ध्यानचंद जैसा न हुआ और न होगाः डा. रामकिशोर अग्रवाल

राजीव इंटरनेशनल और जी.एल. बजाज में मना राष्ट्रीय खेल दिवस

मथुरा। गुरुवार 29 अगस्त को आर.के. एज्यूकेशन हब के शैक्षिक संस्थानों राजीव इंटरनेशनल स्कूल और जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस में राष्ट्रीय खेल दिवस पर हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को याद करते हुए विभिन्न खेलों का आयोजन किया गया। राजीव इंटरनेशनल स्कूल में फुटबाल, लान टेनिस के मुकाबले हुए वहीं जी.एल. बजाज में क्रिकेट, रस्साकशी, वालीबाल, कबड्डी तथा टेबल टेनिस में छात्र-छात्राओं ने हाथ आजमाए। खेलों के शुभारम्भ से पूर्व प्राध्यापकों और छात्र-छात्राओं ने हाकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद के छायाचित्र पर पुष्पार्चन करते हुए हाकी में उनके योगदान को याद किया।

इस अवसर पर आर.के. एज्यूकेशन हब के चेयरमैन डा. रामकिशोर अग्रवाल ने कहा कि जिस प्रकार इंसान के मानसिक विकास के लिए शिक्षा का महत्व है उसी प्रकार उसके शारीरिक विकास के लिए खेल जरूरी हैं। खेलों से तन और मन दोनों ही स्वस्थ रहते हैं तथा मानव में धैर्य, सहनशीलता एवं मानवीय गुणों का विकास होता है। डा. अग्रवाल ने कहा कि 1995 से मेजर ध्यान चंद के जन्मदिन पर प्रतिवर्ष राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है, इस दिन राष्ट्रपति के करकमलों से देश के श्रेष्ठ खिलाड़ी और प्रशिक्षक सम्मानित होते हैं। डा. अग्रवाल ने दद्दा को हाकी का महानायक बताते हुए कहा कि न भूतो, न भविष्यति ध्यानचंद यानि ध्यानचंद जैसा न कोई हुआ और न होगा। संस्थान के प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने कहा कि खेलना मनोरंजन ही नहीं करियर की दृष्टि से भी उपयुक्त है। बच्चे खेलों के माध्यम से न केवल अपने आपको फिट रख सकते हैं बल्कि सफलता हासिल कर अपने माता-पिता और राष्ट्र का गौरव बढ़ा सकते हैं।  

जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस में गुरुवार को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया गया। इस अवसर पर छात्र-छात्राओं ने विभिन्न खेलों में अपने कौशल का प्रदर्शन किया। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डा. एल.के. त्यागी ने कहा कि मेजर ध्यानचंद अद्वितीय हाकी खिलाड़ी थे। भारत ने ओलम्पिक खेलों में आठ स्वर्ण पदक जीते हैं जिनमें तीन स्वर्ण पदक मेजर ध्यानचंद की अगुआई में जीते गए। दद्दा ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 के ओलम्पिक खेलों में भारत को हाकी का चैम्पियन बनाया था। राजीव इंटरनेशनल स्कूल के प्राचार्य शैलेन्द्र सिंह ग्रेवाल ने कहा कि गुलामी के दौर में भारतीय हाकी की दुनिया भर में तूती बोलती थी। दद्दा ध्यानचंद हाकी के इतिहास पुरुष हैं, इनके बिना इस खेल की वर्णमाला पूरी नहीं हो सकती। आज दद्दा की जयंती पर प्रत्येक छात्र-छात्रा को प्रतिदिन कुछ समय खेलों को देने का संकल्प लेना चाहिए।

   

 

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