अनाथालय से निकला डिंको जैसा महारथी

कैंसर से जूझ रहा है जांबाज
खेलपथ प्रतिनिधि
इंफाल।
एक तरफ दुनिया कोरोना संक्रमण की महामारी से जूझ रही है तो दूसरी तरफ भारत का जांबाज मुक्केबाज डिंको सिंह कैंसर से जूझ रहा है। मणिपुर के इस मुक्केबाज की मदद के लिए भारतीय मुक्केबाजी संघ, कई मुक्केबाज तो कई खेलप्रेमी आर्थिक मदद को आगे आए हैं। पाठकों को हम आज बताना चाहेंगे कि यह मुक्केबाज भारत का गौरव है ऐसे में इसकी मदद के लिए केन्द्र सरकार को आगे आना चाहिए।
मणिपुर की बात करें तो इस राज्य ने देश को मैरीकॉम (मुक्केबाजी), कुंजारानी देवी (वेटलिफ्टिंग), डिंको सिंह (मुक्केबाजी), रैंडी सिंह (फुटबॉल) सरीखे विभिन्न खेलों के चोटी के खिलाड़ी दिए हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही खिलाड़ी के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हे हिन्दुस्तान का बेस्ट मुक्केबाज मना जाता रहा है। भारत के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में से एक नगांगो डिंको सिंह का जन्म 01 जनवरी, 1979 में हुआ था। डिंको सिंह भारत के जाने-माने मुक्केबाज हैं जिन्होंने वर्ष 1997 में बैंकाक में किंग्ज कप जीता था। यह खिताब डिंको और देश के लिए इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि उनका भरण-पोषण अनाथालय में हुआ और सरकार के विशेष खेल क्षेत्र स्कीम के तहत उन्हें सहायता मिली थी। डिंको अनाथालय में पलने के कारण ठान लिया था कि वह कुछ बड़ा करेंगे और उन्होंने मुक्केबाजी के क्षेत्र में प्रशंसनीय योगदान दिया। डिंको सिंह ने सफलता पाने के लिए जी-जान लगा दी ताकि भारत के चैम्पियन मुक्केबाज़ बन सकें। 

‘विशेष खेल क्षेत्र’ स्कीम के अन्तर्गत डिंको सिंह को भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा सहायता मिली और जब वह चर्चा में आए तो मात्र 11 वर्ष के थे। उन्होंने इतनी छोटी उम्र में 1989 में अंबाला में राष्ट्रीय बॉक्सिंग का सब-जूनियर खिताब जीत लिया। डिंको सिंह ने अपनी पहली बड़ी अन्तरराष्ट्रीय सफलता तब हासिल की, जब उन्होंने 1997 में बैंकाक (थाईलैंड) में ‘किंग्ज कप’ जीत लिया। उस समय उन्हें सर्वश्रेष्ठ बॉक्सर घोषित किया गया था। इसके एक वर्ष पश्चात डिंको सिंह ने अपनी दूसरी सफलता भी बैंकाक में ही प्राप्त की। बैंकाक उनके लिए भाग्यशाली साबित हुआ। उन्होंने 54 किलो वर्ग में विश्व के नम्बर दो खिलाड़ी टिमूर तोल्याकोव (उज्बेकिस्तान के खिलाड़ी) को हरा कर बॉक्सिंग का 1998 का एशियाड स्वर्ण पदक जीत लिया। उनके लिए यह सफलता और भी अधिक महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि उन्होंने कुछ ही माह पूर्व भार वर्ग 51 किलो से बदल कर 54 किलो वर्ग में कर लिया था। यहां सेमीफाइनल में उनका मुकाबला विश्व के नंबर दो खिलाड़ी थाईलैंड के वांगप्रेट्‌स सोन्टाया से हुआ था, जिसमें दर्शक अपने देश के खिलाड़ी को हारता देखकर भड़क उठे थे।
साल 1998 के एशियन गेम्स में बॉक्सिंग में गोल्ड जीतने वाले डिंको इस समय कैंसर से लड़ रहे हैं। ज़िन्दगी और मौत की इस लड़ाई में डिंको को माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से अपने इलाज के लिए घर और जमीन दोनों बेचनी पड़ी थी। डिंको सिंह की बीमारी की खबर मिलने के बाद देर में ही सही लेकिन सरकार उनकी मदद को आगे आई और उन्हें इलाज का भरोसा दिया। डिंको सिंह अपने कैंसर का इलाज दिल्ली में करवा रहे हैं।

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