आठ सौ साल पुराना खेल है काम्बाला

धान के खेत में 'मसाले' उड़ाते हैं दौड़ते भैंसे
खेलपथ प्रतिनिधि
नई दिल्ली।
पिछले कुछ दिनों से जमैका के धावक उसैन बोल्ट का रिकॉर्ड खूब गूगल किया जा रहा है क्योंकि एक भारतीय ने बोल्ट का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। सोशल मीडिया पर भारतीय धावक श्रीनिवास गौड़ा पिछले तीन-चार दिनों से छाए रहे, लेकिन भाई अपना भारत क्या खूब निराला देश है। श्रीनिवास का रिकॉर्ड बस कुछ दिन के लिए बोल्ट के रिकॉर्ड को टक्कर दे पाया। मंगलवार को श्रीनिवास के रिकॉर्ड को तोड़कर एक और सूरमा इस खेल का हीरो बन गया और निशांत शेट्टी नामक रेसर अब सोशल मीडिया का किंग बना है।
अब सवाल यही है कि आखिर क्या है यह खेल और इसकी कहानी, जहां कीचड़ से भरे धान के खेत में भैंसे दौड़ते हैं और पीछे-पीछे होता है उनका जॉकी। कम्बाला परंपरागत रूप से दक्षिणी कर्नाट क्षेत्र और उडुपी के तटीय जिले तथा केरल के कासरगोड जिसे सामूहिक रूप से तुलुनाडु के रूप में जाना जाता है। इसे हर साल वहां के जमींदारों के द्वारा आयोजित किया जाता है। इसके पीछे कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि इस खेल का इतिहास 800 साल से भी पुराना है।
कम्बाला का मौसम नवम्बर से शुरू होता है और जब मार्च में खेतों से फसल कटने लगती है तब इसका मौसम समाप्त होता है। मुख्य रूप से इसे किसानों का ही खेल माना जाता है। इसमें भैसों को सजाया जाता है और उन्हें तेज दौड़ने के लिए काफी समय से तैयार किया जाता है। कम्बाला परंपरागत रूप से वहां के लिए एक सरल खेल माना जाता है, जो अनिवार्य रूप से उन इलाके के ग्रामीणों के मनोरंजन के लिए आयोजित किया जाता है।
कम्बाला रेस का आयोजन दो समानांतर रेसिंग ट्रैक्स पर होता है। ट्रैक धान के खेत में बनाया जाता है। इसमें पानी डालकर कीचड़ कर दिया जाता है। स्थानीय भाषा में खेत में बना कीचड़ मसाला कहलाता है। अब 120 से 160 मीटर लम्बे और आठ से 12 मीटर तक चौड़े ट्रैक में दो भैंसों को एक साथ बांधा जाता है और उनके साथ होता है उन्हें हांकने वाला एक खिलाड़ी, जिसे आप जॉकी के नाम से जानते हैं। उस खिलाड़ी को भैंसों को लेकर रेस में दौड़ना होता है और फिनिश लाइन तक पहुंचना होता है, जो पहले पहुंचा वो विजेता बनता है।
मतलब कि कुल मिलाकर मूल नियम सामान्य दौड़ प्रतियोगिता वाले ही हैं, लेकिन बाकी सभी चीजें उससे अलग। भैंसों के साथ दौड़ता खिलाड़ी उन्हें तेज दौड़ने के लिए पीटता है और इस खेल के इसी फॉर्मेट ने इसे विवादित बना दिया। पहले विजेताओं को नारियल दिए जाते थे, लेकिन अब गोल्ड मेडल और ट्रॉफी आदि देकर सम्मानित किया जाता है।
कम्बाला उत्सव की उत्पत्ति एक हजार साल से पूर्व की भी हो सकती है। त्योहार के शुरुआती दिनों के दौरान इसे कारागा उत्सव के रूप में जाना जाता था। बाद में इसे कम्बाला समारोह के रूप में जाना जाने लगा। लोगों के मुताबिक कम्बाला एक त्योहार है, जोकि कर्नाटक के खेती समुदाय में उत्पन्न हुआ था। यह त्योहार भगवान शिव के अवतार भगवान कादरी मंजूनाथ को समर्पित है। इससे भगवान खुश कर अच्छी फसल की कामना की जाती है। यह कृषि समुदाय के लिए मनोरंजन या मनोरंजक खेल का एक रूप भी था। 
