खिलाड़ियों का नजीर राजिंदर गोयल

दुनिया में क्रिकेट पर राज कर रहा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड कई नायाब शख्सियतों की प्रतिभा का हत्यारा भी है। हम भारतीय समय के साथ कई कष्टों को भूल जाना पसंद करते हैं। बीती बात बिसारि दे आगे की सुधि लेय, की तर्ज पर मैं भी चलने का हिमायती हूं लेकिन एक कलमकार होने के नाते कुछ बातें प्रायः कचोटती हैं और खराब सिस्टम के खिलाफ मुखर होने को उकसाती भी हैं। हाल ही भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों ने राजिंदर गोयल के रूप में एक नायाब शख्सियत को खोया है। मुझे गम इस बात का है कि फिरकी का यह जादूगर पूर्व भारतीय चयनकर्ताओं को कभी क्यों रास नहीं आया?  

राजिंदर गोयल क्रिकेट की अपनी गजब गाथा का ही उपेक्षित अध्याय हैं। फिरकी के इस जादूगर को बेशक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी गेंदों का जादू दिखाने का मौका न दिया गया हो लेकिन इसने घरेलू क्रिकेट में जो बादशाहत कायम की उसे हर भारतीय हमेशा याद रखेगा। गोयल की फिरकी का खौफ इतना था कि दिग्गज से दिग्गज बल्लेबाज भी विकेट के सामने टिक नहीं पाते थे। गोयल का नाम घरेलू क्रिकेट की ऐसी इबारत है, जिसका लोहा प्रत्येक समकालीन बल्लेबाजों ने माना। हरियाणा के नरवाना कस्बे में 20 सितम्बर, 1942 को जन्मे राजिंदर गोयल की शिक्षा व पालन-पोषण रोहतक में हुआ। उन्हें पहली बार वर्ष 1957 में उस समय पहचान मिली जब ऑल इंडिया स्कूल टूर्नामेंट के फाइनल मुकाबले में नार्थ जोन की ओर से खेलते हुए वेस्ट जोन के चार खिलाड़ियों के विकेट झटके और सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज का पुरस्कार हासिल किया।

गोयल ने हमेशा अपना प्रारम्भिक प्रशिक्षक किशन दयाल को ही माना। राजिंदर गोयल ने पटियाला, दक्षिण पंजाब, दिल्ली और हरियाणा के लिए घरेलू क्रिकेट में हिस्सा लिया तथा अपनी चकराती गेंदों का लोहा मनवाया। 24 साल के घरेलू क्रिकेट करियर में बाएं हाथ के स्पिनर राजिंदर गोयल ने 157 प्रथम श्रेणी मैच खेले, जिसमें उन्होंने 750 विकेट हासिल किए। 640 विकेट तो उन्होंने 123 रणजी ट्रॉफी मैचों में लिए थे। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 55 रन देकर आठ विकेट रहा। वर्ष 2017 में बीसीसीआई ने उन्हें सीके नायडू लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी नवाजा था। बेशक वह भारत के लिए नहीं खेल पाए लेकिन उनके चेहरे पर कभी ऐसे भाव नहीं आए, जिससे उन्हें इसका मलाल प्रतीत हुआ हो।

वह अपने जीवन से कितने संतुष्ट रहे, इसका अनुमान खेल पत्रकार प्रदीप मैगजीन द्वारा उल्लेखित वाक्ये से लगाया जा सकता है। प्रदीप मैगजीन लिखते हैं, ‘गोयल ने बैंक की नौकरी के दौरान ट्रांसफर की शर्त पर पदोन्नति लेने से इनकार कर दिया। जबकि पद, पैसा और रुतबा सब कुछ ज्यादा मिल रहा था। लेकिन वह रोहतक छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थे।’ ऐसा ही संतुष्टि का स्तर उन्होंने खेल जीवन में भी रखा। 1974-75 में जब वह शानदार फार्म में चल रहे थे तो बेंगलूरु में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट में उन्हें भारतीय टीम में शामिल किया जाना तय हो गया। उन्हें टीम में शामिल करने के लिए बुला लिया गया शुरुआत में सब कुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन जब टीम की घोषणा हुई तो उनका नाम खिलाड़ियों की लिस्ट से गायब था। दरअसल, इस मैच में बिशन सिंह बेदी को अनुशासनात्मक कार्रवाई के कारण बाहर बैठा दिया गया था। अनेक ऐसे वाक्ये मिलते हैं, पर राजिंदर गोयल ने कभी बेदी की खिलाफत नहीं की। हां, एकाध दफा ऐसा भी हुआ जब उन्होंने माना कि बेदी उनके समक्ष नहीं होते तो वह भी भारतीय टीम और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का हिस्सा बन जाते। यह सच भी है। कई ऐसे मौके आए जब बिशन सिंह बेदी ने बाजी पलटी और राजिंदर गोयल की जगह टीम इंडिया का हिस्सा बने।

उनके समकालीन व भारत के महान बल्लेबाजों में शामिल रहे सुनील गावस्कर ने भी उनकी गेंदबाजी का लोहा माना। खुद गावस्कर स्वीकार करते थे कि वह राजिंदर गोयल की फिरकी से डरते थे। हरियाणा की टीम में उनके साथी रहे अशोक मल्होत्रा की बात मानें तो वह नेट के दौरान भी अक्सर पहले ही कह देते थे कि बॉल को छू तक नहीं पाओगे व तुम्हें बाहर जाना पड़ेगा। सच में ऐसा होता भी था। बेशक बॉल वह बाएं हाथ से फेंकते लेकिन बल्लेबाजी दायें हाथ से ही करते थे।

बेहद शर्मीले व मिलनसार राजिंदर गोयल की क्रिकेट के प्रति दीवानगी यह थी कि उनकी शादी भी क्रिकेट के मैदान में तय हुई। दरअसल, जब शीला का रिश्ता लेकर उनके परिजन पहुंचे तो वह वैश्य कॉलेज के मैदान पर खेल रहे थे। क्रिकेट के प्रति उनकी दीवानगी देखकर गणपत सिंघला ने अपनी बेटी शीला का विवाह उनके साथ करना तय कर दिया। उनका एक और वाक्या उनके जीवन का निचोड़ बताने के लिए काफी होगा। अपने करियर के उफान पर जब उन्हें एक इंग्लिश लीग कांट्रेक्ट के चलते इंग्लैंड में रुकना पड़ा तो वहां उन्हें सर्दी लग गई। अलग तरह का शहर व विदेशी संस्कृति के साथ कई कारणों ने उन्हें इस कदर परेशान किया कि वह ज्यादातर समय अपने कमरे में ही बिताते। यहां तक कि वह मैदान पर भी दिखाई नहीं दिए और आखिरकार वापस वतन लौट आए। उनकी अचानक मृत्यु ने क्रिकेट खिलाड़ियों व उनके प्रशंसकों को बेशक धक्का पहुंचाया, लेकिन उनका जीवन स्वयं में एक संदेश रहा। वह कभी बहुत अधिक के पीछे नहीं दौड़े, बल्कि उसी में खुश रहे जो उन्होंने हासिल किया। रणजी के रिकार्ड्स के साथ जीवन के अनेक ऐसे पहलू हैं, जिनसे उन्हें अर्से तक याद रखा जाएगा। हम कह सकते हैं कि राजिंदर गोयल भारत के अमर क्रिकेटर के रूप में जिन्दा रहेंगे।

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