खिलाड़ी माता-पिता के पदचिह्नों पर चलती पंजाबी कुड़ी

नित नई पटकथा लिख रही हरमिलन

श्रीप्रकाश शुक्ला

हर इंसान में प्रतिभा होती है और वह अपने जीवन में सफल भी होना चाहता है लेकिन सभी के सपने साकार नहीं होते। वैसे तो सफलता की कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती लेकिन आमतौर पर अपने जीवन में निर्धारित किये गए लक्ष्यों की प्राप्ति ही सफलता कहलाती है। व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाये तो अधिकांश लोग पारिवारिक जीवन में सुख-शांति, अच्छा घर-परिवार और खर्च करने के लिए पर्याप्त धन को ही सफलता मान लेते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें तमाम सुख-सुविधाएं नहीं खेलों से ताउम्र प्यार होता है। ऐसी ही नायाब शख्सियत हैं माहिलपुर पंजाब के अमनदीप सिंह बैंस और अर्जुन अवार्डी माधुरी बैंस। अमनदीप और माधुरी अब अपनी बेटी हरमिलन में न केवल अपना अक्श देख रहे हैं बल्कि चाहते हैं कि उनकी बेटी एथलेटिक्स में वह मुकाम हासिल करे जोकि आज तक कोई भारतीय एथलीट नहीं कर सका।

खिलाड़ी माता-पिता की लाड़ली हरमिलन को बचपन में खेलों से लगाव नहीं था लेकिन उसके माता-पिता की दिली ख्वाहिश थी कि उनकी बेटी सिर्फ खेलों में दिलचस्पी ले। आज हरमिलन खेलों को ही अपना हमसफर मानकर नित नए प्रतिमान गढ़ रही है। हाल ही भुवनेश्वर में हुए पहले खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में हरमिलन ने 1500 और 800 मीटर दौड़ में न केवल स्वर्णिम सफलता हासिल की बल्कि 1500 मीटर दौड़ में नया कीर्तिमान भी स्थापित किया। इंसान तभी कामयाब होता है जब वह वो काम करे जिससे वह प्यार करता है या फिर जो भी काम वह करता है उससे प्यार करना सीख ले। अमनदीप और माधुरी को खुश होना चाहिए कि उनकी बेटी ने खेलों से प्यार करना सीख लिया है।

जीवन का आनंद स्वयं को जानने में है। स्वयं का निरीक्षण करना, अपनी प्रतिभा का पता लगाना और अपनी उस विशेष प्रतिभा का निरंतर विकास करना ही हरमिलन का मूलमंत्र है। हरमिलन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर कदम रखे अभी पांच साल ही हुए हैं लेकिन इस बेटी ने अपने फौलादी प्रदर्शन से जो शोहरत हासिल की है, उसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। आजादी के 73 साल बाद भी भारत में खेल संस्कृति पल्लवित और पोषित नहीं हो सकी है लेकिन अमनदीप सिंह और माधुरी जैसी खेल शख्सियतों के बूते ही खेलों में भारत का परचम लहर और फहर रहा है।

वैसे तो पंजाब का होशियारपुर फुटबाल की नर्सरी माना जाता है लेकिन माहिलपुर कस्बे की प्रतिभाशाली बिटिया हरमिलन को एथलेटिक्स से प्यार है। हरमिलन आज अपने एथलीट माता-पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए प्रतियोगिता दर प्रतियोगिता ऐसी सफलताएं हासिल कर रही है, जिन्हें देख या सुनकर हर खेलप्रेमी के दिल को तसल्ली मिलती है। भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम के ट्रैक पर दो दिन में दो स्वर्ण पदक जीतना हंसी-खेल की बात नहीं थी पर हरमिलन ने हंसते-हंसते यह सफलता हासिल कर सुनहरे भविष्य के संकेत दिए हैं। हरमिलन का अगला लक्ष्य अप्रैल माह में होने वाली फेडरेशन कप प्रतियोगिता है। हरमिलन अपने प्रदर्शन में और सुधार कर ओलम्पिक टिकट हासिल कर सकती है।

हरमिलन की जहां तक बात है वह एथलीट माता-पिता की खिलाड़ी बेटी है। हरमिलन के पिता अमनदीप सिंह ने 1996 में दक्षिण एशियाई खेलों की 1500 मीटर दौड़ में चांदी का पदक जीता था वहीं उनकी मां माधुरी ने 2002 में दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में हुए एशियन गेम्स की 800 मीटर दौड़ में रजत पदक से अपना गला सजाया था। हरमिलन के लिए खुशी की बात है कि उनके माता-पिता एक समर्पित एथलीट हैं, उन्हें एक खिलाड़ी की जरूरतों का पूरी तरह से भान है। हरमिलन ने भुवनेश्वर में अपने माता-पिता की देखरेख में जो स्वर्णिम सफलता हासिल की है, वह अविस्मरणीय है। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में अध्ययनरत हरमिलन के माता-पिता अपनी बेटी की सफलता पर कहते हैं कि वह अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए ट्रैक पर कड़ी मेहनत करती है। हम लोग बचपन से चाहते थे कि मेरी बेटी खेलों में मादरेवतन का मान बढ़ाए। हरमिलन अपनी सफलता का श्रेय खुद लेने की बजाय अपने माता-पिता और प्रशिक्षक सुरेश सैनी को देते हुए कहती है कि हर खिलाड़ी की तरह मेरा सपना भी ओलम्पिक में अपने देश को मेडल दिलाना है।  

 

 

 

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