कम्बाला को कई नामों से जाना गया। इनमें से प्रमुख हैं कम्बाला कादरी, जिसे मंगलोर में आयोजित किया जाता था और इसे देवारा कम्बाला (भगवान काम्बाला) कहा जाता है क्योंकि यह श्री मंजूनाथ मंदिर, कादरी, मंगलोर के साथ जुड़ा हुआ है। कादरी कम्बाला को अरासु काम्बला (राजा काम्बला) के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह से समय-समय पर कई नामों से जाना गया, लेकिन अब यह सिर्फ कम्बाला के नाम से ही धूम मचाए हुए है।  
कहा जाता है कि इस परम्परा को मंगलोर के एलुपा राजाओं द्वारा संरक्षित किया गया जो 300 साल पहले शासक थे और इस कारण के लिए कद्री कम्बाला भी राज कम्बाला के रूप में जाना जाता है। दौड़ के लिए भैंसों को खास तौर पर तैयार किया जाता है। भैंसों के कुछ मालिकों ने प्रतिस्पर्धा में भैंसों के लिए अलग-अलग स्वीमिंग पूल भी बनाए हैं। 
कई पशु प्रेमियों द्वारा कम्बाला की आलोचना की गई है क्योंकि वे रेसिंग रेडियंस पर चाबुक के इस्तेमाल के कारण क्रूरता को दर्शाता हैं। 2014 में पशु कल्याण संगठनों द्वारा दायर मुकदमों के आधार पर भारत की सर्वोच्च अदालत ने कम्बाला और जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाने की अपील की थी। कम्बाला कमेटियों ने बैन का विरोध किया और बताया कि कम्बाला और जल्लीकट्टू दो अलग-अलग सिद्धांत के खेल हैं, जिनमें कम्बाला भैंस रेसिंग और जल्लीकट्टू बुल टमिंग है जहां लोगों का एक समूह बैल को पकड़ने और जीतने की कोशिश करता है।
कम्बाला और साथ ही जल्लीकट्टू पर इस प्रतिबंध को हटाने का अनुरोध किया गया। वहां के लोगों ने इसे एक पारम्परिक लोक खेल कहा था और इसमें जानवरों को कोई क्रूरता नहीं थी और यह एक लोकप्रिय इच्छा थी कि इसे अनुमति दी जाएगी।
तीन जुलाई, 2017 को भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कर्नाटक में क्रूरता की रोकथाम को मंजूरी दी और कर्नाटक में त्योहार काम्बला को वैध कर दिया गया। लोकप्रिय स्थानों पर जहां काम्बाला का आयोजन किया जाता है उनमें से वंदरु, पिकरिकलु, चोरदी, गोलविडी और मुदाबिद्री प्रमुख हैं। यह लोकप्रिय त्योहार हमेशा कर्नाटक राज्य के लिए एक गौरव के रूप में माना जाता है। इसमें वहां के लोग बेहद ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
जल्लीकट्टू खेल के तहत सांडों या बैलों को काबू में किया जाता है। हर साल जनवरी मध्य में मट्टू पोंगल के दौरान इस खेल का आयोजन होता है। जल्लीकट्टू तमिल के दो शब्दों जल्ली और कट्टू को जोड़कर बना है। इसका अर्थ होता है, बैल के सींग में बंधे सोने या चांदी के सिक्के। इन सिक्कों को बैल के सींगों से निकालने वाले को विजेता माना जाता है। इस खेल के तीन प्रारूप होते हैं- वाटी मंजू विराट्टू, वेलि विराट्टू और वाटम मंजूविराट्टू। जबकि काम्बाला में भैंसों के साथ दौड़ना होता है। फिलहाल यह खेल कर्नाटक में अपने रोमांचक दौर में है। जहां हर रोज नए सितारे मिल रहे हैं। अब देखना होगा कि क्या फिर कोई नया हीरो मिलता है।

 

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