मां बनने के बाद भी दिखाया दम

खेलों में नारी शक्ति का जलवा कायम

श्रीप्रकाश शुक्ला

दुनिया का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है  जहां महिलाओं ने अपनी सफलता का लोहा न मनवाया हो। महिला खिलाड़ियों के लिए शादी और बच्चों के बाद खेल में वापसी करना कठिन होता है लेकिन उससे भी मुश्किल होता है अपने ‘स्वर्णिम’ प्रदर्शन को दोहराना। खेलप्रेमियों को इस बात का इल्म होना चाहिए कि भारत सहित दुनिया की कई खिलाड़ी बेटियों ने मां बनने के बाद भी खेलजगत में तहलका मचाया है। मैरीकाम, सानिया मिर्जा सहित कई भारतीय महिला खिलाड़ी आज भी भारत का मान और सम्मान हैं।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ जिस देश के प्राचीन ग्रंथों में नारी को पूजनीय स्थान दिया गया हो, उसे देवी के समान माना गया हो, वहां महिला अगर किसी भी क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त करती है; सबसे अलग, ध्वजवाहक बनकर कुछ विशिष्ट कर दिखाती है, तो यह अवश्य ही गौरव एवं हर्ष का विषय है। एक ऐसे देश में जहां समान अधिकार होते हुए भी अधिकांश महिलाएं सहमी-सी हैं और वंचित की श्रेणी में आती हैं- और अगर कुछ स्त्रियां जीवट और शिक्षा के बूते उक्त श्रेणी से बाहर भी निकल सकी हैं, तो भी उनकी आवाज़ संगदिल मर्दों की दुनिया में अक्सर कहीं बहुत पीछे रह जाती है- नक्कारखाने में तूती-सी’। अपने-अपने घरों और आसपास नजर दौड़ाएं तो ऐसी बहुत-सी मिसाल सामने आ जाएंगी।

खेलों में महिलाएं यदि अपनी विशेष पहचान बनाती हैं तो उन्हें शाबासी मिलनी चाहिए क्योंकि यह क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से कुछ अलग है। महिला खिलाड़ी पति, बच्चों और पूरे परिवार का दायित्व निभाते हुए मन में उठने वाले वलवलों को साकार करने के लिए आकाश में बादलों-सी झूमती, फूलों-सी मुस्कुराती और पक्षियों-सी चहकती दिखे, तो समझो ‘सफलता की नयी उड़ान’ से उसे अब कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि कुनबे की कमान संभालकर संतोष से बैठ जाना तो उसने सीखा ही नहीं है। आगे बढ़ते रहना ही उसे जीवन जीने का असली ढंग लगता है। फिर पति तथा बच्चों का प्रेम भी शादी के बाद प्रोत्साहन के रूप में मिलता है- ऐसे में थकान और ढलान का तो सवाल ही पैदा नहीं होता, क्योंकि संकल्प हो तो आगे बढ़ने के विकल्प मिल ही जाते हैं। देश-दुनिया में ऐसी अनेक महिलाएं हैं जिन्होंने मातृत्व की जिम्मेदारियों को निभाते, घर और खेल के मध्य की कश्मकश से महफूज़ निकल कर कुछ समय के ब्रेक के बाद फिर अपने खेल को न केवल आगे बढ़ाया, अपितु उसे नये मुकाम पर पहुंचा दिया।

मुझे एमसी मैरीकाम ने काफी प्रभावित किया है। मैरीकाम जहां भारतीय महिला मुक्केबाजों की पहचान हैं वहीं कई प्रतिभाशाली बेटियों का आदर्श भी। विश्व कप मुक्केबाजी इतिहास में वह एकमात्र महिला हैं, जो छह बार खिताब जीत चुकी हैं। मणिपुर की इस 37 साल की सुपर माम को अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी ने टोक्यो ओलम्पिक के लिए सम्मान स्वरूप महिला मुक्केबाज अम्बेसडर नामांकित किया है। राष्ट्रपति पहले ही उन्हें 2016 में राज्यसभा में सदस्य नामांकित कर चुके हैं। इसी साल उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान पद‍्म विभूषण से नवाज़ा गया है।

2012 ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतकर वह मुक्केबाजी में पदक जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला मुक्केबाज बनीं। इसके अतिरिक्त 2014 में एशियन खेलों में और 2018 में राष्ट्रमंडल खेलों में वह स्वर्ण पदक जीतकर देश को गौरवान्वित कर चुकी हैं। ‘हार नहीं मानूंगी’ और ‘आगे बढ़ना ही जिंदगी है’ को चरितार्थ करते हुए वह आज भी अपने से आधी उम्र की युवतियों को मात देने को तत्पर रहती हैं। पदकों और उपलब्धियों के हिसाब से देश का एक भी मुक्केबाज उनके समकक्ष तो क्या, आसपास भी नहीं है। खूबसूरती यह कि अधिकांश पदक मैरीकाम ने तीन बच्चों को जन्म देने के बाद जीते हैं। थकान या ‘बहुत हो गया’ जैसे भाव तो उनसे कोसों दूर हैं। उन्हें भारतीय मुक्केबाजी के आकाश का ‘पूर्णेन्दु’ और ‘मार्तंड’ कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

