दीपक की चांदी से चहका भारत

विश्व चैम्पियनशिप फाइनल से हटे चोटिल दीपक
नूर-सुल्तान (कजाखस्तान)।
युवा पहलवान दीपक पूनिया ने सेमीफाइनल के दौरान लगी टखने की चोट के कारण रविवार को यहां ईरान के हजसान याजदानी के खिलाफ विश्व चैम्पियनशिप के 86 किलो वर्ग की खिताबी स्पर्धा से हटने का फैसला किया जिससे उन्होंने रजत पदक अपने नाम कर लिया। दीपक ने कहा, ‘बायां पैर वजन नहीं ले पा रहा था। इस हालत में लड़ना मुश्किल था। मैं जानता हूं कि याजदानी के खिलाफ यह बड़ा मौका था लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता।’ इस तरह 20 साल के भारतीय खिलाड़ी को अपनी पहली सीनियर विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक से संतोष करना पड़ा। स्विट्जरलैंड के स्टेफान रेचमुथ के खिलाफ शनिवार को सेमीफाइनल के दौरान वह मैच से लड़खड़ाते हुए आये थे और उनकी बायीं आंख भी सूजी हुई थी। इस तरह सुशील कुमार भारत के एकमात्र विश्व चैम्पियन बने रहेंगे जिन्होंने मास्को 2010 विश्व चैम्पियनशिप के 66 किलो वर्ग में स्वर्ण पदक जीता था। वहीं दीपक पूनिया के चोटिल होने के कारण फाइनल से हट जाने के बाद भारत के राहुल अवारे ने सोमवार को कांस्य पदक जीता जिससे भारत ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदकों के मामले में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सफल रहा। अवारे ने 61 किलो के कांस्य पदक मुकाबले में 2017 के पैन अमेरिकी चैंपियन टाइलर ली ग्राफ को 11-4 से हराकर भारत के पदकों की संख्या 5 पर पहुंचायी। भारत का विश्व चैंपियनशिप में इससे पहले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2013 में था जब उसने तीन पदक जीते थे। अवारे का अपने मुकाबले में पूरी तरह से नियंत्रण था और वह अपने करियर की सबसे बड़ा पदक जीतने में सफल रहे। महाराष्ट्र के इस पहलवान ने राष्ट्रमंडल खेल 2018 में स्वर्ण तथा एशियाई चैंपियनशिप (2009 और 2011) में कांस्य पदक जीते थे।
नौकरी के लालच में कुश्ती में आये, पहुंचे फाइनल तक
उल्लेखनीय है कि विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतने वाले भारतीय पहलवान दीपक पूनिया ने जब कुश्ती शुरू की थी तब उनका लक्ष्य इसके जरिये नौकरी पाना था जिससे वह अपने परिवार की देखभाल कर सके। वह काम की तलाश में थे और 2016 में उन्हें भारतीय सेना में सिपाही का पद मिला। लेकिन ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार ने उन्हें छोटी चीजों को छोड़कर बड़े लक्ष्य पर ध्यान देने का सुझाव दिया और फिर दीपक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सुशील ने कहा, ‘कुश्ती को अपनी प्राथमिकता बनाओ, नौकरी तुम्हारे पीछे भागेगी।’ दीपक ने 3 साल के भीतर आयु वर्ग के कई बड़े खिताब हासिल किए। वह 2016 में विश्व कैडेट चैंपियन बने थे और पिछले महीने ही जूनियर विश्व चैम्पियन बने। वह जूनियर चैम्पियन बनने वाले सिर्फ चौथे भारतीय खिलाड़ी है जिन्होंने पिछले 18 साल के खिताबी सूखे को खत्म किया था। एक महीने के अंदर ही उन्हें अपने आदर्श और ईरान के महान पहलवान हजसान याजदानी से भिड़ने का मौका मिला मगर सेमीफाइनल के दौरान लगी टखने की चोट के कारण स्पर्धा से हटने का फैसला किया जिससे उन्होंने रजत पदक अपने नाम कर लिया।
झज्जर से दूध, फल लेकर दिल्ली आते थे पिता
दीपक के पिता 2015 से रोज लगभग 60 किलोमीटर की दूरी तय करके उसके लिए हरियाणा के झज्जर से दिल्ली दूध और फल लेकर आते थे। उन्हें बचपन से ही दूध पीना पसंद है और वह गांव में ‘केतली पहलवान’ के नाम से जाने जाते हैं। ‘केतली पहलवान’ के नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है। गांव के सरपंच ने एक बार केतली में दीपक को दूध पीने के लिए दिया और उन्होंने एक बार में ही उसे खत्म कर दिया। उन्होंने इस तरह एक-एक कर के चार केतली खत्म कर दी जिसके बाद से उनका नाम ‘केतली पहलवान’ पड़ गया। दीपक अब इस खेल से पैसे बनाना सीख गये हैं और अब उन्होंने पिता को दूध बेचने से भी मना कर दिया। उन्होंने पिछले साल एसयूवी खरीदी है। उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘मुझे यह नहीं पता है कि मैंने कितनी कमाई की है। मैंने कभी उसकी गिनती नहीं की। लेकिन यह ठीक-ठाक रकम है। ‘मैट दंगल’ पर भाग लिये अब काफी समय हो गया लेकिन मैंने इससे काफी कमाई की और सब खर्च भी किया।’

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