नागपुर में ध्यान-योग की अलख जगातीं ऊषा त्रिपाठी

हंसमुख स्वभाव और सकारात्मक सोच के चलते सबकी प्रिय

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। एक शिक्षक का कर्तव्य सिर्फ छात्र-छात्राओं को शिक्षित करना ही नहीं बल्कि जीवन पर्यन्त समाज को नई दिशा दिखाना भी होता है। यह दुरूह कार्य वही कर सकता है जिसमें आत्मसंयम के साथ सकारात्मक सोच हो। चार दशक तक नई पीढ़ी में शिक्षा की अलख जगाने के बाद आज नागपुर (महाराष्ट्र) में लोगों को ध्यान-योग से निरोगी रखने का नेक कार्य यदि कोई कर रहा है तो वह हैं ऊषा त्रिपाठी। हंसमुख स्वभाव और सकारात्मक सोच की धनी ऊषा त्रिपाठी को अच्छे संस्कार किसी पाठशाला में सीखने को नहीं मिले बल्कि इन्होंने अपने माता-पिता और परिवार से ही सबकुछ सीखा है।

18 दिसम्बर, 1954 को एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मी ऊषा शर्मा को गीत, संगीत, नृत्य, नाटक, खेलकूद तथा सेवाभाव के गुण विरासत में मिले हैं। इन्हें उच्च तालीम हासिल करने के बाद प्राथमिक विद्यालय में शासकीय सेवा का अवसर मिला। एक शिक्षक के तौर पर इन्होंने अपने 40 साल छात्र-छात्राओं को बेहतर तालीम देने में खर्च किए। प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी इनके मन में समाज को कुछ देने का भाव जिन्दा रहा। कहते हैं कि पढ़ने और सीखने की कोई उम्र नहीं होती सो इन्होंने समाज को निरोगी रखने के उद्देश्य को लेकर सी.सी.वाय.जी.एस. कालेज आफ योग, कैवल्यधाम लोणावला से योग प्रशिक्षण की तालीम हासिल की। इन्होंने एनसीसी और स्काउट-गाइड से समाजसेवा का पाठ सीखा है।

ऊषा त्रिपाठी बताती हैं कि 66 साल की उम्र के बाद भी मेरी प्रसन्नता का राज मेरे माता-पिता ही हैं। मेरे पिता पंडित तुलसीराम शर्मा और मातुश्री लक्ष्मीदेवी शर्मा काफी खुशमिजाज, धार्मिक-आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। मेरी मां स्कूल कभी नहीं गईं लेकिन मैंने रामायण और गीता का पाठ उन्हीं से सीखा है। ऊषा त्रिपाठी आज अपनी ही संस्था के बैनर तले नागपुर के लोगों को ध्यान-योग का पाठ पढ़ा रही हैं। वह कहती हैं कि ध्यान अग्नि की तरह है जिसमें सभी बुराइयां जलकर भस्म हो जाती हैं। ध्यान धर्म और योग की आत्मा है। ध्यान अजर अमर है। ध्यान और योग को आत्मसात न करने वाले लोगों को   बुढ़ापे में वह सारे भय सताते हैं, जो मृत्यु के भय से उपजते हैं। श्रीमती त्रिपाठी कहती हैं कि ध्यान से ही मनुष्य अपने मूल स्वरूप या कहें कि स्वयं को प्राप्त कर सकता है अर्थात हम कह सकते हैं कि स्वयं का मूल्यांकन सिर्फ ध्यान से ही किया जा सकता है।

ऊषा त्रिपाठी कहती हैं कि आज दुनिया को ध्यान-योग की जरूरत है। चाहे वह किसी भी देश या धर्म का व्यक्ति हो। ध्यान-योग से ही व्यक्ति की मानसिक अवस्था में बदलाव हो सकता है। ध्यान से ही हिंसा और मूढ़ता का खात्मा हो सकता है। ध्यान के अभ्यास से जागरूकता बढ़ती है। जागरूकता से हमें हमारी और अन्य लोगों की बुद्धिहीनता का पता चलता है। श्रीमती त्रिपाठी बताती हैं कि ध्यानी व्यक्ति चुप इसलिए रहता है क्योंकि वह लोगों के भीतर झांककर देख लेता है। सच तो यह है कि ध्यानी व्यक्ति यंत्रवत जीना छोड़ देता है और उसमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पैदा हो जाती है।

ऊषा त्रिपाठी बताती हैं कि ध्यान बहुत ही शांति प्रदान करता है। हम यदि ध्यानस्थ होंगे, तो ज्यादा बात करने और जोर से बोलने का मन ही नहीं करेगा। दरअसल, भटके हुए मन के लोग ही जिन्दगी भर व्यर्थ का प्रलाप करते रहते हैं। श्रीमती त्रिपाठी कहती हैं कि समस्याओं का समाधान बहस में नहीं बल्कि ध्यान में है, इसलिए लोगों को ध्यान की शिक्षा दी जानी चाहिए। वह बताती हैं कि ध्यान तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है और उसे बल प्रदान करता है।

ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ने के साथ मानसिक शांति की अनुभूति होती है। वह बताती हैं कि ध्यान का अभ्यास करते समय शुरू में पांच मिनट ही काफी होते हैं। अभ्यास से हम 20-25 मिनट तक ध्यान लगा सकते हैं। श्रीमती त्रिपाठी बताती हैं कि योग और ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती है। आत्मिक शक्ति से मानसिक शांति की अनुभूति होती है। मानसिक शांति से शरीर स्वस्थ अनुभव करता है। ध्यान द्वारा हमारी ऊर्जा केन्द्रित होती है। ऊर्जा केंद्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल मिलता है। ध्यान से विजन पॉवर बढ़ता है तथा व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। ध्यान से सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं। ध्यान से हमारा तन, मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांति, स्वस्थ और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। ऊषा त्रिपाठी बताती हैं कि मैं सबके प्रति सकारात्मक सोच रखती हूं। मैं अपनी संस्था के माध्यम से लोगों को सुबह-शाम ध्यान, योग, प्राणायाम के माध्यम से निरोगी और खुश रहना सिखाती हूं तथा उन्हें ईश्वर के प्रति विश्वास रखने का संदेश भी देती हूं। मेरे प्रयासों से जब लोग लाभान्वित होते हैं, खुश होते हैं तब मुझे भी अपार प्रसन्नता का अनुभव होता है। समाज के लिए अच्छे कार्य करने वाले लोग ही मेरे प्रेरणास्रोत हैं।  

 

 

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