समुद्र और लहर को जैसे अलग नहीं किया जा सकता उसी प्रकार सरिता देवी को भारतीय महिला मुक्केबाजी से अलग कर नहीं देखा जा सकता। मणिपुर की इस महिला ने जीवन पर्यंत संघर्षशीलता का परिचय देते हुए अलग-अलग चार वर्गों में देश को विश्व स्तर पर सम्मान दिलाया है। विश्व चैम्पियन मुक्केबाज मोहम्मद अली से प्रभावित सरिता देवी लैशराम 2003 से लेकर पांच स्वर्ण पदक एशियन चैम्पियनशिप में जीत चुकी हैं। एशियन खेलों में वह एक कांस्य और राष्ट्रमंडल खेल में रजत जीतकर देश को बुलंदियों तक पहुंचा चुकी हैं। इससे भी आगे विश्व चैंपियनशिप में भी वह एक स्वर्ण और दो कांस्य जीत चुकी हैं।

2014 के एशियन खेलों के सेमीफाइनल में जब वह दक्षिण कोरिया की खिलाड़ी पार्क से हार गयीं और कांस्य पदक अस्वीकार कर दिया, तो विवादों में घिर गयीं। इस व्यवहार के लिए उन पर एक साल का प्रतिबंध भी लगा। हालांकि बाद में उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने पदक स्वीकार कर लिया। इससे उबर कर सरिता फिर से पदक जीतकर आगे बढ़ीं। उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें मणिपुर सरकार ने डीएसपी पद पर सुशोभित किया है।

टेबल टेनिस की लम्बी-ऊंची खिलाड़ी मणिका बत्रा भी एक ऐसा ही नाम है, जिन्होंने विश्व स्तर पर भारतीय महिला टेबल टेनिस को पहचान दी है। दिल्ली की यह 25 वर्षीय खिलाड़ी लाइम लाइट में तब आई जब 2018 के गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेल में उन्होंने देश को चार पदक दिला दिए। इनमें एकल स्वर्ण, महिला टीम स्वर्ण, महिला युगल रजत और मिश्रित युगल कांस्य पदक शामिल थे। हालांकि इससे पूर्व 2016 के दक्षिण एशियाई खेल में चार स्वर्ण जीतकर वह अपनी पहचान बना चुकी थीं। 2018 के एशियाई खेल में भी वह अत्यधिक कड़ी स्पर्धा के बीच मिश्रित युगल में देश के नाम कांस्य पदक कर चुकी हैं। वर्तमान में वह भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी हैं और भविष्य में उनसे और पदकों की आशा की जा सकती है।

विश्व स्तर पर भी कई महिलाओं ने खेल जगत में धूम मचा रखी है। ऐसा ही एक नाम जमैका की फर्राटा चैम्पियन शैली एनफ्रेज़र का है, जिन्होंने फर्राटा के इतिहास में सर्वाधिक खिताब (महिला) जीते हैं। मात्र पांच फिट कद की होने के कारण ‘पाकेट राकेट’ या ‘छुटकी’ के नाम से ख्यात शैली वास्तव में किसी अजूबे से कम नहीं हैं। 2019 विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता में उन्होंने बच्चे को जन्म देने के बाद 32 वर्ष की उम्र में 100 मीटर दौड़ जीतने का कारनामा कर दिखाया। वह अब तक सौ मीटर रेस में दो ओलम्पिक गोल्ड, चार विश्व चैम्पियनशिप गोल्ड जीतकर पूरी दुनिया को चकाचौंध कर चुकी हैं। विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में वह अब तक सौ, दो सौ और 4×100 रिले रेसों में कुल 17 स्वर्ण पदक, 6 रजत और दो कांस्य पदक जीतकर जमैका की ओर से सर्वाधिक पदक जीतने वाली खिलाड़ी बन चुकी हैं और उनका यह सफर अभी जारी है। महान ओलंपिक धावक माइकल जानसन ने उन्हें सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ महिला फर्राटा चैम्पियन का दर्जा दिया है।

उज्बेकिस्तान की जिम्नास्ट ओकसाना चुसोवितना (44) जैसी साहसी मां की बराबरी भला कौन कर सकता है। वह 1992 से लेकर लगातार सात ओलम्पिक में भागीदारी कर चुकी हैं। वह ऐसे खेल में उम्र को मात दे रही हैं, जहां लचीलापन सर्वाधिक आवश्यक है और जहां उनकी प्रतियोगिता अधिकांशतया टीनएजर्स से होती है। मां बनने के बाद वह 2008 ओलम्पिक में एकल वाल्ट में रजत जीत चुकी हैं, जबकि उन्होंने अपना पहला टीम स्वर्ण तत्कालीन सोवियत संघ की टीम की ओर से खेलते हुए 1992 में जीता था।

