कविमना डॉ. प्रेमशंकर शुक्ल की काबिलियत को सलाम

हाकी के उत्थान को जी रहा नायाब खेलगुरु

देश को दिए 23 इंटरनेशनल खिलाड़ी

खेलों पर लिखीं हजारों कविताएं

श्रीप्रकाश शुक्ल

ग्वालियर। पुश्तैनी खेल हाकी में आज भारत की दुनिया में बेशक तूती न बोल रही हो लेकिन इस खेल को स्वर्णिम दौर में पुनः ले जाने की कई लोग कोशिशें कर रहे हैं। देश को दर्जनों अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी देने वाले उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहां सुयोग्य प्रशिक्षक भी हैं लेकिन खेलों में सरकारी अनिच्छा खिलाड़ियों की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। हम आज अपने पाठकों को एक ऐसे काबिल प्रशिक्षक से रूबरू कराने जा रहे हैं जोकि अपना सम्पूर्ण जीवन ही हाकी की बेहतरी के लिए जिया है। जी, हां चित्रकूट में जन्मे डॉ.  प्रेमशंकर शुक्ल ने हाकी को लेकर जो प्रयास और काम किए हैं, उन्हें देखते हुए मैं तो इन्हें असली द्रोणाचार्य मानता हूं।

डॉ.  प्रेमशंकर शुक्ल हाकी के न केवल अच्छे जानकार हैं बल्कि इन्होंने अब तक अपने प्रशिक्षण से देश को 23 अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं जिनमें 15 पुरुष तो आठ महिला खिलाड़ी शामिल हैं। एक कुशल प्रशिक्षक वही होता है जिसमें जमीनी स्तर पर काम करने का जुनून और ललक हो। डॉ. प्रेमशंकर शुक्ल ऐसी ही जुनूनी शख्सियत हैं। इनके प्रयासों से फर्श से अर्श तक पहुंचे खिलाड़ियों में बल्देव सिंह, अम्बुज कुमार श्रीवास्तव, हसरत कुरैशी, मोहम्मद जमशेर खान, सौरभ बिश्नोई, अनवर खान, राजीव मिश्रा, अनुराग रघुवंशी, राजेश चौहान, रविन्दर सिंह, प्रेम कुमार, प्रमोद कुमार, विवेक धर, दानिश मुज्तबा, सुनील कुमार, कविता विद्यार्थी, इति श्रीवास्तव, नेहा सिंह, वंदना कटारिया, पूनम सिंह, रितुजा मलिक, वर्तिका सिंह तथा निशा सिंह शामिल हैं। डॉ. शुक्ल से प्रशिक्षण हासिल इन खिलाड़ियों ने विश्व पटल पर हाकी में भारत का मान बढ़ाया है।

डॉ. प्रेमशंकर शुक्ल एक अच्छे प्रशिक्षक ही नहीं प्रबुद्ध लेखक और कवि भी हैं। इन्होंने मैदानों में जहां खिलाड़ियों के कौशल को निखारने की पुरजोर कोशिश की वहीं अपनी लेखनी के माध्यम से खेलों में ऐसा काम किया है, जिसे मैं व्यक्तिगत तौर पर दुर्लभ मानता हूं। डॉ. शुक्ल ने हिन्दी, अंग्रेजी तथा पंजाबी में खेलों पर जो हजारों कविताएं लिखी हैं वे भारत ही नहीं 2012 में लंदन में हुए ओलम्पिक खेलों में भी खूब सराही गई थीं। अब तक देश-दुनिया में दर्जनों अवार्ड और पुरस्कार प्राप्त करने वाले डॉ. प्रेमशंकर शुक्ल जर्मन भाषा में भी सिद्धहस्त हैं। इन्होंने पाश्चात्य भाषा में स्वर्णिम सफलता हासिल कर यह जता दिया कि लगन और मेहनत से असम्भव को भी सम्भव में बदला जा सकता है। हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद पर लिखा डॉ. शुक्ल का आलेख आज मध्य प्रदेश की पांचवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक में भी समाहित है।  

डॉ. शुक्ल प्रयोगधर्मी भी हैं। इन्हें हाकी का ज्ञान विरासत में नहीं मिला, बल्कि इसके लिए इन्होंने अपनी रातों की नींद तो दिन का चैन होम किया है। एक प्रशिक्षक में जो गुण होने चाहिए उससे भी अधिक गुण डॉ. शुक्ल में विद्यमान हैं। इन्होंने हाकी प्रशिक्षण की हर तालीम को न केवल हासिल किया है बल्कि इस खेल में कई नई स्किल्स भी ईजाद की हैं। हाकी में डेसेप्टिव हिट (भ्रामक हिट) और पुश स्किल (धक्का कौशल) को डॉ. शुक्ल ने ही ईजाद किया है। पद्मश्री मोहम्मद शाहिद और ओलम्पियन विवेक सिंह डेसेप्टिव हिट (भ्रामक हिट) के चलते ही दुनिया में सबसे अलग माने जाते थे।

हाकी खेल को गरीब और मध्यम परिवार के बच्चे ही खेलते हैं, इस बात का भान हमेशा डॉ. शुक्ल को रहा है। इन्होंने न केवल खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारा बल्कि गरीब बच्चों को खेल में आर्थिक मदद भी की। डॉ.  शुक्ल देश के एकमात्र ऐसे सुयोग्य हाकी प्रशिक्षक हैं जिन्होंने इलाहाबाद के एक स्कूल में अंधी बेटियों की एक टीम तैयार करने का अनोखा काम किया है। लगभग 20 साल तक भारतीय वायुसेना में सेवाएं देने वाले डॉ.  प्रेमशंकर शुक्ल की रग-रग में देशप्रेम समाया हुआ है। हाकी से बेशुमार मोहब्बत रखने वाले डॉ. शुक्ल ने वायुसेना की नौकरी के बाद भारतीय खेल प्राधिकरण के कई सेण्टरों में खिलाड़ियों के कौशल को निखारने का पुण्य कार्य किया है। इन्हें साई ही नहीं भारतीय पुरुष और महिला हाकी टीमों को भी जीत के गुर सिखाने का गौरव हासिल है।

डॉ.  प्रेमशंकर शुक्ल नेकदिल इंसान होने के साथ ही हरदिल अजीज हैं। अपनी काबिलियत से बेखबर डॉ. शुक्ल प्रतिपल भारतीय हाकी के उत्थान का ही सपना देखते रहते हैं। हाकी की अंतिम सांस तक सेवा करने के लिए इन्होंने अपने गांव में ही एक एकेडमी खोल रखी है। डॉ. शुक्ल मैदान पर पहुंच कर जहां प्रतिभाओं का खेल निखारते हैं वहीं घर पहुंच कर अपनी कलम से खिलाड़ियों में जोश और जज्बा भरते हैं। इस बार डॉ. प्रेमशंकर शुक्ल ने हाकी में द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए नामांकन किया है। इनके नामांकन की संस्तुति अर्जुन और द्रोणाचार्य अवार्ड प्राप्त राजिन्दर सिंह ने की है। सच कहें तो डॉ. प्रेमशंकर शुक्ल द्रोणाचार्य अवार्ड के सबसे सुपात्र हाकी-गुरु हैं। यह अपने नाम के अनुरूप ही पुश्तैनी खेल हाकी से अगाध प्रेम करते हैं। 71 साल के जिन्दादिल डॉ. प्रेमशंकर शुक्ल के हाकी प्रेम को खेलपथ का सलाम।  

       

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