भारत में टेनिस की सनसनी सानिया

पत्रकार बनना चाहती थीं, बनीं टेनिस स्टार

श्रीप्रकाश शुक्ला

देखा जाए तो भारत में टेनिस की कई महिला खिलाड़ी समय-समय पर टेनिस कोर्ट पर उतरीं लेकिन जो सफलताएं सानिया मिर्जा को हासिल हुईं उसके करीब भी कोई खिलाड़ी नहीं पहुंच सकी। सच्चाई यह है कि टेनिस की सनसनी सानिया ने अपने खेल से दुनिया में भारत का गौरव बढ़ाया है। इस खिलाड़ी को कई बार विवादों में भी खींचा गया लेकिन इस सदाबहार खिलाड़ी ने हर किसी को अपने खेल से शांत करने में सफलता हासिल की। सानिया वैसे तो पत्रकार बनना चाहती थीं लेकिन अपने माता-पिता के प्रोत्साहन और प्रयासों से वह टेनिस स्टार बनीं।

इस साल के शुरू में भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा का यूक्रेन की नादिया किचेनोक के साथ होबार्ट इंटरनेशनल महिला युगल का खिताब जीतना भारतीय खेलों और खासकर भारतीय टेनिस के लिए एक बेहद खास लम्हा रहा। मां बनने के बाद टेनिस कोर्ट पर लौटने वाली सानिया के लिए यह वापसी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट की तरह ही है। सानिया मां बनने के बाद दो साल टेनिस से दूर थीं। पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से निकाह करने वाली सानिया ने 2018 में इजहान को जन्म दिया। उन्होंने अक्टूबर, 2017 में आखिरी टूर्नामेंट खेला था।

दरअसल, 35 साल की सानिया की पूरी जिन्दगी की कहानी असल होने की बजाय काल्पनिक ही लगती है। करीब एक साल पहले सानिया ने ऐलान किया कि उनकी जिन्दगी पर भी फिल्म बनने का काम शुरू हो चुका है और इसके लिए उनका करार रॉनी स्क्रूवाला के साथ भी हो चुका है। भारत में मिल्खा सिंह, मैरीकॉम और महेंद्र सिंह धोनी समेत कई खिलाड़ियों के जीवन पर फिल्में बन चुकी हैं और साइना नेहवाल समेत कपिल देव और कई तमाम खिलाड़ियों के जीवन पर फिल्में बन भी रही हैं। लेकिन, सानिया मिर्जा के करीब डेढ़ दशक के करियर को देखें तो कोर्ट के अंदर से ज्यादा उन्होंने कोर्ट के बाहर सुर्खियां बटोरीं और उनके जीवन में कई ऐसे मोड़ आए, जिन्हें कोई भी निर्देशक रुपहले पर्दे पर बहुत पहले ही शानदार तरीके से उतार सकता था।

2016 में रियो ओलम्पिक के दौरान सानिया और रोहन बोप्पना का मैच देखने के लिए स्टेडियम में हजारों की संख्या में भारतीय पहुंचे थे। उम्मीद थी कि यह जोड़ी भारत को एक पदक दिला सकती है। पूरे मैच के दौरान सानिया-सानिया का शोर ऐसे मच रहा था मानो वानखेड़े स्टेडियम में सचिन-सचिन का नारा गूंज रहा हो। सानिया मिर्जा भले ही क्रिकेटर नहीं हैं, लेकिन भारत में उनकी लोकप्रियता किसी क्रिकेटर से कम भी नहीं है। अगर सानिया को समझना हो तो उनकी आत्मकथा 'एस अगेन्स्ट ऑड्स' को जरूर पढ़ना चाहिए। कोर्ट के भीतर और बाहर अपने संघर्षों को सानिया ने जिस बेबाकी से बयां किया है, उसकी मिसाल भारतीय खेलों में बहुत कम है। 29 साल की उम्र में छह ग्रैंडस्लैम खिताब (तीन महिला युगल, तीन मिश्रित युगल) जीत चुकीं सानिया ने 16 साल की उम्र में ही विम्बलडन जूनियर युगल खिताब जीता था। इसके बाद से ही भारतीय मीडिया ने उन्हें आने वाले भविष्य के लिए टेनिस की सबसे बड़ी उम्मीद बताई थी।

