दिलों पर राज करती रानी बिटिया

श्रीप्रकाश शुक्ला

हाकी की रानी बिटिया ने जीवन में कितनी भी कठिनाइयां क्यों न सहन की हों, उसका हौसला हमेशा सातवें आसमान पर ही रहा। प्रशिक्षक बल्देव सिंह के कठोर अनुशासन से ही यह बेटी फौलाद की बनी और दुनिया में भारतीय महिला हाकी को गौरवान्वित करने का जीतोड़ प्रयास किया। कुरुक्षेत्र के शाहाबाद मारकंडा में चार दिसम्बर 1994 को जन्मी रानी रामपाल की कहानी हिम्मत से तमाम कष्टों और दुश्वारियों पर जीत हासिल करके लक्ष्य हासिल करने वाली नायिका की है।

‘पिताजी तांगा चलाते थे। उसकी कमाई से घर का खर्चा चलता था। तीन टाइम का खाना मिल पायेगा या नहीं, यह चिंता बराबर रहती थी। हम कच्चे घर में रहते थे। जब बारिश आती तो हमारी जान सूख जाती थी। पानी घर में घुस जाता था। तीन भाई-बहन मिलकर पानी निकालते थे। भगवान से प्रार्थना करते थे कि बारिश न हो। डर रहता था कि बारिश से घर धराशायी न हो जाए। माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे। ऐसे में जब मैंने हॉकी खेलने की बात कही तो पहली बार मना हो गई। यह वह दौर था जब ग्रामीण परिवेश में महिलाओं की भूमिका घर तक ही सीमित थी। पड़ोसी-रिश्तेदार कहते थे कि लड़की हॉकी खेलेगी? कम कपड़े पहनकर मैदान में दौड़ेगी? हमारी नाक कटवाएगी? भगवान का शुक्र है कि पिताजी मान गये। अच्छे जूते और हॉकी की किट सपना था। अच्छा पौष्टिक खाना तो दूर की बात थी। जब हॉकी एकेडमी गई तो पांच सौ एम.एल. दूध ले जाना होता था। घर से दौ सौ एम. एल. दूध मिल पाता था, तीन सौ ग्राम पानी डालकर ले जाती थी। बहुत मुश्किल वक्त था।’

यह कहानी है देश-दुनिया के दिलों में राज करने वाली हरियाणा के शाहाबाद मारकंडा में जन्मी रानी रामपाल की जो आज भारतीय महिला हॉकी टीम की उम्दा-प्रेरक कप्तान है। शायद कहीं मां-बाप के अवचेतन में ऐसी होनहार बेटी का सपना रहा होगा, तभी तो उसका नाम रानी रखा । आज वह रानी है, हॉकी की रानी। ये बात तो दुनिया ने भी मानी है। पिछले दिनों उसे भारत का चौथा बड़ा नागरिक सम्मान पद्मश्री देने की घोषणा हुई। वर्ष 2016 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड दिया गया था। पिछले दिनों उन्हें ‘वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईअर अवार्ड’ देने की घोषणा की गई। पूरी दुनिया में इसके लिये वोटिंग होती है। यह प्रतिष्ठित सम्मान पाने वाली वह भारत की ही नहीं, दुनिया की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी है। दरअसल, इस पुरस्कार के लिये खेल प्रेमी वोटिंग करते हैं। पुरस्कार खेल मैदान में शानदार प्रदर्शन, सामाजिक प्रतिबद्धता और अच्छे व्यवहार के लिये दिया जाता है। रानी को दो लाख के करीब वोट मिले।

