जयदेव उनादकट: जिसने धज्जियां उड़ने के बाद खुद को संभाला और रचा इतिहास

नई दिल्ली. जयदेव उनादकट इस नाम से तो आप परिचित होंगे ही, क्रिकेट में अगर आपकी बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं होगी, तब भी आप इस खिलाड़ी के बारे में एक ख़बर के चलते ज़रुर जानते होंगे. दरअसल, आईपीएल में नीलामी के दौरान किसी खिलाड़ी को ख़ासकर किसी गुमनाम खिलाड़ी पर करोड़ों रुपये की बारिश होती है तो वो खबरों में आ ही जाता है और अगर करोड़ों रुपये मिलने के बाद वो खिलाड़ी नाकाम हो तो सोशल मीडिया पर लोगों को उनका मज़ाक उड़ाना भी काफी भाता है. उनादकट के साथ आईपीएल नीलामी में एक नहीं दो बार ऐसा हुआ. 2018 और 2019 में. जिस बेदर्दी और निर्ममता के साथ सोशल मीडिया पर उनके खेल की धज्जियां उड़ाई गई, शायद कोई दूसरा खिलाड़ी क्रिकेट के मैदान पर फिर से वापस लौटने पर कांपता. लेकिन, उनादकट ने उस दौर से भी सीख ली. खुद को संभाला और उस अनुभव से एक ऐसी टीम को ना सिर्फ संभाला, बल्कि रणजी चैंपियन बनाया. जिसे सौराष्ट्र के लिए आज तक कोई नहीं कर पाया.
पुजारा और उनादकट में लगती है शर्त
आईपीएल में करोड़ों रुपए आसानी से कमाने वाले उनादकट को अब 5 हज़ार या शायद 10 हज़ार रुपए के ईनाम का बेसब्री से इतंज़ार है. वो बेशकीमती है. दरअसल चेतेश्वर पुजारा और उनादकट बहुत अच्छे दोस्त हैं और इन दोनों में इस बात को लेकर हर वक्त 5 हजार रुपए की शर्त लगी रहती है. इनमें से जो भी बेहतर खेलता है, दूसरा उन्हें 5 हज़ार का ईनाम देता है.
उनादकट पठान नहीं बन पाए
बहरहाल, उनादकट की कहानी सिर्फ सौराष्ट्र को रणजी ट्रॉफी जीताने वाले पहले कप्तान की कहानी नहीं है. 28 साल के इस युवा गेंदबाज की कहानी में कई ऐसे अध्याय हैं, जिनसे कोई भी प्रेरणा ले सकता है. 2010 में अंडर 19 वर्ल्ड कप में कप्तानी करने के साथ उनादकट आए और छा गए,  जिसके चलते उन्हें कोलाकाता नाइट राइडर्स में वसीम अकरम जैसे दिग्गज तक ने सराहा. देखते ही देखते उसी साल (2010 दिसंबर) में उनादकट टीम इंडिया के साथ साउथ अफ्रीका दौरे पर चले गए और एक टेस्ट मैच भी खेल लिया. लेकिन, जैसा का अक्सर भारतीय क्रिकेट में होता है कि अगर आपने अपने पहले मैच में नाकामी का मुंह देखा तो कई साल के लिए आपके लिए वापसी का दरवाज़ा बंद हो जाता है. शायद  भारतीय क्रिकेट को सीधे-सीधे दूसरा इरफान पठान चाहिए था. अंडर 19 क्रिकेट से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का सफर बिना किसी हिचक से साथ तय करने वाला युवा बाएं हाथ का गेंदबाज़. लेकिन, उनादकट तो पठान नहीं थे.
तीन साल बाद उनादकट की वापसी
करीब 3 साल बाद उनादकट की दोबारा भारतीय क्रिकेट में एंट्री होती है. जिमबाब्वे दौरे पर 5 वन-डे के दौरान सिर्फ 40 ओवर की गेंदबाजी में उनादकट ने 8 विकेट झटके, लेकिन मानो जैसे कोई इंतज़ार कर रहा हो कि वैसे कैसे थोड़े से डगमगाए कि उन्हें बाहर कर दिया जाए. ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ दो वन-डे मैचों में सिर्फ 12 ओवर की गेंदबाज़ी काफी थी उनादकट को फिर से घरेलू क्रिकेट में धकेलने के लिए. 2016 से 2018 के बीच उनादकट ने फिर से दोबारा वापसी की और इस बार टी20 फॉर्मेट में. 10 मैचों में 14 विकेट और 8.68 का इकॉनोमी रेट इतना प्रभावशाली नहीं रहा कि उन्हें टीम इंडिया के लिए नियमित तौर पर मौके मिलते रहे.
कप्तानी ने बेहतर खिलाड़ी बनाया
मौजूदा उनादकट अब परिपक्व हो चुके हैं. कप्तानी ने उन्हें बेहतर खिलाड़ी बनाया है. उनकी गेंदबाज़ी  में अलग पैनापन है. अगर किस्मत ने साथ दिया होता तो एक सीज़न में सबसे ज़्यादा रणजी विकेट लेने का रिकॉर्ड आज उनके नाम होता. इस साल भारत को अक्टूबर-नवंबर महीने में टी20 वर्ल्ड कप में हिस्सा लेना है. भारतीय गेंदबाजी आक्रमण में जसप्रीत बुमराह हैं, मोहमम्द शमी हैं, भुवनेश्वर कुमार और दीपक चाहर हैं, लेकिन अगर एक कमी है तो वो हैं एक क्वालिटी लेफ्ट ऑर्म पेसर की.
2007 टी20 वर्ल्ड कप में इरफान पठान और आरपी सिंह ने दिखाया था कि किसी आक्रमण में ये बात कितना मायने रखती है. 2011 में वन-डे वर्ल्ड कप के दौरान आशीष नेहरा और जहीर खान ने दोबारा इस बात को साबित किया था कि बाएं हाथ के तेज गेंदबाज होने से आक्रमण में किस तरह की विविधता आती है. क्या भारतीय चयनकर्ता अब भी उनादकट के दावे को अनदेखा करेंगे?
अगर उनादकट ने राजस्थान रॉयल्स के लिए इस साल आईपीएल में भी अपना जलवा बिखेरा तो शायद चयनकर्ताओं के सामने उन्हें फिर से एक और मौका नहीं देने की कोई वज़ह नहीं बचेगी.

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