सचिन तेंदुलकर की ही तरह सानिया कभी भी उम्मीदों के दबाव में झुकी नहीं बल्कि उन्होंने अपना खेल ही बेहतर किया। उन्हें पता था कि भारत में क्रिकेट के दबदबे के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए काफी कुछ करना पड़ेगा और उन्होंने बखूबी इसे किया भी। सानिया न सिर्फ अपने खेल बल्कि अपने व्यक्तित्व के चलते भी खास हैं। स्टार क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह सानिया के भी अपने जलवे थे जो बेहद आसानी से साक्षात्कार को तैयार नहीं होती थीं। कुछ साल पहले सानिया ने अपनी युगल जोड़ीदार मार्टिना हिंगिस के साथ लगातार 41 मैच जीते और युगल टेनिस की रैंकिंग में अव्वल पायदान तक भी पहुंचीं। सानिया की आत्मकथा में प्रस्तावना लिखने वाली मार्टिना हिंगिस ने सानिया को खतरनाक फोरहैंड वाली बेहतरीन खिलाड़ी बताया। भारत के एक और टेनिस स्टार और मिश्रित युगल में उनके जोड़ीदार रहे महेश भूपति ने भी उसी किताब में लिखा है कि भारतीय खेलों का चेहरा बदलने में सानिया का अहम योगदान है।

हां, ये भी सच है कि टेनिस के अलावा सानिया की निजी जिन्दगी भी हमेशा बहुत चर्चा में रही, चाहे वह उनके खिलाफ फतवा जारी होने के बारे में हो, उनके ऑपरेशन से जुड़ी बात हो, उनकी पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी की बात हो या शादी से पहले सेक्स को लेकर उनकी टिप्पणी का मामला हो। सानिया मिर्जा ने खुद माना कि पूरी दुनिया ने उन्हें सिर्फ एक टेनिस खिलाड़ी के तौर पर नहीं देखा। एक वक्त ऐसा भी रहा कि सानिया फैशन आइकॉन भी बनीं। सानिया की नथ (नोज रिंग) जल्द ही भारत में काफी लोकप्रिय हुई और बाजार में सानिया नोज रिंग के नाम से बिकने लगी।

युवा लड़कियों में इसका काफी क्रेज था, लेकिन इस शोहरत के सिक्के का एक दूसरा पहलू भी था। खुद सानिया ने एक किस्सा बयां किया, जब उनकी बचपन की एक दोस्त विम्बल़न में रोजर फेडरर या येलेना यांकोविच से बात करने के बावजूद उन्हें पहचान नहीं सकी, क्योंकि उसकी टेनिस में कोई रुचि नहीं थी। सानिया मिर्जा ने अपने करियर के दौरान कई विवादास्पद मुद्दों पर बड़े स्टैंड लिए। आप उनसे सहमत हों या असहमत, लेकिन एक खिलाड़ी होने के बावजूद साफ-साफ एक स्टैंड लेना भारत में बहादुरी से कम नहीं है। खासकर ओलम्पिक से ठीक पहले टेनिस के भीष्म-पितामह लिएंडर पेस के खिलाफ सानिया ने जिस तरीके से अपनी बातें रखीं, वो सिर्फ एक बोल्ड और कामयाब खिलाड़ी ही कर सकती थी। टेनिस के अलवा सानिया ने कई सामाजिक सुधार से जुड़े कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने उन्हें अखबारों में कॉलम लिखने को प्रेरित किया ताकि वो जन्म से पहले लिंग के पहचान करने वाली कुरीतियों के खिलाफ लोगों को जागरूक कर सकें। पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी के बाद सानिया को निजी तौर पर कई बार तानों का सामना करना पड़ा लेकिन वह कभी भी अपनी भारतीयता को लेकर डिफेंसिव नहीं हुईं।