कुरुक्षेत्र के शाहाबाद मारकंडा में 4 दिसम्बर 1994 को जन्मी रानी रामपाल की कहानी हिम्मत से तमाम कष्टों और दुश्वारियों पर जीत हासिल करके लक्ष्य हासिल करने वाली नायिका की है। पिताजी तांगा चलाते थे। एक भाई दुकान में सहायक के तौर पर और दूसरा भाई कारपेंटर का काम करता रहा। ऐसे परिवेश में बड़े सपने लेकर उन्हें पूरा करने निकली रानी। वह भी ऐसे समाज में जहां लड़कियों का हाकी खेलना नामुमकिन था। रिश्तेदारों व पड़ोसियों के ताने होते थे। कल जो कहते थे कि छोटी स्कर्ट पहनकर मैदान में दौड़गी, घर की इज्जत खराब करेगी, आज वही उसकी पीठ थपथपाते हैं कि हमारी शाहाबाद की बेटी है। हमारी नाक है। रानी ने भी मां-बाप को सुख देने के लिये शाहाबाद में खूबसूरत सपनों का घर बनवाया है, जहां ओलंपिक के प्रतीक पांच रिंग बने हैं।

किन मुश्किलों से जूझकर रानी आगे बढ़ी, कल्पना करना कठिन है। लेकिन उसे हमेशा से पता था कि देश के लिये हॉकी खेलना है। भले ही पिता हॉकी किट व जूते खरीदने की हैसियत में न थे, मगर आखिरकार पिता ने रानी का मन रखा और उसे हॉकी खेलने की अनुमति थी। उसने पिता से वायदा किया कि जब भी कभी आपको लगेगा कि मैं कुछ गलत कर रही हूं तो मैं हॉकी छोड़ दूंगी। उसके कैरियर संवारने में कोच सरदार बलदेव सिंह का बड़ा योगदान रहा। उनकी देखरेख में शाहाबाद हॉकी अकादमी में रानी के प्रशिक्षण की शुरुआत हुई। उन्होंने रानी और हॉकी का साथ दिया। हॉकी की किट खरीदने से लेकर जूते खरीदने तक। उसके खेल से खुश होकर एक बार उन्होंने एक दस का नोट दिया था। गुरु द्रोणाचार्य ने उस पर लिख दिया था—‘तुम देश का भविष्य हो।’ उस नोट को रानी ने बहुत दिनों तक संभालकर रखा। मगर वह गरीबी का ऐसा दौर था कि उस दस के नोट को एक दिन खर्च करना पड़ा। चंडीगढ़ में ट्रेनिंग हुई तो उसे बलदेव सिंह ने अपने घर में रखा। खाने-पीने की व्यवस्था की। देश ने उन्हें द्रोणाचार्य सम्मान दिया।

जब रानी चौदह साल की उम्र में भारतीय महिला हॉकी टीम में शामिल हुई तो वह देश की सबसे कम उम्र की हॉकी खिलाड़ी थी। उसने 2009 में भारत को एशिया कप में रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 2013 में रानी की बड़ी भूमिका से जूनियर महिला विश्व कप हाकी में 38 साल बाद भारत को कांस्य पदक मिला। ‍उसे ‘प्लेयर ऑफ दि टूर्नामेंट’ का अवार्ड मिला। आमतौर पर वह सेंटर फॉरवर्ड के रूप में खेलती है। यह रानी का खेल और नेतृत्व ही है कि भारतीय हॉकी टीम ने एशियन गेम्स, 2018 में रजत, एशिया कप 2017 में स्वर्ण और एशियन चैंपियन्स ट्राफी 2018 में रजत पदक हासिल किया। अब उनके नेतृत्व में भारतीय हाकी टीम ने लगातार दूसरी बार ओलंपिक के लिये क्वॉलीफाई किया है। टीम के हौसले इतने बुलंद हैं कि पिछले दिनों ओलंपिक चैंपियन ब्रिटेन को भी मात दे दी। रानी को इस बात का श्रेय भी है कि उसने हॉकी टीम की सुप्त शक्ति को जाग्रत करके जीत की भूख बढ़ा दी। वह देश के लिये ढाई सौ के करीब मैच खेल चुकी है। वाकई रानी बेटी आज हाकी व दुनिया के दिलों में राज कर रही है।

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