गुरबत से निकला लाल, क्रिकेट में कर रहा कमाल

हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में खेले गये अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप फाइनल में भले ही हैरतअंगेज अंदाज में डकवर्थ-लुइस नियम के आधार पर बांग्लादेश ने भारत को तीन विकेट से हरा दिया हो, मगर इस टूर्नामेंट की उपलब्धि यह भी रही कि भारत को यशस्वी जायसवाल जैसे खिलाड़ी का हुनर देखने को मिला। यशस्वी ने पूरे टूर्नामेंट में चार सौ रन बनाकर खुद को भारतीय क्रिकेट का उभरता सितारा साबित किया। फाइनल में उनके बनाये गये 88 रन तो बेशकीमती थे, भले ही टीम जीत नहीं पायी। उनकी सबसे यादगार पारी पाकिस्तान के खिलाफ 105 यादगार रन की रही। वहीं श्रीलंका के खिलाफ 59, जापान के खिलाफ 29, न्यूजीलैंड के खिलाफ नाबाद 57, आस्ट्रेलिया के खिलाफ 62 रन भी बनाये। उन्हें टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी घोषित किया गया। ये उनकी कष्टों भरी यात्रा का पहला सुनहरा पड़ाव था।
नि:संदेह यशस्वी जायसवाल की कहानी एक फिल्मी कथा जैसी रही है। मां-बाप ने जब उसका नाम यशस्वी रखा होगा तो अवचेतन में कहीं न कहीं यह आकांक्षा जरूक रही होगी कि बेटा एक दिन अपने यश से परिवार की तमाम आर्थिक मुश्किलों का निवारण कर देगा। यशस्वी जब क्रिकेटर बनने के जुनून को लेकर मुंबई आया तो हालात बेहद ‍विपरीत थे। पैसे की भारी किल्लत थी और जीवन की छोटी-मोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये वह अथक संघर्ष करता रहा था। वह एक क्लब में गार्ड के टैंट में रहा करता था। जब घर से भेजे गये थोडे-बहुत पैसे भी पूरे नहीं होते थे तो छोटे-मोटे काम जीने के लिये करने शुरू किये। यहां तक कि उसने गोलगप्पे तक बेचने का काम किया। वह दिन में क्रिकेट का कड़ा अभ्यास करता और रात में गोलगप्पे बेचकर अपने खर्चे के लिये पैसे जुटाता। यशस्वी के लिये वह बहुत मुश्किल भरा दौर था। सही मायनो में क्रिकेट के लिये उसने अपना बचपन होम कर दिया। वह घर से पैसे मंगवाने की स्थिति में न था। उसे डर था कि यदि घर से पैसे की जिद करूंगा तो उसे वापस भी बुलाया जा सकता है। जिसके चलते उसने छोटे-मोटे काम करके अपना खर्च निकालने का मन बनाया लेकिन उसने क्रिकेट की साधना और अभ्यास लगातार जारी रखा।
इसी बीच उसकी मुलाकात ज्वाला सिंह से हुई। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से किस्मत आजमाने आये कि्रकेटर ज्वाला सिंह ने यशस्वी जायसवाल के हुनर और संघर्ष को गहरे तक महसूस किया। ज्वाला सिंह भी किसी समय ऐसे ही संघर्ष से गुजरे थे और अब उनका संघर्ष पूरा हो चुका था। ज्वाला सिंह ने यशस्वी को मानसिक व आर्थिक संबल दिया। उसके हुनर को निखारने का प्रयास किया और क्रिकेट के लिये जरूरी आवश्यकताएं पूरी कीं। उन्होंने यशस्वी की प्रतिभा को महसूस करते हुए उसे प्रशिक्षण दिया और विदेशी पिचों में खेलने के अनुभव बटोरने के लिये अभ्यास हेतु ब्रिटेन भी भिजवाया। यदि ज्वाला सिंह यशस्वी की मदद न करते तो नि:संदेह जीवनयापन की मुश्किलों से जूझता यशस्वी एक आम लड़का बन जाता। आज ज्वाला सिंह की साधना का ही परिणाम है कि सत्रह साल का यह किशोर करोड़पति क्रिकेटर है। कोच ज्वाला सिंह उसका मनोबल बढ़ाने अंडर-19 विश्वकप में दक्षिण अफ्रीका में मौजूद थे।
अंडर-19 क्रिकेट विश्वकप खेलने से पहले यशस्वी जायसवाल मुंबई के लिये प्रथम श्रेणी का मैच भी खेल चुका है। कभी टैंट में रहकर जीवनयापन करने वाले और अपनी जरूरतों के लिये गोलगप्पे बेचने वाले यशस्वी के जीवन में करिश्माई मोड़ तब आया जब आईपीएल की टीमों के लिये उनकी बोली लगी। यशस्वी को राजस्थान रॉयल्स ने दो करोड़ चालीस लाख में खरीदा जबकि उसका बेस प्राइस महज बीस लाख रुपये ही था।
यशस्वी ने अंडर-19 किक्रेट विश्वकप में पचास की औसत से रन बनाए और कई बार नाबाद भी रहा। उसके कोच ज्वाला सिंह ने  उसे टूर्नामेंट के दौरान चुनौती दी कि मुझे पाकिस्तान के खिलाफ शतक चाहिए। दरअसल, कोच की मंशा थी कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ होने वाले किसी भी मैच में कोई बड़ी पारी उसे हीरो बना सकती है। यह उसके कैरियर को नोटिस किये जाने के नजरिये से भी महत्वपूर्ण था। यशस्वी ने अपने गुरु को दिये वायदे को निभाया और पाकिस्तान के खिलाफ 105 रन बनाये। उनकी शानदार पारी की खूबसूरती यह थी कुल 113 गेंदों में उन्होंने आठ चौके और चार छक्के जड़े। नि:संदेह यह दृढ़ विश्वास और संकल्प की जीत थी। यशस्वी कोच और टीम इंडिया की कसौटी पर खरा उतरा। इस पारी ने उसे पूरे देश में रातोंरात हीरो बना दिया।
यशस्वी की मेहनत और संकल्प की ही जीत है कि वह छोटी-सी उम्र में करोड़पति क्रिकेटर बन गये हैं। आईपीएल में चयन जहां उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरी करेगा, वहीं उनकी राष्ट्रीय पहचान बनाने में भी मदद करेगा,  जो कालांतर उनकी सीनियर टीम में जगह बनाने में सहायक होगा। नि:संदेह पाकिस्तान के खिलाफ सैकड़ा ठोककर यशस्वी जायसवाल आज देश के घर-घर में अपनी पहचान बना चुके हैं।

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