साकार हो सेहतमंद भारत का सपना

व्यक्ति-परिवार से जुड़ा है देश का स्वास्थ्य
खेल दिवस पर प्रधानमंत्री की पहल पर शुरू हुए ‘फिट इंडिया मूवमेंट’ के गहरे निहितार्थों को समझना मुश्किल नहीं है। आधुनिक जीवनशैली की आपाधापी में शारीरिक श्रम की कमी और उससे उपजे मानसिक तनावों के चलते विभिन्न बीमारियों के जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वे डराने वाले हैं। ऐसे में देशव्यापी सचेतक कार्यक्रम की शुरुआत का स्वागत किया जाना चाहिए। खेल दिवस यूं तो हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद का जन्मदिन होता है, मगर इस दिन का प्रतीकात्मक महत्व है। आम लोगों को प्रेरणा देने का प्रयास किया गया है कि हमें खिलाड़ियों की तरह पसीना बहाकर फिट रहना है। भारतीय जीवन दर्शन में सेहत को खासा महत्व दिया गया है। कहा भी जाता है कि धन गया तो कोई चिंता की बात नहीं है, मगर सेहत का जाना बड़ी चिंता का विषय है। इस कार्यक्रम में जिस तरह देश के नामचीन खिलाड़ी व फिल्मी सितारे शरीक हुए, उसने इस कार्यक्रम की ओर पूरे देश का ध्यान खींचा है।

नि:संदेह व्यक्ति स्वस्थ होता है तो परिवार स्वस्थ होता है, फिर समाज और देश स्वस्थ होता है। नि:संदेह स्वस्थ शरीर में स्वस्थ आत्मा-दिमाग का वास होता है जो पूरे व्यक्तित्व को स्वस्थ बनाता है। विडंबना है कि आर्थिक समृद्धि व तकनीकों ने हमारे जीवन को इतना आरामदायक बना दिया है कि हम शारीरिक श्रम से कतराने लगे हैं। हमारे पैदल चलने की आदत खत्म होती जा रही है। पूरी जीवनशैली में श्रम रहित व्यवहार को बढ़ावा मिला है जो तमाम तरह के मनोकायिक रोगों को जन्म देता है। ऐसे में फिट इंडिया अभियान की उपादेयता निर्विवाद हो जाती है ताकि जीवनशैली से उपजी बीमारियों के खिलाफ जंग छेड़ी जा सके। नि:संदेह यह एक सकारात्मक सोच की रचनात्मक मुहिम है और इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
दरअसल, हमारी सुविधाभोगी जीवनशैली के चलते तमाम ऐसे मनोकायिक रोग पैदा हो गये हैं, जिन्हें हम व्यायाम, खेल, योग व विभिन्न तरह की फिटनेस पद्धतियों से दूर भगा सकते हैं। ऐसा नहीं कि ‘फिट इंडिया’ जैसी मुहिम केवल भारत में ही शुरू की गई है। चीन वर्ष 2030 तक ‘हेल्दी चीन’ मिशन को लेकर प्रयासरत है। आस्ट्रेलिया ने भी ऐसा ही लक्ष्य लोगों की सक्रियता के लिये रखा है। इंगलैड अपने पांच लाख नये लोगों को दैनिक व्यायाम से जोड़ने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। वहीं अमेरिका 2021 तक ‘फ्री फिटनेस मुहिम’ चलाएगा।

यह तथ्य सामने आने लगा है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति रोग को दबा तो देती है, मगर उसके कारकों को पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाती। ऐसे में हमारी सजगता व सक्रियता ही हमें स्वस्थ बना सकती है। भारत के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। यदि हम अभी भी न जागे तो स्थिति भयावह हो सकती है। भारत में असाध्य रोगों के महंगे उपचार से लाखों लोग कर्ज में डूब जाते हैं। वजह चिकित्सा सुविधाओं की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि का होना, जिसके चलते गुणवत्ता का उपचार आम आदमी की पहुंच से दूर होता जा रहा है। यदि रोगों से जुड़े आंकड़ों पर नजर डालें तो विकट स्थिति का अहसास हो जाता है। भारत में करीब साढ़े पांच करोड़ लोग दिल के मरीज हैं। देश का हर पांचवां व्यक्ति हाइपरटेंशन का शिकार है। पिछले दो दशकों में संक्रामक रोगों का प्रतिशत दो-तिहाई बढ़ा है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि देश में आबादी का दस फीसदी किसी न किसी प्रकार के मनोरोगों से जूझ रहा है। साढ़े तेरह करोड़ लोग अधिक वजन की समस्या से जूझ रहे हैं। हर दसवां भारतीय मधुमेह का शिकार है। नि:संदेह ये रोग हमारी जीवनशैली की विसंगतियों व श्रम न करने की वजह से हैं। ऐसे में देश के लोग ईमानदारी से फिट इंडिया मूवमेंट से जुड़ते हैं तो देश सुख-समृद्धि हासिल कर सकता है।

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