शारीरिक शिक्षा की नायाब पहरुआ डा. प्रीति पांडेय

अब तक लिख चुकी हैं पांच पुस्तकें, मिल चुके हैं पांच अवार्ड

नूतन शुक्ला

कानपुर। खेलना, शारीरिक शिक्षा की तालीम हासिल कर नई पीढ़ी का खेल शिक्षा के माध्यम से ही भला करना जिसका जुनून बन चुका है, ऐसी नायाब शख्सियत हैं एसएन सेन बीवीपीजी कालेज कानपुर की एसोसिएट प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष फिजिकल एज्यूकेशन एण्ड स्पोर्ट्स डा. प्रीति पांडेय। डा. प्रीति पांडेय खेलों के क्षेत्र में भारतीय प्रतिभाओं के प्रदर्शन में सुधार को लेकर अब तक पांच पुस्तकें लिख चुकी हैं। खेलों के क्षेत्र में अप्रतिम कार्यों के लिए इन्हें अब तक पांच अवार्डों से नवाजा जा चुका है।

लगभग 16 साल से शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर रहीं डा. प्रीति पांडेय अपने समय की खो-खो की शानदार खिलाड़ी रही हैं। इस खेल में इन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर सब-जूनियर, जूनियर, सीनियर प्रतियोगिताओं में शिरकत करने के साथ इंटर यूनिवर्सिटी में भी अपने शानदार खेल-कौशल की झलक दिखाई है। डा. प्रीति पांडेय ने खो-खो खेल में विशेषज्ञता भी हासिल की है। इनकी साहसिक खेलों में भी बहुत दिलचस्पी है। डा. प्रीति पांडेय के प्रोत्साहन से एसएन सेन बीवीपीजी कालेज कानपुर की बेटियां हर खेल में न केवल बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं बल्कि लगातार सफलता का परचम भी फहरा रही हैं। इस कालेज की बेटियां इंटर यूनिवर्सिटी खेलों की फुटबाल प्रतियोगिता में सात बार और हैण्डबाल में आठ बार चैम्पियन रह चुकी हैं।

डा. प्रीति पांडेय की अभिरुचि खेलों के साथ-साथ साहसिक खेलों में भी है। यह लगातार देश-दुनिया की खतरनाक जगहों में युवा पीढ़ी को ले जाती रहती हैं। इनका खेलों से अगाध लगाव और खेल क्षेत्र को कुछ देने का जज्बा सबसे जुदा है। डा. प्रीति पांडेय कहती हैं कि इंसान के जीवन में खेल और फिटनेस का विशेष महत्व है। खेलने से न सिर्फ फिटनेस बनी रहती है बल्कि इससे टीमभावना भी आती है। खेलों से किसी काम की रणनीति बनाने और उस पर चलने की क्षमता का विकास होता है। खेल हमें शारीरिक रूप से मजबूत बनाने के साथ ही किसी कार्य में रिस्क लेने का माद्दा भी पैदा करते हैं। डा. प्रीति पांडेय कहती हैं कि जब तक हर व्यक्ति स्वस्थ नहीं होगा हम स्वस्थ भारत के सपने को साकार नहीं कर सकते।

डा. प्रीति पांडेय कहती हैं कि भारत की युवा पीढ़ी को अपने राष्ट्र की सांस्कृतिक परपम्पराओं का निर्वहन करने के साथ ही किसी न किसी खेल में जरूर हिस्सा लेना चाहिए। इनका कहना है कि सर्वमान्य संस्कृति खेलों के माध्यम से विश्व बंधुत्व की भावनाओं को बल देने के साथ संबंधों को सुधारने का कार्य भी करती है। खेल रंग, रूप, देश, धर्म, भाषाओं के भेदभाव को मिटाकर देशप्रेम की अलख जगाते हैं। खेलों के समुन्नत विकास के लिए प्राणपण से जुटीं डा. प्रीति पांडेय कहती हैं कि हमारे समाज में खेलों को लेकर एक चेतना आई है। लोग खेलों के महत्व को स्वीकारने लगे हैं लेकिन इस दिशा में अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। खेलों का विकास समाज के सहयोग बिना कतई नहीं हो सकता।

 

 

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