बेटियां बन रहीं दिल की धड़कन

श्रीप्रकाश शुक्ला
बेटियां शुभकामनाएं हैं, बेटियां पावन दुआए हैं। सच कहें तो आज के समय में अजहर हाशमी की इस प्रसिद्ध कविता को भारतीय बेटियां जी रही हैं, सार्थक कर रही हैं। किसी भी क्षेत्र को ले लीजिए आज भारतीय बेटियां हर क्षेत्र में मादरेवतन का मान बढ़ा रही हैं। केन्द्र शासित भारतीय जनता पार्टी सरकार ने महिलाओं के उत्थान की दिशा में जो कार्य किए हैं, उन्हें नजीर के रूप में देखना मुनासिब होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में तीन तलाक के मुद्दे ने जहां मुस्लिम बहनों के मुरझाए चेहरों को रोशन किया है वहीं अन्य क्षेत्रों में भी महिलाओं को स्वच्छंद उड़ान भरने के मौके मिले हैं।
प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूजनीय एवं देवीतुल्य माना गया है। हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियां वहीं पर निवास करती हैं जहां पर समस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इन प्राचीन ग्रंथों का उक्त कथन आज भी उतनी ही महत्ता रखता है जितनी कि इसकी महत्ता प्राचीनकाल में थी। कोई भी परिवार, समाज अथवा राष्ट्र तब तक सच्चे अर्थों में प्रगति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता जब तक वह नारी के प्रति भेदभाव, निरादर अथवा हीनभाव का त्याग नहीं करता।
आज परिवर्तन का युग है। भारतीय नारी की दशा और दिशा में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखा जा सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अनेक समाज सुधारकों, समाजसेवियों तथा हमारी सरकारों ने नारी उत्थान की ओर विशेष ध्यान दिया है। आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। खेल, विज्ञान व तकनीकी सहित लगभग सभी क्षेत्रों में उसने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। उसने समाज व राष्ट्र को यह सिद्ध कर दिखाया है कि शक्ति अथवा क्षमता की दृष्टि से वह पुरुषों से किसी भी भाँति कम नहीं है। निस्संदेह नारी की वर्तमान दशा में निरंतर सुधार राष्ट्र की प्रगति का मापदंड है। वह दिन दूर नहीं जब नर-नारी यानि सभी के सम्मिलित प्रयास फलीभूत होंगे और हमारा देश विश्व के अग्रणी देशों में शुमार होगा।
एक समय था जब लिंगानुपात के मामले में हरियाणा राज्य पर उंगली उठती रही है लेकिन अब वहां भी स्थिति बदली है। इसकी मुख्य वजह हरियाणा की बेटियों का हर क्षेत्र में कामयाब प्रदर्शन है। बीते साल हरियाणा सरकार ने जब भीम अवॉर्डों की घोषणा की थी तब उनमें 41 में से 18 बेटियां थीं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नारी शक्ति को सम्मानित किया था तब उनमें से भिवानी की ही चार महिलाएं शामिल थीं। पिछले वर्ष केन्द्र सरकार के महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय ने फेसबुक के जरिये देश की सौ महिलाओं का चयन किया था, जिनमें सात हरियाणा की थीं।
देखा जाए तो आज हर क्षेत्र में बेटियां कामयाबी की इबारत लिख रही हैं। लेकिन हमें इससे ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। यह ठीक है कि उनकी ये उपलब्धियां हमें गौरन्वावित करने वाली हैं लेकिन यह भी सच है कि महिलाओं के उत्पीड़न की दिशा में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आज यदि इतनी विषम परिस्थितियों में बेटियां कामयाबी की इबारत लिख रही हैं तो इसके पीछे कुछ हद तक उन परिवारों की संवेदनशीलता है जोकि उनकी इच्छा के अनुरूप, उनकी प्रतिभा के अनुरूप उन्हें शिक्षण-प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करते हैं। सिर्फ सरकार के प्रयासों से ही महिलाओं का उत्थान सम्भव नहीं है। बेटियां ऊंची उड़ान भरें इसके लिए जरूरी है कि उन्हें घर-परिवार के साथ समाज का भी प्रोत्साहन मिले।
