मध्य प्रदेश खेल विभाग में प्रधान की बादशाहत!

समूचे प्रदेश में चलती है इनकी हुकूमत

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग में कोई मंत्री रहा हो या खेल संचालक चली हमेशा डा. विनोद प्रधान की ही है। इनकी शहद सी मधुर वाणी अच्छे अच्छों को अपने मोहपाश में फंसा लेती है। इनकी ताकत का अंदाजा लगाने में जिसने भी गलती की वह कहीं का नहीं रहा। यह किसी को भी फंसा और बचा सकते हैं। सच कहें तो खेल विभाग में इनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता।

डा. प्रधान समय की नजाकत को न केवल समझने में माहिर हैं बल्कि इन्हें कांटे से कांटा निकालना बखूबी आता है। विभाग में समय के साथ सब कुछ बदला लेकिन इनके रुतबे में जरा भी बदलाव नहीं आया। यह कल भी प्रधान थे और आज भी खेल विभाग के प्रधान ही हैं। मीडिया के एक खास वर्ग में यह काफी रसूख रखते हैं। इस वर्ग से प्रधान जो चाहे लिखवा सकते हैं, जो चाहे करवा सकते हैं। खेल मंत्री रहते स्वर्गीय तुकोजी राव पवार ने डा. विनोद प्रधान को खेल विभाग से रुख्सत कर इन्हें इनके मूल विभाग (शिक्षा) में भेजने की बहुत कोशिश की थी लेकिन इनका बाल बांका न हो सका।

सोचने की बात है जिसका खेल मंत्री कुछ न बिगाड़ सके उसका खेल संचालक क्या कर सकता है? डा. प्रधान ने अपनी मनमोहक मुस्कान और कार्यशैली से भोपाल ही नहीं समूचे मध्य प्रदेश में ऐसा संजाल बिछा रखा है कि उससे इनका विरोधी बच ही नहीं सकता। खेल विभाग में कार्यरत 90 फीसदी अधिकारी और कर्मचारी इनकी जहां बलैयां लेते हैं वहीं 10 फीसदी लोग इनके सेवानिवृत्त होने का इंतजार कर रहे हैं। डा. विनोद प्रधान को विभाग की खूबियों और खामियों की हर पल जानकारी होती है, यही वजह है कि अधिकांश खेल संचालक अपनी बला प्रधान के सर मढ़ देते हैं।

भोपाल में पले-बढ़े डा. प्रधान राजनीतिक रसूख रखते हैं। सरकार किसी की रहे खेल विभाग में प्रधान की ही सरकार चलती है। क्या मजाल इनके खिलाफ कोई संचालक नजर टेढ़ी करे। खेल विभाग का स्याह सच बिना प्रधान की मर्जी के उजागर हो ही नहीं सकता। मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग में अच्छाइयों के साथ खामियों की लम्बी फेहरिस्त है लेकिन यह उजागर तभी होती हैं जब प्रधान खुद दबाव महसूस करते हैं।

मध्य प्रदेश के बदले हालातों से खेल विभाग भी अछूता नहीं है। यशोधरा राजे सिंधिया खेल मंत्री तो पवन कुमार जैन संचालक खेल बने हैं। वैसे तो पूर्व संचालक वी.के. सिंह को नवागत श्री जैन को खेल संचालक का पदभार सौंपना था लेकिन यह रस्म-अदायगी डा. विनोद प्रधान को करनी पड़ी। श्री जैन ने 10 जुलाई को खेल संचालक की जवाबदेही स्वीकारी लेकिन नौ जुलाई को संयुक्त संचालक डा. विनोद प्रधान ने एक पत्र के माध्यम से छह खेल प्रशिक्षकों को अनुबंध समाप्ति का परवाना भेजकर गहरे संकेत दिए हैं। इन प्रशिक्षकों में एक प्रशिक्षक की कारगुजारियां इन दिनों मध्य प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय खेल हलके तक में सुर्खियां बटोर रही हैं। अब सवाल यह उठता है कि अपने निकृष्ट कार्यों से मध्य प्रदेश को शर्मसार करते इस प्रशिक्षक को खेल विभाग सेवावृद्धि देगा या नहीं? डा. विनोद प्रधान लम्बे समय से इस प्रशिक्षक के कार्यकलापों पर नजर रख रहे हैं लेकिन इसके उलट विभाग द्वारा इसका नाम द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए केन्द्रीय खेल मंत्रालय को भेजा जाना कई सवाल खड़े करता है। जो भी हो यदि इस प्रशिक्षक की सेवावृद्धि नहीं हुई तो इसका जबलपुर से नाता टूट जाएगा और एक परिवार उजड़ने से बच जाएगा। देखना यह है कि इस मसले पर प्रधान का ऊंट किस करवट बैठता है।                      

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