टिंग चैम्पियनशिप में चांदी का पदक जीतकर अपनी ताकत का समूचे एशिया महाद्वीप में जलवा दिखाया।
संघर्ष और पूनम एक-दूसरे के पर्याय हैं। जब पूनम के सपनों को अंतरराष्ट्रीय फलक पर उड़ान मिलने ही जा रही थी कि उनके सिर से पिता का साया उठ गया। कोई और लड़की होती तो मुसीबत के उन क्षणों में उसकी हिम्मत दगा दे जाती लेकिन पूनम ने हंसते हुए अपने भाई-बहनों की पढ़ाई-लिखाई का भार अपने कंधों पर उठाकर समाज के सामने एक नजीर स्थापित की। दक्षिण कोरिया में जीते चांदी के पदक के बाद जो भी आर्थिक मदद मिली उसे उसने अपने पिता की बीमारी पर खर्च कर इस बात का संदेश दिया कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं हैं। पूनम अपने पिता को तो नहीं बचा सकीं लेकिन भाई-बहनों का जीवन संवारने में कोई कोताही नहीं बरती। पूनम तिवारी लाजवाब वेटलिफ्टर और पावरलिफ्टर होने के साथ ही इन खेलों की अच्छी जानकार भी हैं। आज पूनम से प्रशिक्षण प्राप्त दर्जनों वेटलिफ्टर और पावरलिफ्टर बेटे-बेटियां राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा-कौशल का जलवा दिखा रहे हैं।
पूनम तिवारी एक दशक तक बतौर खिलाड़ी जिस भी जूनियर और सीनियर प्रतियोगिता में उतरीं उनके हाथ कोई न कोई मैडल जरूर लगा। कई खेल संगठनों का सफल संचालन कर रहीं पूनम तिवारी की उपलब्धियों को न केवल समाज ने स्वीकारोक्ति दी बल्कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय वेटलिफ्टिंग और पावरलिफ्टिंग संघों ने भी उनकी काबिलियत को सराहा है। पूनम तिवारी के उत्तर प्रदेश टीम का प्रशिक्षक रहते खिलाड़ियों ने नेशनल स्तर पर कई स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक भी जीते हैं। पूनम को गुवाहाटी में हुए 12वें दक्षिण एशियाई खेलों में इंटरनेशनल रेफरी की भूमिका का निर्वहन करने के साथ ही 2015 में पुणे में हुए यूथ कामनवेल्थ खेलों में टेक्निकल आफिसियल बतौर सेवा देने का अवसर मिल चुका है। यह खिलाड़ी बेटी और प्रशिक्षक 22 से 25 दिसम्बर 2012 तक हरदोई में 19वीं नेशनल पुरुष और महिला स्ट्रेंथ लिफ्टिंग प्रतियोगिता की भी सफल मेजबानी कर चुकी है। इस प्रतियोगिता में निःशक्त खिलाड़ियों ने भी शानदार कौशल दिखाकर खेलप्रेमियों को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर किया था।
खेलों को पूरी तरह से समर्पित पूनम तिवारी उठते-बैठते, सोते-जगते सिर्फ खेलों की बेहतरी का ही सपना देखती हैं। पूनम तिवारी को क्रिकेटर से खेल मंत्री बने चेतन चौहान से काफी उम्मीदें हैं। पूनम का कहना है कि उत्तर प्रदेश में खेल प्रतिभाओं और योग्य प्रशिक्षकों की कमी नहीं है। श्री चौहान के खेल मंत्री रहते खेलों और खिलाड़ियों के साथ ही प्रशिक्षकों का जरूर भला होगा, ऐसी उम्मीद है। पूनम कहती हैं कि जिस तरह सरकार बेटियों को बचाने और पढ़ाने पर अकूत पैसा खर्च कर रही उसी तरह खिलाड़ियों पर भी एक न एक दिन धनवर्षा जरूर होगी।

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