जब कोई भी बेटी प्रदेश और देश को गौरव बढ़ाती है, तब हम सीना चौड़ा कर कहते हैं कि अरे वह तो हमारे गांव की बेटी है। लेकिन जब कोई बेटी अपने सपनों को पूरा करने के लिए स्टेडियम जा रही होती है, विश्वविद्यालय जा रही होती है या खुद को निखारने के लिए कोई अन्य प्रयास कर रही होती है तो हम उसका उपहास उड़ाते हैं। यदि हर भारतीय इस मानसिकता से स्वयं को मुक्त कर ले तो हमारी कामयाब बेटियों की संख्या जो आज है भविष्य में उससे कई गुना अधिक हो सकती है।
भारत सरकार के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान ने कहीं न कहीं लोगों के दिलों को जरूर छुआ है। केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण, जिसे कारा भी कहते हैं, के अनुसार 2017-18 में गोद लिए गए बच्चों में 60 प्रतिशत लड़कियां हैं यानि कि कुल 3276 बच्चों में से 1858 लड़कियां गोद ली गई हैं। सबसे ज्यादा बच्चे महाराष्ट्र में गोद लिए गए। महाराष्ट्र में 60 एडॉप्शन एजेंसियां हैं, जबकि अन्य प्रदेशों में इनकी औसत 20 है। सबसे सुखद आंकड़े हरियाणा के हैं जबकि हरियाणा में लिंगानुपात सबसे कम है। यहां भी लड़कियां ज्यादा गोद ली गई हैं। दूसरा प्रदेश जहां पर लिंगानुपात सबसे कम है, उत्तर प्रदेश है परंतु वहां भी लड़कियां ज्यादा गोद ली गई हैं। गोद लेने वालों में दूसरा नम्बर कर्नाटक और फिर पश्चिम बंगाल का आता है।
कारा के सीईओ दीपक कुमार के अनुसार जब गोद लेने का फार्म भरा जाता है तब उनके सामने तीन विकल्प रखे जाते हैं। पहला लड़का, दूसरा लड़की, तीसरा कोई भी परंतु लोगों ने लड़कियों को ज्यादा चुना है। दरअसल लोगों को यह प्रतीत होने लगा है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को पालना और अनुशासित करना ज्यादा आसान है। वर्ष 2017-18 में देश में गोद लेने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। अगर लड़के और लड़कियों के गोद लेने के अनुपात को देखा जाए तो यह 55 और 45 का है। यह प्रचलन 2012 से लगातार देखा जा रहा है। हरियाणा में 19 लड़कों की तुलना में 31 लड़कियां गोद ली गईं और उत्तर प्रदेश में यह अनुपात 86 और 40 का है।
आंकड़े बताते हैं कि अब लोग लड़कियों से ज्यादा भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि लड़कियां मां-बाप की ज्यादा परवाह करती हैं। अगर पिछले पांच वर्षों के कुल आंकड़ों को देखा जाए तो 59.77 प्रतिशत लड़कियों को गोद लिया गया है जबकि लड़के 40.23 प्रतिशत गोद लिए गए हैं। सबसे सुखद यह है कि यह आंकड़ा ऐसे समय में आया है जब नीति आयोग ने कहा है कि 21 बड़े राज्यों में लिंगानुपात में 2017 में भारी गिरावट आई है। अतः यह कहा जा सकता है कि लोगों में लड़कों की प्राथमिकता कम हो गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आसमां में उड़ान भरती इन बेटियों से वे लोग निश्चित रूप से अपनी मानसिकता बदलने को विवश होंगे, जो बेटियों को कमतर मानते हैं, बोझ मानते हैं, वे भी बेटियों को उनकी रुचि और सोच के अनुरूप करियर चुनने की आजादी देंगे। बेटियां नीले गगन में उड़ान भरें इसके लिए सरकार पर तोहमत लगाने की बजाय हमारे समाज को उदारता दिखानी चाहिए। हम बदलेंगे तभी समाज बदलेगा।

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