पुरस्कारों का भविष्य उज्ज्वल

हमारे यहां पुरस्कारों का भविष्य अत्यन्त उज्ज्वल है। पुरस्कारों को लेने के लिए कोई मना नहीं करता। बस देने वाला चाहिए-लेने वाले कतार लगाये खड़े हैं। सही भी है, काम करेगा तो प्रोत्साहन भी चाहेगा। जरा-सा काम किया और ला पुरस्कार! स्थिति यह हो गयी है कि पुरस्कार कम पड़ गये हैं तथा लेने वाले ज्यादा हो गये हैं। अब तो लगने यह भी लगा है कि साहित्यकार लिखते ही पुरस्कारों के लिए हैं। मेरे एक मित्र हैं, उनका कोई मुकाबला नहीं है। एक किताब पर ही पांच पुरस्कार ले लिये।
पुरस्कार उन्हें इस तर्ज पर दिया गया कि जैसे उन्हें ही देना जरूरी हो, चाहे उनके पास दूसरी पुस्तक हो या नहीं। पुरस्कार वगैरह घोषित होने का जब मौसम आता है तो मुझे खासी परेशानी होती है। सोचता हूं पुरस्कार मिल-मिला जाये तो मुक्ति हो। लेकिन पता नहीं कोई वरिष्ठता सूची बनी हुई है क्या, अक्सर पुरस्कार किसी बुजुर्ग साहित्यकार को दे दिया जाता है। जैसे पुरस्कार कोई वजीफा या पेंशन हो, जो ऐसे लोगों को ही दिया जाना चाहिए।
एक दो बार तो मुझे लगा कि जिन राशि वालों को पुरस्कार मिल रहा है, वही नाम बदलकर रख लूं। राज्य का एक पचास हजारी पुरस्कार ‘न’ राशि वालों को तीन साल तक गया। यही दिमाग में बना रहा कि अपना नाम ‘निपुण’ रख लूं। तब पुरस्कार लेकर अपने नाम की सार्थकता भी साबित कर सकूंगा।
क्योंकि जिन्होंने भी पुरस्कार लिये, बड़े घाघ और निपुण निकले। शुरू में तो मुझे लगता था कि पुरस्कार बहुत ही विद्वान तथा उच्चकोटि के आदमी को मिला करते हैं लेकिन धीरे-धीरे बात समझ में आयी कि पुरस्कार के लिए जितनी निपुणता की आवश्यकता है, उतनी विद्वता की नहीं क्योंकि जिन मित्रों को पुरस्कार मिले हैं, वे मेरे से भी गये -बीते हैं। इसलिए यदि मैं भी कोई पुरस्कार लेने का स्वप्न संजोता हूं तो गलत नहीं है।
वैसे मेरा फ्यूचर इसलिए भी ब्राइट लग रहा है कि तथाकथित प्रसिद्ध विद्वान लगभग निपट चुके हैं तथा चालू लोगों की शृंखला शुरू हो गयी है। इसमें केवल थोड़ी-सी ‘रेपट’ और ‘मैनेवरिंग’ की आवश्यकता है, यदि यह ‘मैसेज’ हो जाये तो पुरस्कार सीधा मेरी झोली में आयेगा।
आजकल तो एक रिवाज और चला है-निर्णायक मण्डल भी यह पूछता फिरता है कि आधी राशि उन्हें दी जाये तो वे उन्हें पुरस्कृत करने की सिफारिश कर सकते हैं। पचास प्रतिशत में भी पुरस्कार का सौदा बुरा नहीं है। सौदेबाजी तो नेपथ्य की बातें हैं, सामने तो सम्मान मिलता है। यदि कोई मेरे लिए यह कह भी दे कि मुझे पुरस्कार तिकड़म से मिला है तो इससे मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ता।

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