सोशल मीडिया पर जब भी लोग भारत-पाक क्रिकेट मैचों के दौरान उन्हें खींचने की कोशिश करते तो वह अपने ही निराले अंदाज में उनका जवाब देतीं। पाकिस्तानी मीडिया भी उन्हें भारत की बेटी होने के चलते ठीक-ठाक परेशान करता, लेकिन उनका सब्र तब टूटता जब लगातार शोएब मलिक से उनके तलाक की अटकलें प्लांट कराई जाती थीं। सानिया की कामयाबी सिर्फ उनकी कामयाबी नहीं है। उनके पिता इमरान मिर्जा और मां नसीमा ने भी अपने बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। 1993 में जुलाई के पहले हफ्ते में टीवी पर स्टेफी ग्राफ को विम्बलडन का खिताब जीतते देख इमरान मिर्जा ने अपनी छह साल की बेटी की पीठ थपथपाते हुए कहा था कि कितना मजा आएगा अगर सानिया भी पेशेवर टेनिस खिलाड़ी बने और विम्बलडन भी खेले। 1990 के दशक में किसी पिता का ऐसा सोचना भी एक बड़ी बात थी, लेकिन अमेरिका से लौटकर हैदराबाद में बसने वाली सानिया की मां नसीमा ने ठाना कि अगर बेटी को टेनिस खिलाड़ी बनाना है तो वह कुछ भी करेंगी।

2005 में जब प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने सानिया को एशिया की एक हीरो में से एक बताया तभी ये साफ हो गया था कि इस लड़की ने अकेले अपने बूते महिला टेनिस की पूरी तस्वीर बदल डाली। अब 15 साल बाद मां बनने के बाद टेनिस कोर्ट पर शानदार वापसी करने वाली सानिया भारत की उन तमाम माताओं के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं  जिन्हें अक्सर यह कह दिया जाता है करियर की छोड़ो, घर पर ध्यान दो। सानिया ने खुद माना है कि उन्हें प्रेरणा किम क्लाइस्ट्जर्स और सेरेना विलियम्स जैसे खिलाड़ियों से मिली कि कैसे मां बनने के बावजूद शानदार वापसी की जा सकती है। राजीव गांधी खेल रत्न, पद्म भूषण और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित सानिया का मां बनने के बाद 26 किलो वजन बढ़ गया था, लेकिन खिलाड़ी के तौर पर फिर से मैदान में उतरने के लिए सानिया ने इस अतिरिक्त वजन को भी जल्द खत्म किया। सोशल मीडिया पर वह लगातार इस बात की अपडेट देती रहीं कि किस तरह से वह अपनी फिटनेस पर जोरदार तरीके से काम कर रही हैं।

सानिया अगर इस साल वापसी नहीं भी करतीं और रिटायर हो जातीं तो भारतीय खेलों के इतिहास में उनकी विरासत पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन वापसी कर नाकाम होने से एक स्वर्णिम यात्रा पर थोड़ी धूल पड़ सकती थी। यह एक जोखिम भरा फैसला हो सकता था, लेकिन पूरे करियर में जोखिम की परवाह सानिया ने कब की थी जो अब करतीं। 2007 में 20 साल की उम्र में सानिया मिर्जा पहली भारतीय महिला बनीं जो टेनिस रैंकिग के सिंगल्स में टॉप 30 में थी। पिछले 13 सालों में अब भी कोई उनके करीब नहीं पहुंचा है। पिछले एक दशक से भारतीय मीडिया यह सवाल ढूंढ़ रहा है कि सानिया के बाद कौन जिसका जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है। शायद, मां बनने के बाद ऑस्ट्रेलिया में जीती गई यह ट्रॉफी उन गुमनाम युवा खिलाड़ियों को भी प्रेरित करने के काम आए जो अगली सानिया बन पाए। मां बनने के बाद भी सानिया के आक्रामक तेवर नहीं बदले हैं। हाल ही में जब किसी ने एयरपोर्ट में उनसे यह पूछा कि उनका बच्चा कहां है तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया कि जब शोएब वेस्टइंडीज में खेल रहे होते हैं तो उनसे ये सवाल क्यों नहीं पूछा जाता है? साल 2020  का आगाज सानिया ने शानदार तरीके से किया है, लेकिन वह शायद यहीं रुकने वाली नहीं हैं। उनका सपना ओलम्पिक में पदक जीतने का है। उम्मीद है कि 2021 में वह न केवल ओलम्पिक खेलेंगी बल्कि रुपहले पर्दे पर उनकी फिल्म भी आ जाएगी।

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