खिलाड़ी महिलाएं ही बदल सकती हैं समाज का नजरिया

महिला सशक्तीकरण की दिशा में खेलों की महत्वपूर्ण भूमिका

खेलपथ प्रतिनिधि

खेलों में महिलाओं को सशक्त कर समाज का नजरिया बड़ी आसानी से बदला जा सकता है। महिला सशक्तीकरण की दिशा में देश में काफी काम हुए हैं लेकिन खेलों में महिलाओं को पुरुषों की बराबरी पर लाने के लिए भारत को अभी भी काफी कुछ करने की जरूरत है। पीटी ऊषा, सानिया मिर्जा, एमसी मेरीकॉम, साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, साक्षी मलिक जैसी खिलाड़ियों ने देश को गौरवान्वित किया है लेकिन अब भी खेलों में भेदभाव होता है। आज हम कम से कम 100 सुपरस्टार महिला खिलाड़ियों का नाम गिना सकते हैं। लेकिन 10 साल पहले ऐसा नहीं कर सकते थे। इसलिए हमने खेलों में महिला सशक्तीकरण के मामले में काफी लम्बा सफर तय किया है लेकिन अब भी खेलों में महिलाओं के लिये काफी कुछ किए जाने की जरूरत है।

जब हम महिलाओं के सशक्तीकरण और पुरुषों के साथ बराबरी की बात करते हैं, तो लगता है कि अब भी महिलाएं पुरुष दबदबे वाली दुनिया में रहती हैं।  महिलाओं को पुरुषों के बराबर ईनामी राशि दी जानी चाहिए। यह भेदभाव पूरी दुनिया में सभी खेलों में है। मेरा मानना है कि महिलाएं ही समाज की विचार धारा को बदल सकती हैं। सरकारें यदि महिलाओं को खेलों की तरफ प्रेरित करें तो न केवल समाज बदलेगा बल्कि हम स्वस्थ भारत के सपने को भी साकार कर सकते हैं।

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