फिक्सिंग के साए में घरेलू क्रिकेट

भारतीय क्रिकेट की किस्मत भी कुछ अजीब सी है। जब यह लगने लगता है कि अब सब कुछ पटरी पर आ गया है, तो कुछ न कुछ गड़बड़ हो जाती है। मैदान में भारतीय टीम का प्रदर्शन शानदार चल रहा है। बीसीसीआई की कमान सौरव गांगुली ने संभाल ली है। क्रिकेट प्रशासन में सुप्रीम कोर्ट ने कई सारे सख्त नियम लागू करा लिए हैं। तब अचानक घरेलू क्रिकेट में फिक्सिंग का जिन्न सामने आ गया। कर्नाटक प्रीमियर लीग के फाइनल में स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में विकेटकीपर बल्लेबाज चिदंबरम मुरलीधरन गौतम और बाएं हाथ के स्पिन गेंदबाज अबरार काजी को गिरफ्तार कर लिया गया। सिर्फ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पर नजर रखने वाले क्रिकेट फैंस चिदंबरम मुरलीधरन गौतम को भले न जानते हों, लेकिन घरेलू क्रिकेट पर निगाह रखने वालों के लिए यह एक परिचित नाम है। उन्होंने कर्नाटक के लिए करीब एक दशक तक घरेलू क्रिकेट खेला है।

2011 और 2012 में तो वह आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स का हिस्सा भी रहे। इसके बाद उन्हें दिल्ली और मुंबई की टीम ने भी लिया था। इस साल गोवा की टीम ने चिदंबरम मुरलीधरन गौतम को अपनी टीम का कप्तान भी बनाया था। चिदंबरम मुरलीधरन गौतम को मुश्ताक अली ट्रॉफी में टीम की नुमाइंदगी भी करनी थी, मगर इस मामले के बाद उनका करार रद्द कर दिया गया है। पुलिस की गिरफ्त में आए दूसरे खिलाड़ी अबरार काजी को कम लोग जानते हैं। लेकिन उनका घरेलू करियर भी पांच-छह सालों का है। अबरार काजी पर एक लीग मैच के दौरान भी पैसे लेने का आरोप है। कुल मिलाकर, इस मामले में आधा दर्जन लोग पुलिस की गिरफ्त में हैं। 
क्रिकेट में सारा खेल ‘टाइमिंग’ का होता है। ‘टाइमिंग’ के लिहाज से कर्नाटक प्रीमियर लीग में हुई यह गड़बड़ी बहुत खराब समय पर हुई है। आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग के बाद ही क्रिकेट पर बीसीसीआई से ज्यादा  सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त किए गए प्रशासकों का राज हो गया। यह सच है कि इस बदलाव के बाद क्रिकेट के हुक्मरानों में पारदर्शिता बढ़ी, लेकिन सच यह भी है कि बहुत सारे मामले बेवजह सामने आए। गांगुली को बीसीसीआई अध्यक्ष की कुरसी संभाले अभी दो हफ्ते भी नहीं हुए है और उनके सामने यह समस्या खड़ी हो गई। आपराधिक मामलों से अलग यह देखना होगा कि बतौर बोर्ड अध्यक्ष वह इन खिलाड़ियों के भविष्य को लेकर क्या फैसला लेते हैं। यह भी एक संयोग ही है कि जब उन्होंने टीम इंडिया की कप्तानी संभाली थी, तब भी फिक्सिंग का बवाल चल रहा था। अब जब उन्होंने अध्यक्ष का रोल संभाला, तो एक बार फिर फिक्सिंग का जिन्न सामने खड़ा है। गांगुली के रुख को लेकर उत्सुकता इसलिए ज्यादा है, क्योंकि अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं में घरेलू क्रिकेटरों की बेहतरी की बात कही थी। इसमें सबसे अहम पक्ष घरेलू खिलाड़ियों की आर्थिक कमाई में बढ़ोतरी का मामला था। बात भले ही घरेलू क्रिकेट में फिक्सिंग की हा, लेकिन इसके तार निश्चित तौर पर आगे तक होंगे। गांगुली को बतौर अध्यक्ष इसलिए सतर्क रहना होगा कि फिक्सिंग का साया और गहराया, तो हालात फिर 2013 जैसे हो जाएंगे, जब आईपीएल में फिक्सिंग का खुलासा हुआ था।  
फिक्सिंग को लेकर दुनिया भर में नियम सख्त हैं। हाल ही में बांग्लादेश के कप्तान शाकिब अल हसन को इसलिए प्रतिबंधित कर किया गया, क्योंकि उन्होंने आईसीसी से यह बात छिपाई थी कि कुछ बुकीज उनसे संपर्क कर रहे थे। भारत के दौरे पर आने से ऐन पहले उन्हें कप्तानी छोड़नी पड़ी। फिक्सिंग के जाल में न फंसने के लिए खिलाड़ियों को लगातार जागरूक किया जाता है। दक्षिण भारतीय खिलाड़ी अपेक्षाकृत ज्यादा पढे़-लिखे भी होते हैं। बावजूद इसके चिदंबरम मुरलीधरन गौतम और अबरार काजी का मामला दिखाता है कि ज्यादा पैसे कमाने का लालच अभी खत्म नहीं हुआ है। खिलाड़ी अब भी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि जितना पैसा वे खेलकर कमा लेंगे, उतना धन उन्हें स्पॉट फिक्सिंग से कभी नहीं मिलने वाला, क्योंकि उसमें करियर जल्दी बर्बाद होने का खतरा है। साथ ही, जिस खेल में नाम कमाने का सपना लेकर वे दिन-रात जीते हैं, उस सपने के चकनाचूर होने और जीवन भर का कलंक साथ लेकर चलने का खतरा है सो अलग।

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