ऐसी ही कहानियां अमेरिकी तैराक डोना टौरेस, अमेरिकी एथलीट एलिसन फेलिक्स और आइस हाकी की दिग्गज खिलाड़ी जैनी पौटर की है,  जो माताएं बनकर धन्य तो हुईं, परंतु साथ ही उन्होंने अपनी उत्कृष्ट आकांक्षाओं पर पूर्ण विराम नहीं लगने दिया तथा अपने-अपने देश और खेल संसार की महानायिकाएं बनी रहीं। अद्भुत जीवट की धनी ऐसी समस्त माताओं को सलाम!

सानिया मिर्जा भी ऐसा ही नाम हैं, जो टेनिस में मातृशक्ति का झंडा उठाये हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके नाम से ही भारतीय महिला टेनिस की पहचान है। 2003 में प्रोफेशनल बनने के बाद से वह अपने खेल कौशल से धूम मचा चुकी हैं और आज तक भारत की नंबर एक खिलाड़ी के रूप में जानी जाती हैं। अब तक 50 करोड़ रुपये से अधिक की राशि ईनाम के तौर पर जीत चुकीं सानिया अब तक महिला युगल में तीन और मिश्रित युगल में भी तीन ग्रैंड स्लैम खिताब जीत चुकी हैं। इसके अतिरिक्त वह एशियन खेल, राष्ट्रमंडल खेल और एफ्रो-एशियन खेल में छह स्वर्ण पदक भारत की झोली में डाल चुकी हैं। सानिया की अपार क्षमताओं का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह अब तक एक डब्ल्यूटीए टाइटल और 14 आईटीएफ खिताब (एकल) भी जीत चुकी हैं, हालांकि वह 2013 में एकल टेनिस को अलविदा कह चुकी हैं। इन्हीं उपलब्धियों के कारण उन्हें अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न पुरस्कार और पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। दो साल के मातृत्व अवकाश से लौटकर इसी साल जनवरी में वह होबार्ट इंटरनेशनल टूर्नामेंट का महिला युगल खिताब नादिया के साथ जोड़ी बनाकर जीती हैं। इससे उनकी भावी योजनाओं का पता चलता है और स्पष्ट है कि 34 वर्ष की होने पर भी थकान और आराम को वह पीछे छोड़ चुकी हैं।

टेनिस जगत में ही एक और मां बेल्जियम की किम क्लिस्टर्स ने जीवट का परिचय देते हुए 2009 में न केवल अमेरिका ओपन का एकल खिताब जीता, बल्कि अगले साल इस कारनामे को दोहराया। 2011 में आस्ट्रेलिया ओपन ग्रैंड स्लैम जीतने के बाद तो उन्होंने खेल प्रशंसकों को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर दिया।

ब्रिटेन की लम्बी दूरी की धाविका पाउला रेडक्लिफ को कौन नहीं जानता। मैराथन में 2003 में 2:15:25 का विश्व रिकार्ड आज भी उनके नाम है। 2006 में मां बनने के बाद वह मैदान पर उतरीं और 2007 में न्यूयार्क मैराथन जीती औ अगले साल फिर अपने खिताब की रक्षा की। वह अब तक 2002 से लेकर तीन बार लंदन मैराथन, तीन बार न्यूयार्क मैराथन जीत चुकी हैं।

महान माताओं की श्रेणी में एक और नाम अमेरिका की सेरेना विलियम्स का है, जिन्होंने पदार्पण के साथ ही टेनिस खेल का तरीका ही बदल दिया और इसे पावर टेनिस का रूप दिया। 1999 में पहले ग्रैंड स्लैम से लेकर वह आज तक 23 एकल, 14 युगल और दो मिश्रित युगल ग्रैंड स्लैम खिताब अपने नाम कर चुकी हैं। सभी युगल खिताब उन्होंने बड़ी बहन वीनस विलियम्स के साथ जोड़ी बनाकर जीते हैं और यह जोड़ी आज तक फाइनल में अविजित है। इसके अतिरिक्त वह विश्व स्तर पर 73 डब्ल्यूटीए एकल खिताब अलग से जीत चुकी हैं। 2017 में बच्चे को जन्म देने के बाद उन्होंने टेनिस में वापसी की है और 39 साल  की उम्र में भी वह टीनएजर को मात दे रही हैं।

‘अभी न होगा मेरा अंत,

अभी-अभी तो आया है,

मेरे जीवन में नव-वसंत।’

 

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