विश्वकप 1975 : जब हार की कसक बनी थी भारतीय हाकी टीम के लिये जीत की प्रेरणा

नयी दिल्ली,  (एजेंसी)
45 बरस पहले 15 मार्च को कुआलालम्पुर में विश्व कप फाइनल में जब भारतीय हाकी टीम पाकिस्तान के खिलाफ उतरी तो पूरा देश रेडियो पर कान लगाये बैठा था लेकिन मैदान पर उतरे भारतीय खिलाड़ियों के जेहन में एक ही बात थी कि 2 साल पहले मिली हार का बदला चुकता करना है। दुनिया में आज चौथे नंबर की टीम भारत ने एकमात्र विश् कप कुआलालम्पुर में 15 मार्च, 1975 को चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 2-1 से हराकर जीता था। भारत नीदरलैंड में 1973 विश्वकप फाइनल में मेजबान से हार गया था।

फाइनल के 51वें मिनट में पाकिस्तान के खिलाफ विजयी गोल दागने वाले अशोक कुमार ने बातचीत में कहा ,‘हम 1973 में जीत के करीब पहुंचकर हारे थे और यह कसक सभी खिलाड़ियों के मन में थी। उन्होंने कहा ,‘अब हमारे पास मौका था उस कसक को दूर करने का। चंडीगढ़ में हमने तैयारी की जहां रोज सैकड़ों लोग अभ्यास देखने आते थे। ज्ञानी जैल सिंह मुख्यमंत्री और उमराव सिंह खेल मंत्री थे जो हफ्ते में 2 बार मैदान पर आते थे।’ वहीं सेमीफाइनल में मलेशिया के खिलाफ बराबरी का गोल करके भारत को फाइनल की दौड़ में लौटाने वाले असलम शेर खान ने कहा ,‘हम चंडीगढ़ से ठानकर निकले थे कि जीतकर ही लौटना है। यही पक्का इरादा हमारी जीत की कुंजी था।’ उन्होंने कहा,‘सेमीफाइनल में जब मुझे उतारा गया तब भारत पीछे था और मेरे जीवन का सबसे अनमोल पल रहा जब मैंने 65वें मिनट में बराबरी का गोल किया। वहीं अशोक कुमार ने कहा,‘मेरे ऊपर अपेक्षाओं का बोझ था क्योंकि मैं ध्यानचंद का बेटा था और आलोचकों की नजरें भी मुझ पर थी। मैंने इसे सकारात्मक लिया और जब मलेशिया में होटल लॉबी में रखे विश्वकप को देखकर प्रण किया कि इस बार कोई कसर बाकी नहीं रखूंगा।’ उन्होंने कहा ,‘फाइनल के दिन देश में छुट्टी कर दी गई थी और रेडियो कमेंट्री सुनने के लिये मानो पूरा भारत कान लगाये बैठा था।’ असलम ने बताया कि जीत के बाद मलेशिया में भारतीय समुदाय जश्न में डूब गया और हर जगह टीम के स्वागत में लोग आटोग्राफ औके लिये खड़े रहते थे।
जश्न तो दूर किसी ने हमें बधाई तक नहीं दी : अशोक कुमार
45 साल बाद हालांकि विश्वकप की ऐतिहासिक जीत को मानो भूला दिया गया और किसी ने इन दिग्गजों को याद नहीं किया। दिग्गज खिलाड़ी अशोक कुमार ने कहा,‘हमने आज तक दूसरा विश्वकप नहीं जीता लेकिन विश्व विजेता टीम को वह श्रेय नहीं मिला जो मिलना चाहिये था। जश्न मनाना तो दूर किसी ने हमें बधाई तक नहीं दी और न ही किसी को याद रहा आज का दिन।क्रिकेट के ग्लैमर की हम बराबरी कहां कर सकते हैं।’

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